पंजाब के अजनाला के 165 साल पुराने मानव कंकाल गंगा के मैदान के शहीदों के

2014 की शुरुआत में पंजाब के अजनाला शहर में एक पुराने कुएं से बड़ी संख्या में मानव कंकाल की खुदाई की गई थी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये कंकाल उन लोगों के हैं जो भारत और पाकिस्तान के विभाजन के दौरान हुए दंगों में मारे गए थे। विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों पर आधारित अन्य प्रचलित मान्यता यह है कि ये भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश सेना द्वारा मारे गए भारतीय सैनिकों के कंकाल हैं। हालांकि, वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति पर गहन बहस चल रही है।

कोरल ‘पुरनूर’। डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़ :

विभिन्न किंवदंतीयो के आधार पर स्थानीय इतिहासकार की पहल पर 28 फ़रवरी 2014 को पंजाब के अजनाला कस्बे के एक पुराने कुंए से कई मानव कंकालों के अवशेष निकले। कुछ इतिहासकारों का मत है की ये कंकाल भारत पाकिस्तान के बटवारे के दौरान दंगों में मारे गए लोगो के है, जबकि  विभिन्न स्रोतों के आधार पर प्रचलित धारणा है, की ये कंकाल उन भारतीय सैनिकों के है, जिनकी हत्या 1857 स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने कर दी थी। हालाँकि, उन सैनिकों के  भौगोलिक उद्गम पर गहन बहस चल रही है।

 इस विषय की वास्तविकता पता करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के एन्थ्रोपोलाजिस्ट डॉ जगमिंदर सिंह सेहरावत ने इन कंकालों के डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस के लिए सीसीऍमबी हैदराबाद और बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट लखनऊ भेजा। वैज्ञानिको की दो अलग अलग टीम ने डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस किया और पाया की शहीद  लोग गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले थे। यह अध्ययन विज्ञानं की पत्रिका फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स में प्रकाशित हुई है।

इस टीम के प्रमुख सदस्य सीसीऍमबी हैदराबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ कुमारसामी थंगराज ने कहा की इस अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों से ही शहीद सैनिकों के भौगोलिक उद्गम के बारे में सटीक जानकारी मिली है।

इस शोध में 50 सैंपल डीएनए एनालिसिस और 85 सैंपल आइसोटोप एनालिसिस के लिए इस्तेमाल किये गए। दोनों शोध के तरीको ने बताया की कुंए में मिले हुवे मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्तान के रहने वाले लोगो के नहीं थे। डीएनए सीक्वेंस के मेल यूपी, बिहार, और पश्चिम बंगाल के लोगो से मिले, जबकि दांतों के एनामेल के आइसोटोप एनालिसिस ने तस्कीद किया की यह कंकाल गंगा घाटी और ओड़िसा के लोगों का है।

इस शोध से मिले परिणाम ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुरूप हैं, जिसमें कहा गया है कि 26 वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन में बंगाल, ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से के लोग शामिल थे। यह बात इस शोध के पहले लेखक डॉ जगमेंदर सिंह सेहरावत ने कहा।

इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता और प्राचीन डीएनए के एक्सपर्ट डॉ नीरज राय ने कहा की इस इस टीम द्वारा किया गया शोध ब्रिटिश राज के खिलाफ अज्ञात शहीदों के संघर्ष के छिपे हुए पहलुओं को उजागर करता है।

बीएचयू जंतु विज्ञान के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे जिन्होंने डीएनए अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, ने जोर देकर कहा की इस अध्ययन के निष्कर्ष भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के इतिहास में एक और प्रमुख अध्याय जोड़ देंगे।