श्री लक्ष्मी देवी पंचमी व्रत कथा

श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को किया जाता है। वर्ष 2022 में यह व्रत 05 अप्रैल के दिन किया जाएगा. इस दिन माँ लक्ष्मी जी की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है तथा साधक को श्री का आशिर्वाद मिलता है। इस दिन धन की अधिष्ठाती देवी महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भक्तों को व्रत रखकर रात्रि में माता लक्ष्मी का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।

शास्त्रों में देवी लक्ष्मी जी के स्वरुप को अत्यंत सुंदर और प्रभावि रुप से दर्शाया गया है। देवी लक्ष्मी की पूजा, दरिद्रता को दूर करने में सहायक होती है। देवी लक्ष्मी को वैभव की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। जीवन में धन की दिक्कत,  नौकरी या व्यवसाय में असफलता या खर्चों से आर्थिक तंगी से परेशान होने पर देवी लक्ष्मी की विशेष मंत्र से उपासना द्वारा माता लक्ष्मी की कृपा को प्राप्त किया जा सकता है।

लक्ष्मी पंचमी व्रत

श्री पंचमी के दिन देवी के अनेक स्त्रोतों जैसे कनकधारा स्त्रोत, लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी सुक्त का पाठ करना चाहिए. मान्यता है कि लक्ष्मी पंचमी पर की गई आराधना द्वारा लक्ष्मी का स्थाईत्व प्राप्त होता है तथा आराधना कभी निष्फल नहीं होती भक्तों की सच्ची श्रद्धा एवं निष्ठा भाव से की गई भक्ति श्रद्घालुओं को लाभ प्रदान करने वाली होती है.

श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को किया जाता है. वर्ष 2022 में यह व्रत 05 अप्रैल के दिन किया जाएगा. इस दिन माँ लक्ष्मी जी की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है तथा साधक को श्री का आशिर्वाद मिलता है. इस दिन धन की अधिष्ठाती देवी महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भक्तों को व्रत रखकर रात्रि में माता लक्ष्मी का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।

लक्ष्मी पंचमी व्रत कथा

आज लक्ष्मी पंचमी है और आज के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करते समय व्यक्ति को उनकी आरती और मंत्रों का जाप भी करना चाहिए। साथ ही लक्ष्मी पंचमी व्रत कथा भी पढ़नी चाहिए। तो आइए पढ़ते हैं यह व्रत कथा।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी देवताओं से रूठ गईं थीं और वो श्री सागर में जा मिलीं। मां लक्ष्मी के चले जाने से सभी देवता श्री विहीन हो गए। फिर देवराज इंद्र ने मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के बारे में सोचा। इंद्र ने मां को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। साथ ही विशेष विधि विधान के साथ पूजा और उपवास भी किया। जिस तरह से देवराज इंद्र ने मां की अराधना की उसका अनुसरण करते हुए अन्य देवी देवताओं ने भी मां लक्ष्मी का उपवास रखा।

देवताओं को देख असुरों ने मां लक्ष्मी की अराधना शुरू कर दी। मां लक्ष्मी अपने भक्तों की भक्ति से बेहद प्रसन्न हो गईं और व्रत समाप्ति के पश्चात पुन: उत्पन्न हुईं। इसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु से उनका विवाह संपन्न हुआ। देवगण एक बार फिर से श्री की कृपा पाकर धन्य हो गए। जिस तिथि को मां पुन: उत्पन्न हुई थीं वह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। यही कारण है कि यह तिथि लक्ष्मी पंचमी के नाम से जानी जाती है। यह दिन इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि यह दिन नवरात्रि से भी पांचवां दिन माना जाता है।

श्री लक्ष्मी पंचमी पूजन

धन-संपदा व समृद्घि की प्राप्ति के लिए श्री लक्ष्मी पंचमी का पूजन किया जाता है। लक्ष्मी जी को धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है। लक्ष्मी जी जिस पर भी अपनी कृपा दृष्टि डालती हैं वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, के रूपों से मुक्त हो जाता है, समस्त देवी शक्तियों के मूल में लक्ष्मी ही हैं जो सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति हैं।

श्री लक्ष्मी उपासना विधि

श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत को विधि को आरंभ करने से पूर्व सर्वप्रथम प्रात:काल में स्नान आदि कार्यो से निवृत होकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है। व्रत का संकल्प लेते समय मंत्र का उच्चारण किया जाता है।

पूजा के दौरान माता का विग्रह सजाकर उसमें माता की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। श्री लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराया जाता है तत्पश्चात उनका विभिन्न प्रकार से पूजन किया जाता है।

पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के भोग रखे जाते है। इसके बाद व्रत करने वाले उपवासक को ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और दान- दक्षिणा दी जाती है व इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है। जो इस व्रत को करता है, उसे अष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस व्रत को लगातार करने से विशेष शुभ फल प्राप्त होते है। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. केवल फल, दूध, मिठाई का सेवन किया जा सकता है।

समस्त धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी कोमलता की प्रतीक हैं, लक्ष्मी परमात्मा की एक शक्ति हैं वह सत, रज और तम रूपा तीन शक्तियों में से एक हैं। महालक्ष्मी प्रवर्तक शक्ति हैं जीवों में लोभ, आकर्षण, आसक्ति उत्पन्न करती हैं धन, सम्पत्ति लक्ष्मी का भौतिक रूप है. लक्ष्मी जी का नित्य पूजन, आरती कष्टों से मुक्ति प्रदान करती है।