- 2018 निकाय चुनाव में भाजपा को 49% वोट, 2020 के निकाय चुनाव में 39% वोट और 2022 के निकाय चुनाव में 2018 में मिले वोटों का करीब आधा यानी 26% वोट ही मिला – दीपेंद्र हुड्डा
- 2018, 2020 और 2022 के निकाय चुनावों में भाजपा का लगातार गिरता वोट प्रतिशत उसकी विफलता का प्रतीक – दीपेंद्र हुड्डा
- 2018 के निकाय चुनाव में भाजपा को मिले 49% वोट जिसके बाद विधानसभा चुनाव में 40 सीटें आई, इस बार 26% वोट के साथ भाजपा कितना नीचे जायेगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं – दीपेंद्र हुड्डा
- इस बार कुल 12,71,782 मतदाताओं में से 9,37,909 मतदाताओं ने भाजपा के खिलाफ वोट दियाकेवल 3,33,873 वोट ही भाजपा को मिले – दीपेंद्र हुड्डा
- भाजपा नेता अनर्गल बयानबाजी तो कर रहे हैं लेकिन उनको बयानों में अगले विधानसभा चुनाव में हार का डर स्पष्ट दिखाई दे रहा – दीपेंद्र हुड्डा
- भाजपा-जजपा के कुशासन, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी से त्रस्त हरियाणा बदलाव चाहता है – दीपेंद्र हुड्डा
- मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री के इलाके में हार इस सरकार की अलोकप्रियता का प्रतीक – दीपेंद्र हुड्डा
कोरल ‘पुरनूर’, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 24 जून :
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने निकाय चुनाव नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि निकाय चुनाव को गहराई से देखने पर बहुत ही चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये हैं। निकाय चुनावों में 2018 में भाजपा को 49% वोट, 2020 में 39% वोट और 2022 में 26% वोट ही मिले। 2018, 2020 और 2022 के निकाय चुनावों में भाजपा का लगातार गिरता वोट प्रतिशत उसकी विफलता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि 2018 के निकाय चुनाव में भाजपा को मिले 49 प्रतिशत मत, बावजूद इसके अगले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा 40 सीटों पर सिमट गई थी। इस बार मिले 26 प्रतिशत वोट के साथ भाजपा कितना नीचे जायेगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। भाजपा नेता अनर्गल बयानबाजी तो कर रहे हैं लेकिन उनको बयानों में अगले विधानसभा चुनाव में हार का डर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। उन्होंने बताया कि 2018 में हरियाणा के पाँच बड़े निगमों – हिसार, करनाल, पानीपत, रोहतक, यमुना नगर और कई परिषदों के लिये हुए चुनाव में भाजपा को 49 प्रतिशत वोट मिले थे, इसके बाद 2020 में तीन बड़े निगमों – अंबाला, पंचकुला, सोनीपत व कई परिषदों के लिये हुए चुनावों में 39 प्रतिशत वोट मिले और अब 2022 में सभी 46 नगर पालिकाओं व परिषदों के लिये हुए निकाय चुनाव में जजपा गठबंधन के बावजूद 2018 में मिले वोटों का करीब आधा यानी 26 प्रतिशत वोट ही मिला। भाजपा, जिसको शहरों की पार्टी माना जाता है, के वोट बैंक में 2018, 2020 और 2022 में हुए लगातार 3 निकाय चुनावों में तेज गिरावट दर्ज की गयी है। सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने भाजपा नेताओं को सलाह दी कि वो निष्पक्ष होकर आंकड़ों के दर्पण में अपना चेहरा देखें, उन्हें जमीनी हकीक़त साफ़ नज़र आएगी। यदि वो ऐसा करेंगे तो उनकी समझ में आ जाएगा कि उनका ग्राफ कितनी तेज़ी से घट रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि इस बार के निकाय चुनावों में कुल पड़े 12,71,782 वोटों में से भाजपा को सिर्फ 3,33,873 वोट ही मिले, जबकि 9,37,909 मतदाताओं ने भाजपा के खिलाफ वोट दिया, जो सरकार की विफलता को उजागर करता है। दीपेंद्र हुड्डा ने यह भी बताया कि 2018 में निर्दलीय उम्मीदवारों को 29.4 प्रतिशत वोट मिले, जो 2020 में बढ़कर 37.9 प्रतिशत हो गये और इस बार के चुनाव में यह प्रतिशत 52.2 पर पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री के इलाके में हार इस सरकार की अलोकप्रियता का प्रतीक है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इलाके करनाल में असंध, निसिंग और तरवाड़ी में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, वहीं उप-मुख्यमंत्री के हलके उचाना में जजपा प्रत्याशी को भी तगड़ी हार का सामना करना पड़ा और हरियाणा सरकार के अधिकांश मंत्रियों के हलकों में भजपा-जजपा गठबंधन के उम्मीदवारों को जनता ने करारी हार का स्वाद चखाया। 2018 के नतीजे के बाद से ही ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा का जनाधार समाप्त हो चुका था, अब शहरी इलाकों में भी भाजपा का वोट बैंक खत्म के कगार पर है।
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी स्थानीय चुनाव पार्टी सिंबल पर नही लड़ती। इस स्थिति के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों ने भाजपा गठबंधन के खिलाफ वोट दिया है। क्योंकि, शहरों में भी जनता भाजपा-जजपा के कुशासन, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी से त्रस्त है। सरकार होते हुए और शहरों में चुनाव होते हुए, हर 4 में से 3 मतदाता ने भाजपा के विरुद्ध मतदान किया। शहरों में यह स्थिति है तो बाक़ी जगहों का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। जाहिर है हरियाणा बदलाव चाहता है!