खसरों के खेल का नायाब नमूना है ‘आशियाना सिटी’
- जांच होने पर चल सकता है आपके सपनों पर बुलडोजर
राजेन्द्र जैन, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ :
‘आशियाना सिटी’ नाम सुनते ही आप अपने आशियाने के ख्वाब बुनने लगते हैं। लेकिन ख्वाब हमेशा सच नहीं होते,कभी कभी ख्वाब डरावने भी होते है। सूरतगढ़ में NH-62 पर बन रही आशियाना सिटी खरीदारों के लिए ऐसा ही डरावना ख्वाब साबित हो सकती है। ऐसे में अगर आप भी आशियाना सिटी में अपने ड्रीम हाउस का सपना बुन रहे हैं तो यह खबर आपके लिए है। सपनों के बिखरने का दर्द बहुत बड़ा होता है इसलिए आपके सपने बिखर जाएं उससे पहले आपको यह खबर जरूर पढ़ लेनी चाहिए।
सूरतगढ़ में राजस्व विभाग के कर्मचारियों द्वारा खसरों में जमीनों को इधर-उधर खिसकाने की खबरें तो आपने जरूर सुनी होगी। आशियाना सिटी भी इसी खेल का ही एक उदाहरण है। यह बात हम नहीं आशियाना सिटी से जुड़े भूमि के दस्तावेज कह रहे हैं।
राजस्व विभाग के सूरतगढ़ कस्बा रोही के खसरा नंबर-329/2 में आशियाना सिटी को विकसित किया जा रहा है। लेकिन सूचना के अधिकार में मिले आवासन मंडल की प्रस्तावित कॉलोनी के दस्तावेज और नक्शा, कुछ और कहानी कहते हैं। आवासन मंडल के नक्शे व अन्य दस्तावेजों की माने तो भूमि जिस पर यह कॉलोनी बनाई जा रही है यह विवादित है। आवासन मंडल से मिले कॉलोनी के नक्शे (फोटो प्रति नीचे दी गई है) के अनुसार राजस्व विभाग द्वारा के वर्तमान नक्शों में जिसे खसरा नंबर 329/2 बताया जा रहा है वह वास्तव में खसरा नंबर 329/1 है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि आशियाना सिटी खसरा नंबर 329/2 की बजाय 329/1 पर बनाई जा रही है।
अगर आवासन मंडल की प्रस्तावित कॉलोनी के नक्शे को गौर से देखें तो पता चलता कि आवासन मंडल द्वारा अवाप्त भूमि के नक्शे के मुताबिक खसरा नंबर 329/1 जो कि काले रंग के बॉक्स में दिखाया गया है वहीं भूमि राजस्व विभाग के नक्शे में 329/2 के रूप में दिखाई गयी है। दूसरी ओर आवासन मंडल के नक्शे में खसरा नंबर 329/1 के काले बॉक्स के पास स्थित क्षेत्र जिसे खसरा नंबर 329/2 दिखाया गया है, वह क्षेत्र राजस्व विभाग के नक्शे के मुताबिक खसरा नंबर 329/1 है।
आप सोच रहे होंगे कौन सा नक्शा सही है। तो इसका जवाब है कि आवासन मंडल को प्रस्तावित कॉलोनी के लिए भूमि आवंटन राजस्व विभाग द्वारा ही किया गया था और विभाग द्वारा ही यह नक्शा आवासन मंडल को दिया गया था। जिसकी सूचना के अधिकार में ली गई कॉपी की फोटो प्रति यहां पर दी गई है। इसका सीधा सा अर्थ यह भी है कि आशियाना सिटी के डेवलपर्स ने राजस्व विभाग के भ्रष्ट पटवारियों, कर्मचारियों और अधिकारियों से सांठगांठ कर राजस्व विभाग के दस्तावेजों/ नक्शों में खसरा नंबर 329/1 को खसरा नंबर 329/2 दो के रूप में दर्ज कर दिया।
लेकिन यह भ्रष्ट अधिकारी और सफेदपोश माफिया ये भूल गए कि चोर कितना भी शातिर क्यों ना हो कोई न कोई गलती कर बैठता है। जिससे वह कानून की गिरफ्त में आज नहीं तो कल आ ही जाता है। आशियाना सिटी’ के मामले में भी कुछ ऐसा ही है।विभाग के भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारी यह बात भूल गए कि उन्होंने विभाग के पास पड़े नक्शे में तो बदलाव कर दिया, लेकिन बदलाव से पहले दूसरे विभागों के पास भेजे गए नक्शे सच्चाई का बयान कर देंगे।
राजस्व विभाग द्वारा आवासन मंडल को कॉलोनी के लिए भूमि का आवंटन वर्ष 2010 के आसपास किया गया था। सूचना के अधिकार में आवासन मंडल से लिया प्रस्तावित कॉलोनी के खसरों का ऊपर दिया गया नक्शा वर्ष 2011 का है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि वर्ष 2011 में खसरा नंबर 329/1 व 329/2 अपनी पूर्ववत स्थिति में थे। इसका दूसरा अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 2011 के बाद के सालों में खसरों में छेड़छाड़ की गई।
इस मामले की अगर निष्पक्ष जांच की जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी के आरोप में कई पटवारी, गिरदावर और बड़े अधिकारियों के साथ साथ सफेदपोश माफियाओं को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। आवासन मंडल और राजस्व विभाग के दस्तावेज पानी की तरह साफ है और अपराध की खुली गवाही दे रहे हैं।
अगर इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाती है तो यह निश्चित है कि जांच की आंच ‘आशियाना सिटी’ तक भी पहुंचेगी। निष्पक्ष जांच में आशियाना सिटी का फर्जी साबित होना लगभग तय है। ऐसे में आशियाना सिटी में आशियाने का सपना देखना खरीदारों को भारी पड़ेगा। ऐसे में खरीदारों की जीवन भर की जमा पूंजी खतरे में पड़ेगी।
इस कॉलोनी से जुड़े एक -दो डेवलपर्स का सपनों को बेचने का एक कुख्यात इतिहास रहा है। जोहड़ पायतन की भूमि पर 20 साल पहले बसाई गई बसंत विहार/आनंद विहार कॉलोनियों का मामला किसी से छुपा हुआ नहीं है। इन कॉलोनीयों में जोहड़ पायतन का बोतल में बंद जिन्न अब भी बाहर निकलने के इंतजार में हैं। यही वजह है कि कॉलोनी में खून पसीने की कमाई से अपना आशियाना बना कर रहने वाले लोगों को आज भी अपने आशियाने पर बुलडोजर चलने के डरावने सपने आते हैं। खैर ये कॉलोनियां तो शुरुआत भर थी । इसके बाद इन सफेदपोश पूंजीपतियों नें हॉस्पिटल और होटल के लिए आवंटित भूखंड पर अवैध व्यावसायिक मॉल खड़ा कर खूब पैसा बनाया।
काले धंधों में हुई काली कमाई से उत्साहित कॉलोनाइरों ने शहर के बेहद संकडे भगत सिंह चौक इलाके में एक कई मंजिला व्यवसायिक टावर खड़ा कर दिया। संकरी गलियों में स्थित इस कंपलेक्स को बेचकर ये सेठ लोग तो निकल गए लेकिन कांपलेक्स में दुकानें खरीद कर व्यापार का सपना खरीदारों को महंगा पड़ गया। टॉवर की खाली पड़ी दुकानें सेठों के दिखाए गए सुनहरे सपनों का काला सच बयां करती हैं। मानकसर मे ड्रीम सिटी जैसे प्रोजेक्टों का हाल भी आने वाले दिनों में कुछ ऐसा ही हो जाये यह कहना कुछ गलत नहीं होगा। क्योंकि अधिकारियों से मिलीभगत कर इन कॉलोनियों में ख़डी इमारते भ्रष्टाचार की नींव पर ही ख़डी हैं। जांच होनें पर इन इमारतो का गिरना तय है !