लोकतंत्र की जननी – वैशाली आधा सच आधा फ़साना
महाभारत काल से ही वैशाली को इतिहास का पता चलता है। वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि “रिपब्लिक” कायम किया गया था। वैशाली के कई संदर्भ जैन धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित ग्रंथों में पाए जाते हैं, जिसमे वैशाली और अन्य महाजनपदों के बारे में जिक्र है। इन ग्रंथों में मिली जानकारी के आधार पर, वैशाली को गणराज्य के रूप में 6 वीं शताब्दी ई.पू. तक गौतम बुद्ध के जन्म से पहले 563 में स्थापित किया गया था, जिससे यह विश्व का पहला गणतंत्र बना। पिछले जैन “तीर्थंकारा” भगवान महावीर के जन्मस्थान होने के नाते, वैशाली को इतिहास में एक विशेष स्थान दिया गया था। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध ने अपना आखिरी उपदेश दिया और इस पवित्र भूमि पर अपनी पारिनीवणा (ज्ञान की प्राप्ति) की घोषणा की। यह अम्बपाली(आम्रपाली) की भूमि के रूप में भी प्रशिद्ध है, जो एक महान नृत्यांगना थी। यह माना जाता है कि जिला को राजा विशाल से अपना नाम मिला है। हालांकि, इतिहास के अनुसार पाटलीपुत्र गंगा के मैदानी इलाकों में राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र था, वैशाली गंगा के केंद्र के रूप में अस्तित्व में आया, यह वाजजी गणराज्य की सीट थी। वैशाली को प्रतिनिधियों की एक विधिवत चुने विधानसभा और कुशल प्रशासन के लिए विश्व का पहला गणराज्य होने का श्रेय दिया जाता है।
चंदन चौबे ,डेमोक्रेटिक फ्रंट, वैशाली, बिहार – जुलाई 22 :
एक जिला है वैशाली जो बिहार में स्थित है जिसे लोकतंत्र की जननी भी कहते हैं आज विश्व में जिसके लोकतंत्र को अपनाया जा रहा है जिसने विश्व को गणतंत्र का पाठ पढ़ाया जी हां वहीं है वैशाली आप सब ये सोच रहे होंगे की वैशाली जहां से लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्वनेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। यहां का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता था। प्राचीनकाल में वैशाली बहुत ही समृद्ध क्षेत्र हुआ करता था। कहा जाता है कि इस नगर का नामकरण राजा विशाल के नाम पर हुआ है। विष्णु पुराण के अनुसार यहां पर लगभग 34 राजाओं ने राज किया था। पहले नभग और अंतिम सुमति थे। राजा सुमति भगवान राम के पिता राजा दशरथ के समकालीन थे। बौद्धकाल में यह नगरी जैन और बौद्ध धर्म का केंद्र थी। यह भूमि महावीर स्वामी की जन्मभूमि और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि है। इसी नगर क्षेत्र के बसोकुंड गांव के पास कुंडलपुर में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। भगवान महावीर वैशाली राज्य में लगभग 22 वर्ष की उम्र तक रहे थे। यहां कई अशोक स्तंभ के अलावा कुछ बौद्ध स्तूप है और यही 4 किलोमीटर दूर कुंडलपुर में जैन मंदिर भी स्थित हैं। जिसकी महानता इतनी है उसकी महानता को और स्मृतियों को डूबाया क्यूं जा रहा?
लोकतंत्र के पुजारियों का ध्यान क्यूं नहीं लोकतंत्र की जननी पर –
वैशाली की महानता किसी से छिपी नहीं है सम्पूर्ण विश्व जानता है देश की धरोहरों में से एक कही जाने वाली वैशाली पर किसी लोकतंत्र के पुजारियों पर क्यूं नहीं जा रही वैशाली जिले के महान क्रांतिकारी स्व अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल जी ने शहीद भगत सिंह के मौत का बदला लिया जब देश में भगत सिंह के मौत के खिलाफ बदले की आग देशवासियों के मन में जगह बना रही थी वैसे वैशाली पर किसी का ध्यान नहीं
चुनावी मंच तक ही सीमित है वैशाली जिले की महानता-
वैशाली जहां से स्व रघुवंश बाबू, स्व रामविलास पासवान एवं वर्तमान में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय व कई महान नेताओं की भूमि है जहां से देश के विकास में अहम भागीदारी होती है बावजूद इसके वैशाली की स्मृतियों व वैशाली का अद्भुत ज्ञान, त्याग,प्रेम व अमूल्य धरोहर पर नेता ध्यान नहीं दे रहे न ध्यान दें रही है सरकार चुनाव में व बड़े मंच से नेतागण व वर्तमान प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री ने अनेकों बार वैशाली के जनता को लुभाने के लिए वैशाली की महानता को दर्शाया हर भाषण स्वयं को लोकतंत्र के पुजारी और भारतीय संविधान के अनुयाई बताने वाले नेताकभी भी ना ही लोकतंत्र की रक्षा करते हैं ना ही संविधान का सम्मान अब वैशाली की स्थिति को देखकर ये प्रतीत होता है की ये हर रोज हजारों बार लोकतंत्र की हत्या और संविधान का विरोध किसी न किसी रूप करते हैंवो दिन दूर नहीं जब हम अमूल्य व महान वैशाली की स्मृतियां सिर्फ यादों और किताबों तक सिमट कर रह जाएगी। 2022 में यास तुफान में वैशाली के तमाम स्मृतियों का किया था बुरा हाल-यास तुफान में वैसे तो बिहार के तमाम जगहों की स्थिति बुरी थी अगर बात करें वैशाली की स्मृतियों की तो घूटने भर गंदे पानी से लबालब भरा वैशाली के पार्क व राजा विशाल गढ़ व अन्य स्मृतियों की स्थिति देखते ही बनती थी पर पर्यटन विभाग से लेकर स्थानीय नेता व सरकार किसी का ध्यान वैशाली पर नहीं गयाहमेशा के तरह फिर चुनाव होंगे फिर बयानबाजी होगी फिर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री का आगमन होगा सब वादों पर एक वादा सिमट जाएगा और नहीं ध्यान आकृष्ट कर पाएगी लोकतंत्र की जननी वैशाली