Monday, December 23

विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में एक खेत के नीचे संयोग से 4000 पुराने तांबे के हथियार मिले हैं। हथियारों के इस संग्रह के गहन अध्ययन से यह द्वापर युग का लगता है. एएसआई के आर्कियोलॉजी के निदेशक भुवन विक्रम का दावा है कि तांबे के ये हथियार ताम्र पाषाण काल (कॉपर एज) के बताए जा रहे हैं।

यूपी (ब्यूरो) डेमोक्रेटिक फ्रंट, मैनपुरी/ इटावा – 24 जून :

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में एक खेत से मिले चार हजार साल पुराने हथियारों ने पुरातत्वविदों की उत्सुकता बढ़ा दी है इन हथियारों को भगवान श्रीकृष्ण काल यानी द्वापर युग का बताया जा रहा है। तांबे के हथियारों की जांच के बाद जो शोध परिणाम आए हैं, उससे आर्कियोलॉजिस्ट काफी रोमांचित हैं। प्राचीन काल में भी भारतीय लड़ाकों के पास उन्नत हथियार थे, इसका पता चलता है। लड़ाके बड़े हथियारों से लड़ाई करते थे. वे बड़ी तलवारों का इस्तेमाल करते थे। करीब चार फीट तक लंबे हथियार उस समय होते थे। हथियार काफी तेज और सोफिस्टिकेटेड आकार के होते थे। स्टारफिश के आकार के हथियारों का प्रयोग किया जाता था.सवाल यह भी है कि क्या इन हथियारों का प्रयोग कुरुक्षेत्र में हुई महाभारत की लड़ाई में भी प्रयोग किया गया था ? इन सवालों के जवाब शोध के बाद ही मिलेंगे। बहरहाल, आर्कियोलॉजिस्टों ने हथियारों की जांच के बाद इसे ‘रोमांचक’ करार दिया है।

मामला थाना कुरावली क्षेत्र के ग्राम गणेशपुरा का है। यहां के निवासी बहादुर सिंह उर्फ फौजी पुत्र अमित सिंह का एक खेत टीले पर है। वह टीले की खुदाई कराकर उसका समतलीकरण करा रहे थे। शुक्रवार को रात मजदूर जेसीबी की सहायता से टीले को समतल करने में जुटे थे। तभी बताते हैं कि रात एक बजे खुदाई के दौरान मिट्‌टी से एक बक्सा निकला।

शनिवार को गणेशपुर के खेत में खोदाई में इतिहास का खजाना मिला। गणेशपुर निवासी बहादुर सिंह फौजी मलावन रजवाहा की पटरी से लगे अपने खेत के टीले को जेसीबी से समतल करा रहे थे। जैसे ही टीला ढहाया, उसके अंदर से प्राचीन तांबे के हथियार मिले, जिनमें तलवारें, भाले, कांता, त्रिशूल आदि निकले। एसडीएम वीके मित्तल इस सूचना पर गांव पहुंचे और खेत के टीले को सील करा दिया। गिनती करने पर तांबे के 39 हथियार पाए गए, जिन्हें पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया। गांव में जैसे ही प्राचीन हथियार जमीन से निकलने की सूचना फैली, लोगों का जमावड़ा लग गया।

तांबे की तलवार, हथियार ईसा पूर्व 1800 से 1200 के बीच माने जाते हैं। गंगा बेल्ट में सबसे पहले यह 1822 में कानपुर के बिठूर में बड़ी संख्या में पाए गए। गंगा और यमुना के बीच में बसे शहरों आगरा, एटा, मैनपुरी, कानपुर इस तरह की ताम्रनिधियों के गढ़ हैं। पुरातात्विक दृष्टि से यह उन लोगों की संस्कृति का बड़ा केंद्र रहे हैं, जो ताम्रनिधियों का उपयोग करते रहे हैं। कुछ समय पहले बागपत के सिनौली में तांबे से बनी तलवार और खंडित पुरावशेष मिले थे, जिसमें तलवार और म्यान दोनों तांबे की थीं। हालांकि इन ताम्रनिधियों और सिनौली के बीच कोई समानता नहीं है।

एसडीएम कुरावली वीके मित्तल ने बताया कि पुरातत्व विभाग की टीम की जांच के बाद ही प्राचीन अस्त्रों के संबंध में जानकारी हो सकेगी। इस संबंध में उच्चाधिकारियों सहित शासन को सूचना दे दी गई है।

आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. राजकुमार पटेल ने बताया कि प्रारंभिक तौर पर देखने में यह ताम्रनिधियां ईसा पूर्व 1800 की लगती हैं। एटा, मैनपुरी, आगरा और गंगा बेल्ट इस तरह की ताम्रनिधियों की संस्कृति वाले क्षेत्र रहे हैं। हमारी टीम सोमवार को जगह का निरीक्षण करने जाएगी। संभव है कि यहां और ताम्रनिधियां निकल आएं। यह 3800 साल से ज्यादा पुरानी हैं।