वक्ता सिर्फ एक ही है, हम उनकी बात पहुंचाने का जरिया हैं : विवेक
सत संगत प्यार से बोलिए धन निरंकार । साथ संगत ।
आदरणीय महात्मा जी ने नाम एनाउंस किया कि शौक जी बोलेंगे और इसके बाद फिर हम हजूर सच्चे बादशाह से विचार परवान करेगें ।
दास को ऐसा लगा जैसे किसी ने कह दिया हो कि अब हम ये मोमबत्ती जला रहे हैं और इसके बाद सूर्य उदय होगा जहां सतगुरु बाबा जी का आशीर्वाद हमें मिलना हैं वहां कौन विवेक शौक और कौन वक्ता ।
हम तो दरअसल सभी श्रोता हैं साध संगत । वक्ता केवल एक ही होता है बाकी थोड़ा बहुत अगर ये कह लें कि जब तक ये नमस्कार चल रही है, जब तक इन्तजाम हो रहे हैं, जब तक इन भक्तों ने भगवान के दर्शन करने हैं उस समय तक सिर्फ समय को निकालने के लिए हम बाबाजी का संदेश पहुंचाते हैं या आपस में अपने कुछ तजुर्बे बयान करते हैं ये तो अलग बात है कि वक्ता तो हम नहीं हैं ।
दास कई बार कहा करता है कि ये माइक्रोफोन अगर मेरे सामने पड़ा है तो ये माइक्रोफोन अपने आपको वक्ता नहीं समझ सकता । बोलने वाला बोल रहा है ये माइक्रोफोन आगे स्पीकर के जरिए, एम्प्लीफायर के जरिए सिर्फ उस आवाज को एम्प्लीफाइ करके पहुँचाता है । इसी तरह से अगर बाबाजी की बात किसी ने भी हम तक पहुँचा दी तो वह वक्ता नहीं वो सिर्फ संदेशवाहक है सिर्फ उस बात को कहने के लिए एक जरिया बन गया लेकिन उसमें भी तालियां बज जाती हैं ।
उसमें भी वाह वाह हो जाती है, बख्शीश करो साध संगत । ये बात हमें याद रहे । इन्हीं की कृपा से सजे हम हैं नहीं तो मुंह कई करोड़ पड़े हैं । ये रहमत कर दें, ये बख्शीश कर दें ये किसी को वो ज्ञान वाली नज़र दे दें तो वह हवा हो जाती है और जिस दिन इंसान ये समझ ले साध संगत कि मैं अपने कर्म से कुछ कर लूँगा उसी दिन मुंह की खानी पड़ती है । इन्होंने तो अपना कर्म कर दिया ।
इन्होंने तो जो हमें सच्चाई के साथ जोड़ना था वो जोड़ दिया । अब उसके बाद आगे मैं क्या करता हूं । वो देखना पड़ेगा । आज मॉडर्न जमाना है । लोग धार्मिक बातें पसंद नहीं करते । हमारी यंगर जनरेशन का जमाना है । जो कहते है हमें तो आज की बात बताइये । हमें नहीं मालूम इतिहास में क्या हुआ हमें नहीं मालूम कि कैसे द्रोपदी की लाज रखी । हमें नहीं मालूम कि भीलनी के झूठे बेर कैसे खाए । आज जमाना है आज के दौर का ।
आज के दौर की ही बात समझ में आती है इसलिए वही बात करता हूं । और उसमें हर्ज भी नहीं, क्योंकि साध संगत जब प्रभु पिता परमात्मा हर जगह है तो हर जगह से लिया जा सकता है हर जगह देखा जा सकता है ।
आज मैकडोनल्ड्स जमाना है आज सबवे का जमाना है । आपने भी देखा होगा दास ने एक नजारा देखा वो आपके चरणों में रहना चाहता हूं । एक सबवे में सैंडविच बनवाने के लिए खड़ा हुआ । आपने भी बहुत बार देखा होगा दास ने भी देखा । आजकल हाइजीन का इतना ख्याल रखा जाता है कि वो पॉलिथीन के दस्ताने पहन के आपके लिए सैंडविच बनाते हैं ताकि हाथ की मैल या कोई किसी किस्म का कोई बैक्टीरिया जो है वो आपके सैंडविच में न चला जाए शुद्ध रहे ।
वो पॉलिथीन का ग्लब्स पहन के जो सैंडविच बनाया जाता उसको बहुत साफ माना जाता है । दास भी खड़ा हुआ है पंक्ति में। सब से उनका ऑर्डर लेकर उनका सेंडविच बनाया जा रहा है । उनमें से एक जो सेल्समैन था उसने किसी का सेंडविच बनाया और उसने वो दस्ताना भी पहना हुआ था । दास की नजर गई तो एक नया नजारा देखा ।
वो पॉलिथीन का दस्ताना उसने पहना हुआ है सेंडविच बनाने के बाद । उस दस्ताने को पहने पहने वो अपने कानों में उंगली डाल कर खड़ा था । अब क्या करें । पहनाने वाला तो हमें सिर्फ़ पॉलिथीन का दस्ताना पहना सकता है उसके बाद भी अगर उंगली हमने कान में ही डालनी है तो कौन मैल से बचाएगा ।
ये तो हमें ज्ञान ही दे सकते हैं । ये तो हमें सच्चाई से ही जोड़ सकते हैं कि भाई इस दुनिया के झूठ को छोड़ गए उसे त्याग के सच्चाई से जुड़ जाओ अब ज्ञान लेने के बाद भी अगर मैंने नाक में कान में उंगली डालनी है तो फिर वो दस्ताना भी क्या कर लेगा । आदत नहीं जाती । वो जिस वैर विरोध नफरत निंदा से छुड़ा के हमें यहां लाए, यहां आने के बाद मैने यहां भी अगर वही काम करना है कि उसने क्या पहना उसने क्या खाया वो कैसा दिखता है वो कैसे झुकता है वो कैसे आता है किसके साथ आता है तो यूं समझ लीजिए कि दस्ताना पहन के मैंने फिर मेल में अपनी उंगली डाल दी । साथ संगत ।
समय इतना आगे बढ़ चुका है कि जो एक एक शब्द भी बोल रहा हूं गुस्ताखी है । ये बातें तो साध संगत इनकी बातें हैं जो कभी खत्म ही नहीं होंगी । रातभर भी चलता रहे तो समय देखने का समय नहीं मिलेगा लेकिन साध संगत आज यहीं विराम देते हुए बहुत
लंबी बात न कहते हुए दास आप सभी महात्माओं से क्षमा याचना का प्रार्थी है कि कृपा करो जहां ये जोड़ रहे हैं वहां मैं जुड़ पाऊं । मेरी हालत उस भिखारिन जैसी न हो जाए जिसके बारे में सुना करते थे कि वो मांग मांग के निवाले खाती थी और किसी राजा को तरस आ गया उसने रानी बना दिया ।
रोटी के समय उठकर चली जाती थी मेज से दो तीन चार बार देखा। एक बार राजा ने कहा देखूं ज़रा इसे करती क्या है तो देखा साथ वाले कमरे में एक आला (अलमारी) बना हुआ था । वहां पर रोटी के निवाले रखे वहां खड़ी कह रही, आला दे निवाला! आला दे निवाला! भीख मांग के खाने की आदत नहीं गई इसने तो रानी बना दिया लेकिन अंदर से भिखारी रह गई।
बख्शीश करो इन्होंने अपना कर्म कर दिया है हम भी थोड़ा थोड़ा अपने कर्म की ओर ध्यान दें और वो भी इन्हीं के आशीर्वाद से होगा । इनसे आज यही दुआ यही याचना करता हूं कि हम सब को जो आपने ये नामदान दिया है इस सच्चाई के साथ जोड़ा है तो मुझे वो नजर भी दे मुझे वो सोझा भी दे ।
मुझे वो समझ भी दे कि मैं उसे अपने जीवन में अपना सकूं क्यूंकि ये हथियार इस्तेमाल करने के लिए होते हैं । अलमारी में संभाल के रखने के लिए नहीं होते । बगैर कपड़ों के सिर्फ अंडरवियर पहन के एक आदमी रो रहा था ।
अपने बेड पर बैठा हुआ और कह रहा था कि मुझे चोरों ने लूट लिया मेरा सब कुछ लुट के ले गए मेरे कपड़े तक उतरवा के ले गए तो किसी ने कहा सबकुछ लूट लिया नहीं एक चीज मैंने बचा ली । बोला वो कौन सी, तो तकिये के नीचे से पिस्तौल निकाल कर कहता ये पिस्तौल मैंने फौरन तकिये के नीचे रख दी तो किसी ने कहा बेटा ये पिस्तौल निकाला होता तो सब कुछ बच जाता । हमारी समस्या ये है साध संगत जी हम समय आने पर पिस्तौल का इस्तमाल नहीं करते उसे तकिए के नीचे छिपा देते हैं । ये निराकार का ज्ञान बचाने के लिए नहीं है इस्तमाल के लिए है ।
अपनी ज़िन्दगी के छोटे से छोटे मोड़ पे इसे इस्तेमाल करें और फिर सतगुरु का आशीर्वाद हमारे साथ है ।
साध संगत प्यार से बोलिए धन निरंकार जी।