यह अलग बात है कि विधानसभा चुनाव खत्म होते ही अखिलेश यादव अपने चाचा की अनदेखी करने लगे। यहां तक सपा विधायकों की बैठक तक में उन्हें न्योता नहीं दिया। ऐसे में अब अब भतीजे की अनदेखी से शिवपाल सिंह यादव फिर नाराज और अपमानित महसूस कर रहे है। ऐसे में बीजेपी नेताओं से उनकी मुलाकात के गहरे निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। बीजेपी आलाकमान ने उनके आने के बाद की रणनीति तैयार कर ली है। सूत्रों की मानें तो बीजेपी में शामिल होते ही उन्हें राज्यसभा भेज दिया जाएगा। इसके साथ ही 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शिवपाल को बड़े यादव नेता बतौर सूबे की राजनीति में पेश किया जाएगा।
लखनऊ(ब्यूरो), डेमोरेटिक फ्रंट :
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के चीफ शिवपाल सिंह यादव की यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद सियासी पारा चढ़ा हुआ है। वहीं, सवाल उठ रहा है कि क्या चाचा एक बार फिर अपने भतीजे और सपा प्रमुख अखिलेश यादव से नाराज हैं? यह अटकलें लगना भी लाजमी था, क्योंकि विधानसभा चुनाव में हार के बाद सपा विधायकों की बैठक में उनको नहीं बुलाया गया था। वहीं, चर्चा है कि भाजपा शिवपाल सिंह यादव को राज्यसभा सांसद बना सकती है।
यूं तो चाचा शिवपाल यादव और अखिलेश यादव में साल 2017 विधानसभा चुनाव से ही तल्खी जारी है। मुलायम सिंह यादव के बाद सपा में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले शिवपाल ने तब न सिर्फ पार्टी से अलग होने का फैसला किया था बल्कि उन्होंने अपनी अलग पार्टी ही बना ली थी। पार्टी का नाम प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहियावादी) रखा गया। सपा की बागडोर मुलायम के हाथ से अखिलेश के हाथ में जाने के बाद से ही शिवपाल बागी होने लगे थे। हालांकि, प्रसपा के गठन से भी शिवपाल को कोई खास लाभ नहीं हुआ।
साल 2022 के चुनाव में चाचा-भतीजे के बीच दूरियां कुछ कम हुईं। शिवपाल ने स्वीकार किया कि उन्होंने अखिलेश को अपना नेता मान लिया है। उन्होंने दावा भी किया कि साल 2022 के चुनाव के बाद अखिलेश मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। हालांकि, अखिलेश की ओर से फिर भी बड़ा दिल दिखाने का काम नहीं किया गया। मुलायम सिंह के कहने पर शिवपाल ने सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना स्वीकार कर लिया लेकिन अखिलेश ने प्रसपा को एक भी सीटें नहीं दीं। शिवपाल को जसवंतनगर सीट से सपा के सिंबल पर चुनाव लड़वाया गया। बताते हैं कि वह इस बात से भी अखिलेश से नाराज थे। प्रसपा को एक भी सीट न मिलने से नाराज पार्टी के कई नेता अन्य दलों में शामिल हो गए थे।
चुनाव में सपा को मिली हार के बाद अखिलेश ने अपनी सांसदी छोड़ दी और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने का फैसला किया। इसके लिए पार्टी के विधायक दल की मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में शिवपाल को न्योता नहीं दिया गया। इसको लेकर प्रसपा प्रमुख ने जमकर नाराजगी जताई और कहा कि वह इस मीटिंग के लिए दो दिन से लखनऊ में रुके हुए थे। मीटिंग में न बुलाए जाने से नाराज शिवपाल इटावा चले गए। सपा ने सफाई दी कि यह सिर्फ समाजवादी विधायकों की मीटिंग थी और इसमें गठबंधन के अन्य दलों को नहीं बुलाया गया था। इस पर शिवपाल का कहना था कि उन्होंने सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ा था और समाजवादी पार्टी को लेकर वह काफी ऐक्टिव थे। ऐसे में उन्हें मीटिंग में बुलाया जाना चाहिए था।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इसके अलावा 24 मार्च को शिवपाल ने अखिलेश से मुलाकात कर उनसे सपा में अहम जिम्मेदारी मांगी थी। अखिलेश ने इससे भी मना कर दिया और चाचा को अपनी पार्टी प्रसपा का जनाधार बढ़ाने की सलाह दे दी। शिवपाल अपने बेटे आदित्य यादव को भी राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं लेकिन वे ऐसा करने में अब तक विफल साबित हुए हैं। वस इसी चुनाव में आदित्य के लिए टिकट चाहते थे लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी यह इच्छा भी नहीं मानी।
इन सब बातों से आहत शिवपाल सपा को बड़ा झटका देने के मूड में हैं। इसी क्रम में उनकी सीएम योगी आदित्यनाथ से 20 मिनट की मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है। बुधवार को मुख्यमंत्री के सरकारी आवास 5 कालिदास मार्ग पर शिवपाल की योगी से मुलाकात हुई। इसके ठीक बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और योगी सरका में मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह भी वहां पहुंचे। इसके बाद उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल तेज हो गई है। शिवपाल के बहू अपर्णा की तरह बीजेपी में जाने के कयास तेज होने लगे हैं।
माना जा रहा है कि बीजेपी में शामिल होने के बाद शिवपाल यादव को राज्यसभा भेजा जा सकता है। उनकी जगह पर जसवंतनगर सीट से उनके बेटे आदित्य को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। जसवंतनगर न सिर्फ सपा की सेफ सीट है बल्कि वहां शिवपाल का दबदबा है। मोदी-योगी लहर में भी पिछले दो विधानसभा चुनाव से शिवपाल इस सीट से विधायक बनते आ रहे हैं। ऐसे में बेटे के लिए यूपी की सियासत में यह एक सुरक्षित ओपनिंग हो सकती है।
दूसरी संभावना यह है कि शिवपाल को आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव में भी उतारा जा सकता है। अखिलेश ने आजमगढ़ से सांसद पद से इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद 6 महीने के भीतर वहां उपचुनाव होना है। माना जा रहा है कि शिवपाल को वहां से उतारकर बीजेपी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सपा पर एक और सकारात्मक बढ़त बनाना चाहती है। शिवपाल की सपा कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ है और आजमगढ़ की सीट सपा की सुरक्षित सीट मानी जाती है। ऐसे में वहां से अगर बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर शिवपाल को उतारा जाता है तो यह सपा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।