परिवारवाद – वंशवाद का दंश झेलती कांग्रेस, उत्तराखंड में फिर टूट गया ‘एक परिवार-एक टिकट’
दिसंबर के आखिरी दिनों में जब टिकटों को लेकर कांग्रेस के भीतर मामला अटक रहा था, तब हरीश रावत ने कांग्रेस से संन्यास लेने तक का मन ज़ाहिर कर दिया था। तब दिल्ली में उत्तराखंड के नेताओं को आलाकमान ने बुलाकर साफ तौर पर रावत की अगुवाई में चुनाव लड़ने की बात कहकर उनकी स्थिति मज़बूत की। फिर भाजपा की पहली सूची के बाद कांग्रेस ने उम्मीदवारों की जो सूची जारी की, उसमें साफ तौर पर हरीश रावत का दखल नज़र आया।
डेमोक्रेटिक फ्रंट(ब्यूरो) उत्तराखंड/नयी दिल्ली:
कांग्रेस उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में टिकट वितरण को लेकर सख्त रवैया अपनाए हुए है। पार्टी अनेक बार कह चुकी है कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलेगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी अपनी देहरादून रैली के बाद हुई कांग्रेस की बैठक में भी इस बात को कह चुके हैं। लगता है पार्टी और उसके नेता के कहे का असर उत्तराखंड कांग्रेस के कुछ सीनियर लीडरों के परिवारों पर नहीं हो रहा है।
कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार आज दौर से गुजर रही है उसमें एक परिवार-एक टिकट का उच्च स्थापित नैतिक प्रतिमान टिकता ही कितने दिन। तो टूट गया। जी-23 के निशाने पर तो सोनिया गांधी – राहुल गांधी – प्रियंका गांधी खुद हैं। वंशवाद और परिवारवाद के लिए कांग्रेस विरोधियों के निशाने पर रही है और अब अपनों के निशाने पर। सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं और कार्यकारी अध्यक्ष। राहुल गांधी वायनाड से सांसद हैं। पूर्व अध्यक्ष हैं पर मां की बढ़ती उम्र और सेहद का ध्यान रखते हुए पार्टी में अहम फैसले लेते हैं। महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ज़ोर आजमाईश कर रही हैं। जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजी तो पार्टी के भीतर अनुशासन के लिए तय किया गया कि एक परिवार से किसी एक को ही टिकट मिलेगा। उत्तराखंड और पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए तो इसे तय माना गया। आज से ठीक 15 दिन पहले देहरादून में उत्तराखंड इलेक्शन इंचार्ज अविनाश पांडे ने ये बात दोहराई पर थोड़ी ढील देकर कि जिस परिवार में पहले से दो विधायक हैं उनका टिकट कैसे काटा जाए।
पंजाब में तो इस पर सख्ती दिखी। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपने भाई के लिए बस्सी पठाना की सीट चाह रहे थे। पर आलाकमान ने मना कर दिया। उनके भाई मोहन सिंह ने अब निर्दलिय मैदान में उतरने का मन बना लिया है। वह मौजूदा विधायक गुरप्रीत सिंह जीपी के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे। जब पूछा गया तब पंजाब के पहले दलित सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि वह अपने भाई को समझाएंगे। और जब 25 जनवरी को कांग्रेस ने 23 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की तो अपवाद सामने आ गया। पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल संगरूर के लेहरा से पहले ही उम्मीदवार घोषित हो चुकी हैं, दूसरी लिस्ट में उनके दामाद विक्रम बाजवा को भी सहनेवाल से टिकट मिल गया है। चरणनजीत सिंह चन्नी परिस्थितियों के सीएम हैं, तो चुप ही रहेंगे लेकिन पार्टी ने चोला बदल दिया।
उत्तराखंड में तो अविनाश पांडे ने एक अपवाद 11 जनवरी को ही बता दिया ता। यशपाल आर्य और संजीव आर्य। पुष्कर सिंह धामी कैबिनेट में समाज कल्याण और परिवहन मंत्री रहे यशपाल आर्य भाजपा छोड़ बेटे समेत कांग्रेस में शामिल हुए थे। दोनों विधायक हैं। लिहाजा उत्तराखंड में वापसी की कोशिश कर रही पार्टी पहले ही तय कर चुकी होगी कि दोनों का टिकट बरकरार रहेगा। वही हुआ भी। यशपाल आर्य तो बाजपुर से पर्चा भी दाखिल कर चुके हैं। बेटा संजीव आर्य नैनीताल से उम्मीदवार बनाया गया है।
पर सिलसिला थमा नहीं। भाजपा से ही कांग्रेस में पहुंचे हरक सिंह रावत की बहू अनुकृति गुसाईं को लैंसडाउन से पार्टी उम्मीदवार बनाया है। हालांकि हरक सिंह रावत पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है पर इस कद्दावर नेता को टिकट मिलना तय माना जा रहा है। पिछला चुनाव उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर कोटद्वार से जीता था। एक परिवार-एक टिकट का सारा फॉर्म्युला 26 जनवरी की आधी रात धरा का धरा रह गया जब पार्टी ने सीएम उम्मीदवार और प्रचार समिति के अध्यक्ष हरीश रावत के साथ उनकी बेटी को भी उम्मीदवारों की सूची में स्थान दे दिया। हरीश रावत लालकुंआ से और उनकी बेटी अनुपमा रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट से मैदान में होंगी।
परिवार को ध्यान रखना कांग्रेस की मजबूरी है। सैद्धांतिक धरातल पर ऐसे प्रतिमान शीर्ष पर गढ़े जाते हैं। जब कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही परिवारवाद के बूते पार्टी चलाना चाहता हो तो पार्टी धरातल पर उससे अलग प्रतिमान कैसे गढ़ सकती है। खासकर ऐसे समय में जब कांग्रेसमुक्त भारत अभियान चल रहा है। पार्टी उत्तराखंड मेें वापसी चाहती है और पंजाब में बने रहने की लड़ाई लड़ रही है। क्या रामनगर सीट काटने के बाद हरीश रावत को रूठने से रोकने का कोई और जरिया था। शायद नहीं, इसलिए बेटी को टिकट दिया गया। ऐसी ही मजबूरियों से पार्टी अभी और दो-चार हो सकती है।