माहे रमजान के अलविदा जुमे की नमाज पढ़ रोजेदारों ने मांगी अमन चैन की दुआ

कोशिक खान यमुनानगर/छछरौली, डेमोक्रेटिक फ्रंट :

कस्बे की जामा मस्जिदों में माहे रमजान के अलविदा जुमे की नमाज पढ़ रोजेदारों ने देश में अमन और चैन की दुआ मांगी है। माहे रमजान में जुमे की नमाज का बहुत महत्व होता है और अलविदा जुमा सबसे खास माना जाता है। जिसमें लोग मस्जिद में नमाज पढ़ अपने रब से गुनाहों से माफी मांगते हुए भविष्य में कोई भी गुनाह न करने का प्रण लेते हैं। अलविदा जुमे के दिन मुस्लिम समाज के लोग जमकर खरीदारी भी करते हैं। जिसमें नए कपड़े और ईद पर बनाई जाने वाली स्पेशल स्वीट डिश सेवियां की भरपूर खरीदारी की जाती है। ईद के मौके पर लोग घर पर बनाई गई सेवियां अपने परिचितों को बांटते हैं। बाजार के बनी मिठाइयां का उपयोग ईद के दिन बहुत ही कम किया जाता है।

ईद उल फितर का सबसे ज्यादा महत्व

मुस्लिम समाज में अन्य त्यौहारों की तुलना ईद उल फितर (मीठी ईद) का सबसे ज्यादा महत्व होता है। बकरीद से ज्यादा मीठी ईद का महत्व माना गया है। एक महीने के लगातार रोजा रखने के बाद मीठी ईद मनाई जाती है। मीठी ईद के मौके पर सभी अपने घरों में स्वीट डिश बनाकर बांटते हैं। मीठी ईद के मौके पर किसी के घर पर भी नॉनवेज नहीं बनाया जाता। मजलिस ए अहरार हरियाणा के अध्यक्ष कारी सईदुजमा ने बताया कि रोजेदार एक महीने तक रोजा रखते हैं। इस्लाम मे हर बालिग मर्द व औरत पर रोजा रखना फर्ज (यानी जरूरी) है। इस्लाम में नमाज और रोजा सबसे अहम कार्य हैं। रोजा रखने से इंसान की सहनशक्ति सब्र बढ़ता है। जो लोग संसार में भूखे प्यासे रहते हैं। हमें रोजा रखने के दौरान उन लोगों की हालत का अंदाजा हो जाता है। माहे रमजान इस्लाम में सबसे पाक व पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में गरीब यतीम बेसहारा की आर्थिक मदद कर दान किया जाता है। इस्लाम में एक सबसे बड़ी बात यह है कि अगर आप खुशहाल परिवार से हो और आपका घर परिवार बच्चों की परवरिश अच्छे से चल रही है और आप रोजा रखते हैं और नमाज भी पढ़ते हैं। पर आपके पड़ोसी की आर्थिक स्थिति ठीक नही है ओर उसके बच्चे भूखे प्यासे हैं और आपने उनकी मदद नहीं की तो आपका रोजा रखना और नमाज पढ़ना भी कोई मायने नहीं रखता। इसलिए माहे रमजान में गुंजाइश मंद लोग फितरा, जकात व सदका के रूप में गरीबों की मदद करते हैं।