बीते सोमवार को जब कांग्रेस के आला नेताओं की बैठक शुरू हुई तो यह उम्मीद की जा रही थी कि अब इस सवाल का जवाब मिल जाएगा कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल होंगे या नहीं। लेकिन जब बैठक समाप्त हुई तो यह स्पष्ट हो गया कि फ़िलहाल इस जवाब के लिए कुछ और वक़्त इंतज़ार करना होगा। हालाँकि ना तो यह सवाल नया है और ना ही यह टाल-मटोल. पिछले साल भी कांग्रेस पार्टी और प्रशांत किशोर के बीच बात बनते-बनते बिगड़ गई थी। बात इस क़दर बिगड़ गई थी कि पीके ने कांग्रेस नेतृत्व तक पर सवाल उठा दिए थे।
नई दिल्ली(ब्यूरो) डेमोक्रेटिक फ्रंट :
कांग्रेस ने जानेमाने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लेकर लंबी मंत्रणा के बाद मंगलवार को कहा कि किशोर को ‘विशेषाधिकार प्राप्त कार्य समूह -2024’ का हिस्सा बनकर पार्टी में शामिल होने की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। पिछले कई दिनों से प्रशांत किशोर की ओर से दिए गए सुझावों और उनके पार्टी से जुड़ने की संभावना को लेकर कांग्रेस के भीतर लगातार मंथन हो रहा था। प्रशांत किशोर ने पिछले दिनों कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष पार्टी को मजबूत करने और अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों के संदर्भ में विस्तृत प्रस्तुति दी थी। उनके सुझावों पर विचार करने के लिए सोनिया गांधी ने आठ सदस्यीय समिति का गठन किया था।
कांग्रेस औैर प्रशांत किशोर के बीच बात बिगड़ने के पीछे मुख्य तौर तीन वजहें मानी जा रही हैं। पहली बात यह कि कांग्रेस चाहती थी कि प्रशांत किशोर सिर्फ कांग्रेस के लिए काम करें, जबकि उनकी संस्था आईपैक हाल ही में तेलंगाना में केसीआर के साथ भी काम करने के लिए तैयार हो गई है। इसके अलावा प्रशांत किशोर महासचिव का पद और अहमद पटेल जैसा दर्जा चाह रहे थे, जबकि कांग्रेस उन्हें Empowered Action Group 2024 में शामिल करने भर के लिए तैयार थी। प्रशांत किशोर इस भूमिका में नहीं उतरना चाहते थे बल्कि कांग्रेस में अहम परिवर्तन करने और सुझाव देने के रोल में खुद को लाने की बात कर रहे थे। तीसरा, कांग्रेस प्रशांत किशोर के सांगठनिक फेरबदल के प्रस्ताव को भी अपनाने के लिए तैयार नहीं थी। प्रशांत किशोर का एक प्रस्ताव यह भी था कि ‘गांधी’ के बजाय किसी और को अध्यक्ष बनाया जाए। इस पर भी कांग्रेस में सहमति नहीं थी।
पीके की हर लाइन गौर करने वाली है। उन्होंने पार्टी में शामिल होने से इनकार की बात कहते हुए राय भी दी है। किशोर ने इसमें कहा है कि कांग्रेस को उनसे ज्यादा लीडरशिप की जरूरत है। यह कहने के पीछे किशोर का स्पष्ट मैसेज है। उन्होंने साफ किया है कि कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व उसे मुश्किलों से बाहर नहीं निकाल सकता है। एक तरह से उन्होंने गांधी परिवार की नेतृत्व क्षमता पर हमला भी किया है। पिछले कुछ चुनावों में यह बात साफ तौर पर देखी भी जा चुकी है।
प्रशांत किशोर ने अपनी राय जताते हुए पार्टी में सामूहिक इच्छाशक्ति की भी जरूरत पर बल दिया है। निश्चित तौर पर कांग्रेस आज पूरी तरह से बिखरी हुई दिखती है। शायद एक के बाद एक पराजय इसकी बड़ी वजह है। हर चुनाव से पहले पार्टी के अंदर से विरोध के सुर सुनाई देने लगते हैं। बेशक दूसरी पार्टियों में भी नेता दल बदलते हैं, लेकिन कांग्रेस में ये हालात बेकाबू से दिखते हैं। पंजाब इसका हालिया उदाहरण है। अमरिंदर और सिद्धू की आपसी रस्साकशी में किस तरह से पार्टी को नुकसान हुआ। पार्टी में टीमवर्क का स्पष्ट अभाव दिखता है। कांग्रेस को इस पर काम करने की जरूरत है।
किशोर ने पार्टी में परिवर्तनकारी सुधारों की बात कही है। उनके मुताबिक, इसी के जरिये कुछ गहरी जड़ें जमा चुकी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस तरह उन्होंने पार्टी में बदलाव की ओर इशारा किया है। काफी समय से पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव लंबित हैं। सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं। इससे बाहर भी गलत मैसेज जाता है। यह बीजेपी को उस पर हमला करने का मौका देता है। वह वंशवादी के टैग से चिपकी हुई दिखती है। नेतृत्व और छवि में बदलाव कर कांग्रेस को इसका फायदा हो सकता है।
राहुल, प्रियंका या सोनिया, कोई भी कांग्रेस की नैया पार लगा पाने में सफल साबित नहीं हुआ। प्रियंका गांधी को तो कांग्रेस ‘ब्रह्मास्त्र’ मानती थी। लेकिन, यूपी सहित पांच राज्यों के चुनाव में पार्टी ने इस ब्रह्मास्त्र का भी इस्तेमाल कर लिया। हार पर हार के बावजूद पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ बनी हुई है। जब कभी गांधी परिवार को चुनौती दी जाती है तो पार्टी के अंदर ही हंगामा शुरू हो जाता है। ऐसा करने वाले नेता हाशिये पर चले जाते हैं। जी-23 इसका उदाहरण है। यह पार्टी में सुधारों की पुरजोर पैरवी करता रहा है। यहां तक नेतृत्व में बदलाव की मांग करते हुए इसने पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को चिट्ठी तक लिखी थी।