सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने केंद्रीय कृषि मंत्री के बयान की कड़ी आलोचना की – दीपेंद्र हुड्डा
- चुनाव बाद एमएसपी पर कमेटी बनाने का बयान किसानों के साथ धोखा – दीपेंद्र हुड्डा
- ऐसे बयानों के कारण ही किसान का विश्वास इस सरकार से पूरी तरह उठा – दीपेंद्र हुड्डा
- चुनाव की आड़ लेकर समझौते से पीछे भागना चाहती है सरकार – दीपेंद्र हुड्डा
- 9 दिसंबर, 2021 के समझौते में किसानों से किया वायदा तुरंत पूरा करे सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा
- समझौते में किसानों से किया वायदा भाजपा के अन्य वायदों की तरह जुमला तो साबित नहीं हो जायेगा? – दीपेंद्र हुड्डा
चंडीगढ़, 4 फरवरी:
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के राज्य सभा में दिये गये उस बयान की कड़ी आलोचना की है, जिसमें उन्होंने कहा कि 5 राज्यों के चुनाव के बाद एमएसपी पर कमेटी की घोषणा की जायेगी। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि ऐसे बयानों के कारण ही देश के किसान का विश्वास इस सरकार से पूरी तरह उठ गया है, जो कि अच्छे संकेत नहीं हैं। उन्होंने आशंका जताई कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसानों के साथ सरकार द्वारा किया हुआ वायदा अन्य वायदों की तरह ही जुमला साबित हो जायेगा। सरकार कोई ऐसा बयान न दे जिससे किसानों का भरोसा सरकार से पूरी तरह उठ जाए। ऐसा लगता है कि सरकार 5 राज्यों के चुनाव की आड़ लेकर समझौते से पीछे भागना चाहती है। दीपेंद्र हुड्डा ने मांग करी कि सरकार एमएसपी पर कमेटी की घोषणा तुरंत करे व समझौते को पूरी तरह लागू करे।
उन्होंने कहा कि जिन मांगों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच सहमति बनी थी उनको पूरा करने में सरकार कोई रूचि नहीं दिखा रही है। सरकार के साथ 9 दिसंबर, 2021 के जिस समझौता पत्र के आधार पर किसान आन्दोलन स्थगित हुआ था, सरकार ने उनमें से कोई वादा अब तक पूरा नहीं किया है। बल्कि अब विधानसभा चुनावों के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कमेटी बनाने की बात कह रही है। ये किसानों के साथ सरासर वायदाखिलाफी है।
दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि देश के किसानों ने सर्दी, गर्मी और बरसात में खुले आसमान के नीचे कठिन रातें गुजारी, तमाम सरकारी प्रताड़ना और अपमान सहे। धरनों पर करीब 700 किसानों के शव एक के बाद एक करके उनके गाँव जाते रहे, लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया और शांति व अनुशासन के मार्ग को नहीं छोड़ा। सरकार इस प्रकार के बयान देकर किसानों के धैर्य की परीक्षा न ले और न ही उन्हें उकसाने का काम करे। सरकार चुनाव की आड़ लेकर समझौते से भागने की कोशिश न करे।