सरकार पहले भर्ती घोटाले करती है और फिर खानापूर्ति की जांच का शोर मचाकर मामले को रफादफा कर देती है- बुद्धिराजा
- नोटों का बोरा, पेपर रखो कोरा, भर्ती हो जाएगा छोरा, ईमानदारी का पीटो ढींढोरा
- HPSC व HSSC भर्ती घोटालों की सीबीआई या हाई कोर्ट के सिटिंग जज से जांच की मांग को लेकर मुख्यमंत्री आवास चंडीगढ़ पहुंची यूथ कांग्रेस
- दो घंटे इंतजार करवाने के बाद भी मांगपत्र लेने नहीं पहुंचे सीएम और उनका स्टाफ
- सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम, मांग नहीं मानी तो HPSC पर चढ़ाई करेगी यूथ कांग्रेस- बुद्धिराजा
- अगर मुख्यमंत्री निष्पक्ष जांच नहीं करवाते तो उनकी भूमिका पर सवाल उठना लाजमी- बुद्धिराजा
- चोर मचाए शोर’ की नीति पर काम कर रही है खट्टर सरकार- बुद्धिराजा
30 नवंबर, चंडीगढ़ः
प्रदेश यूथ कांग्रेस अध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा ने पद संभालते ही भर्ती घोटालों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनके नेतृत्व में आज मांगपत्र लेकर यूथ कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री खट्टर के आवास पहुंचा। इसमें एचपीएससी और एचएसएससी भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई या हाई कोर्ट के सिटिंग जज से करवाने की मांग थी। लेकिन मुख्यमंत्री आवास पर 2 घंटे इंतजार करवाने के बाद भी यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मिलने ना मुख्यमंत्री पहुंचे और ना ही उनके स्टाफ का कोई सदस्य।
इसपर रोष जाहिर करते दिव्यांशु बुद्धिराजा ने कहा कि मुख्यमंत्री के रवैए से साफ है कि वो मामले की जांच से भाग रहे हैं। लेकिन यूथ कांग्रेस ने सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो यूथ कांग्रेस 3 दिन बाद एचपीएससी की चढ़ाई करेगी। बुद्धिराजा ने कहा कि सरकार भर्ती घोटाले में शामिल उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों और सत्ताधारियों को बचाने में लगी हुई है। सरकार एचपीएससी भर्ती घोटाले को भी एचएसएससी ‘कैश फॉर जॉब’ घोटाले की तरह रफा-दफा करना चाहती है। इतने दिन बाद भी रिमांड के दौरान विजिलेंस घोटाले के आरोपियों से उपयुक्त बरामदगी नहीं कर पाई। कोर्ट की तरफ से आरोपियों का रिमांड खारिज करते हुए जो टिप्पणी की गई है उससे साफ है कि विजिलेंस सरकार के दबाव में पूरे मामले को दबाना चाहती है। इसमें कहा गया है कि विजिलेंस की मंशा ही नहीं है कि वह दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाए।
बुद्धिराजा ने कहा कि यह सरकार ‘चोर मचाए शोर’ की नीति पर काम कर रही है। सरकार पहले भर्ती घोटाले करती है और फिर खानापूर्ति की जांच का शोर मचाकर मामले को रफादफा कर देती है। खट्टर सरकार के दौरान दो दर्जन से ज्यादा भर्तियों के पेपर लीक हो चुके हैं। लेकिन अब तक एक भी मामले में दोषियों को सजा नहीं हुई है। कांग्रेस की तरफ से बार-बार पेपर लीक, खाली ओएमआर शीट, कैश फॉर जॉब और फर्जी सॉल्वर जैसे घोटालों की जांच करवाने की मांग उठाई गई। लेकिन बार-बार मुख्यमंत्री की तरफ से इन आरोपों को नकारते हुए भर्ती माफिया को क्लीन चिट दे दी गई। क्या इससे स्पष्ट नहीं हो जाता कि भ्रष्टाचारियों को खुद मुख्यमंत्री का संरक्षण हासिल है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर मुख्यमंत्री पूरे मामले की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच से क्यों भाग रहे हैं?
प्रदेश यूथ कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए मुख्यमंत्री खट्टर बार-बार झूठ बोल रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार के दौरान कोई भी भर्ती रद्द नहीं हुई। जबकि कुछ दिन पहले ही पेपर लीक होने के चलते कॉन्स्टेबल भर्ती को रद्द किया गया था। उससे पहले इसी सरकार के दौरान पीजीटी संस्कृत और टीजीटी इंग्लिश जैसी भर्तियों को रद्द किया गया। इतना ही नहीं नायब तहसीलदार और आईटीआई इंस्ट्रक्टर से लेकर कलर्क, बिजली निगम के एलडीसी समेत दो दर्जन भर्तियां के पेपर लीक हुए हैं। लेकिन सरकार ने ना भर्तियों को रद्द किया और ना ही पेपर लीक करने वालों पर कोई कार्यवाही की।
बुद्धिराजा ने कहा कि खट्टर सरकार भर्ती घोटाले में सजा काट रहे लोगों के समर्थन से चल रही है। ऐसे में इस सरकार से भर्तियों में पारदर्शिता की उम्मीद ही बेकार है। उन्होंने याद दिलाया कि जिस तरह एचपीएससी में छापेमारी कर चंद छोटे कारिंदों पर कार्रवाई का ड्रामा हो रहा है, इस तरह का ड्रामा खट्टर सरकार पहले भी कर चुकी है। 2017 में खुद सीएम फ्लाइंग स्क्वायड ने एचएसएससी के दफ्तर में छापेमारी की थी। उस दौरान जांच में पता चला था कि आयोग के दफ्तर में बैठे लोगों ने हजारों अभ्यार्थियों से पैसे लेकर उन्हें अलग-अलग पदों पर भर्ती किया है। आरोपियों के कॉल रिकॉर्ड में एचएसएससी मेंबर्स की संलिप्तता के सबूत भी मिले थे। लेकिन ना तो पैसे देकर भर्ती हुए किसी अभ्यर्थी से कोई पूछताछ की गई और ना ही एचएसएससी के चेयरमैन और मेंबर्स से।
इसी तरह एचपीएससी घोटाले में भी अब तक चेयरमैन और मेंबर से कोई पूछताछ नहीं की गई। जबकि निष्पक्ष जांच के लिए जरूरी है कि सबसे पहले एचपीएससी और एचएसएससी के चेयरमैन को बर्खास्त किया जाए और सदस्यों के इस्तीफे लिए जाएं। अगर मुख्यमंत्री ऐसा नहीं करते हैं तो पूरे मामले में उनकी भूमिका पर सवाल खड़े होना लाजमी है।