हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के प्रधान एवं उपप्रधान के खिलाफ जांच शुरु
- एनएचएम के एमडी (आइएएस) प्रभजोत सिंह को दी जांच
- रजिस्ट्रार एवं सदस्यों ने दर्ज करवाए ब्यान
- -फार्मेसी एक्ट एवं माननीय हाई कोर्ट के आदेशों की हो रही है अवहेलना
पंचकूला 14 मार्च:
हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के प्रधान धनेश अदलखा एवं उप-प्रधान सोहन लाल कंसल के खिलाफ काउंसिल रजिस्ट्रार एवं सदस्यों की ओर से नियमों के उल्लंघन करने के संबंध में हरियाणा के मुख्यमंत्री को दी गई शिकायत पर जांच शुरु हो गई है। नैशनल हैल्थ मिशन हरियाणा के एमडी (आइएएस) प्रभजोत सिंह द्वारा मामले में जांच की जा रही है। प्रभजोत सिंह के समक्ष शिकायतकर्ता रजिस्ट्रार एवं सदस्यों अरुण पराशर, बीबी सिंगल, पूर्व प्रधान केसी गोयल, रविंद्र चौपड़ा, सुरिंद्र सालवान, यश पाल सिंगला ने हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल प्रधान, उप-प्रधान द्वारा की जा रही अनियमितताओं पर अपने ब्यान दर्ज करवाए। प्रभजोत सिंह ने कहा कि मामले में निष्पक्ष जांच के बाद आगामी कार्रवाई की जाएगी।
पूर्व प्रधान केसी गोयल ने आइएएस अधिकारी को बताया कि 1 मार्च 2019 को कौंसिल की कार्यकारिणी की मीटिंग नियम 14 एवं 15 के तहत जरूरी नोटिस के साथ एजेंडा जारी किये बिना ही बुलाई गयी इस मीटिंग में कौंसिल के प्रधान व् उप प्रधान का चुनाव का न तोह कोई प्रस्ताव था और न ही चुनाव किया गया, लेकिन गजब की बात है उस मीटिंग में धनेश अदलखा मौजूद ही नहीं थे। स्वास्थ्य विभाग की फाइल संख्या के माध्यम से एक नोटिंग को यह कहते हुए भेजा गया था कि फार्मेसी काउंसिल की बैठक में 1 मार्च 2019 को धनेश अदलखा को प्रधान और सोहन कांसल को उप-प्रधान के रूप में अधिसूचित किया जाए। जिसके बाद हरियाणा सरकार ने धनेश अदलखा को प्रधान एवं सोहन लाल कांसल उपाध्यक्ष के रुप में 6 मार्च 2019 को अधिसूचित किया।
आरटीआई सूचना के अध्ययन के दौरान इस मामले में कई अनियमितताएं मिली
बैठक में 9 सदस्यों का उल्लेख किया गया है और सरकार को लिखे पत्र में केवल सात सदस्यों को उपस्थित दिखाया गया उन सदस्यों को हाजिर दिखाया जो कौंसिल के सदस्य ही नही थे और गजब की बात मीटिंग में उपस्थित तीन सरकारी अधिकारी जो मीटिंग में मौजूद थे उनके नाम काट दिए गये ।उन सदस्यों को बैठक में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के नाम प्रस्तावित होने का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और राज्य सरकार को गुमराह किया गया है और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।
सोहन लाल को राज्य सरकार द्वारा 6 मार्च 2019 के बाद न तो अध्यक्ष के रूप में और ना ही रजिस्ट्रार के रूप में अधिसूचित किया गया था और धनेश अदलखा को हरियाणा राज्य फार्मेसी परिषद के सदस्य के रूप में नामित होने के बाद 17 मार्च 2020 के बाद अध्यक्ष के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया था। राज्य सरकार के अनुसार धनेश अदलाखा को 17 मार्च 2020 के बाद से अध्यक्ष, हरियाणा राज्य फार्मेसी परिषद के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है, इसलिए तब से अध्यक्ष के रूप में अवैध तौर पर काबिज हैं। उनके कार्यभार संभालने के बाद अत्यधिक आपत्तिजनक तौर पर खर्च किया गया।
इन सदस्यों ने ब्यानों में बताया है कि सोहन लाल को राज्य सरकार द्वारा 6 मार्च 2019 के बाद न तो अध्यक्ष के रूप में और न ही रजिस्ट्रार के रूप में अधिसूचित किया गया था। हरियाणा राज्य फार्मेसी परिषद नियम 1951 (नियम 141) के अनुसार, बैंक पर सभी चेक पर हस्ताक्षर अध्यक्ष या और रजिस्ट्रार द्वारा किए जा सकता है , लेकिन धनेश अदलखा और सोहन कंसल में से कोई भी परिषद के बैंक खातों को संचालित करने के लिए सक्षम नहीं था, बावजूद इसके 17 नवंबर 2020 से 4 अक्टूबर 2021 तक, उन्होंने नियमों का उल्लंघन करते हुए बैंक खातों का संचालन किया था। नियम 135, 137, 138 कि अवहेलना से खर्च कर दिए गये लगभग पांच करोड़ रुपये
काउंसिल के रजिस्ट्रार राज कुमार वर्मा द्वारा 10 जनवरी 2022 को मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को शिकायत देकर कार्यालय के कामकाज की दयनीय स्थिति का वर्णन किया गया है। रजिस्ट्रार को फार्मेसी अधिनियम और हरियाणा राज्य फार्मेसी परिषद नियम 1951 के अनुसार कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। अध्यक्ष का रजिस्ट्रेशन पर हस्ताक्षर करने से लेकर सभी तरह का नियंत्रण है। जो अवैध है
सदस्यों को किसी भी बैठक का कोई कार्यवृत्त भेजा नहीं जा रहा है। यहां तक कि सदस्यों को कार्यालय से लंबित आवेदनों की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिलती है। रजिस्ट्रार के पास आधिकारिक डाक तक नहीं जाने दी जाती, इसलिए फाइलों में हेरफेर किया जा रहा है। वर्ष 2019 से 2020 तक, लगभग 18 महीनों तक, उन छात्रों का कोई पंजीकरण नहीं हुआ, जो हरियाणा राज्य के बाहर से बारहवीं/फार्मेसी उत्तीर्ण हैं। आवेदकों के कई अभ्यावेदन के बावजूद 2019 से नए पंजीकरण के लिए कई आवेदन लंबित हैं, इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। कई बार आवेदकों को बिना कोई कारण बताए आवेदन प्राप्त करना बंद कर दिया जाता है, जिससे उन्हें परेशान किया जाता है और इस प्रकार नौकरियों के लिए कीमती समय और अवसरों को खो दिया जाता हैै। अध्यक्ष धनेश अदलखा अपनी मर्जी से कार्यालय चला रहे हैं। कई सीएम विंडोज़ पर शिकायतें दर्ज की गई हैं, लेकिन कोई जबाव नहीं दिया।
अरुण पराशर, बीबी सिंगल, सुरेंद्र सालवान,रविंदर चोपड़ा केसी गोयल ने अपने ब्यानों में कहा है कि हरियाणा में अब चर्चा है कि राज्य फार्मेसी काउंसिल में पंजीकृत होने के लिए 50 हजार से 80 हजार रुपये रिश्वत के रूप में देने पड़ते हैं, खासकर उन छात्रों को जिन्होंने हरियाणा राज्य के बाहर से बारहवीं/ फार्मेसी पास की है। 20 मार्च 2022 को हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने भ्रष्ट आचरण की ओर इशारा करते हुए फार्मेसी काउंसिल के कामकाज पर अपनी नाराजगी दर्ज करते हुए एक आदेश पारित किया। रिकॉर्ड सीधे करने के लिए या कभी-कभी अदालतों के हस्तक्षेप पर छात्रों का नया पंजीकरण किया जाता है, लेकिन भेजा नहीं जाता है, केवल चयनित आवेदकों को पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है, बाकी को कार्यालय में रखा जाता है। निशु नाम की एक महिला कार्यालय में अवैध तोर पर काम कर रही है, डायरी और प्रेषण जैसे संवेदनशील काम संभाल रही है।
मोनिका नाम की काउंसिल की एक कर्मचारी नवंबर 2020 से परिषद की नियमित कर्मचारी है, लेकिन साथ ही वह 2019-21 बैच में बीआर अंबेडकर कॉलेज, कुरुक्षेत्र से नियमित बी.एड पाठ्यक्रम कर रही है, जोकि नियमों के खिलाफ है। हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल में फार्मेसी अधिनियम और नियमों का उल्लघंन किया जा रहा है, जिससे राज्य में 45000 फार्मासिस्टों के बीच राज्य सरकार की छवि और विश्वसनीयता खराब हो रही है।