त्रिपुरा में भाजपा, बाकी लुप्त

भाजपा ने अंबासा नगर परिषद की 12 सीटें हासिल कीं, जबकि टीएमसी और सीपीआई-एम ने यहां एक-एक सीट जीती और दूसरी एक निर्दलीय उम्मीदवार के पास गई। भाजपा ने कैलाशहर नगर परिषद की 16 सीटों पर भी जीत हासिल की। यहां माकपा को एक सीट मिली। पानीसागर नगर पंचायत में भाजपा 12 सीटों पर विजयी हुई और सीपीआई (एम) ने एक पर जीत हासिल की। भाजपा ने खोवाई नगर परिषद के सात, धर्मनगर नगर पालिका के एक, मेलाघर नगर परिषद के दो और जिरानिया के 10 वार्डों में निर्विरोध जीत हासिल की थी। भाजपा ने बिना किसी चुनाव के रानीबाजार, विशाल गंज, मोहनपुर, कमालपुर, उदयपुर और शांतिबाजार के 92 वार्ड के नगर निकायों को जीता। शानदार जीत के साथ भाजपा के पास राज्य के शहरी निकायों के 324 वार्डों में से 329 सीटों पर जीत हासिल की। 

सारिका तिवारी, चंडीगढ़/नयी दिल्ली:

त्रिपुरा निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने 334 में से 239 सीटों पर जीत दर्ज की है। अगरतला महानगर पालिका में पार्टी सभी 51 सीटों पर विजयी रही। भाजपा के 112 प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए। पार्टी ने जिस तरह का प्रदर्शन किया, उसे असाधारण माना जा सकता है। चुनाव से पहले प्रदेश में बनाए गए राजनीतिक माहौल का चुनाव परिणाम पर असर न के बराबर रहा। परिणाम से साफ है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस ने पश्चिम बंगाल से नेताओं को भेज त्रिपुरा में जिस तरह का राजनीतिक माहौल को खड़ा करने का प्रयास किया, उसे स्थानीय लोगों में स्वीकृति नहीं मिली पाई। ऐसे में परिणाम के बाद अपने सदस्यों और नेताओं को बधाई देते हुए अभिषेक बनर्जी द्वारा जो कहा गया, वह आश्चर्यचकित नहीं करता।

पश्चिम बंगाल में भारी जीत के बाद पिछले कुछ महीनों से उत्तर-पूर्वी राज्यों में तृणमूल कॉन्ग्रेस की विस्तार की महत्वाकांक्षी योजना की काफी चर्चा रही है। इस प्रक्रिया में दल को त्रिपुरा में होने वाले निकाय चुनावों के रूप में पहला पड़ाव नजर आया था। यही कारण था कि दल के नेताओं ने राज्य के कई दौरे किए और काफी हद तक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश जिसमें तृणमूल कॉन्ग्रेस द्वारा वहाँ उलटफेर की संभावना दिखाई दे। मीडिया में इस बात की चर्चा की गई कि भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ दी है। बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध हुई हिंसा के विरोध में हिंदू संगठनों के प्रदर्शन को लेकर अफवाहें फैलाई गई। अंतिम दॉंव के रूप में तृणमूल कॉन्ग्रेस चुनावों को स्थगित करने के उद्देश्य से सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच गई, पर चुनाव परिणाम आने के बाद फिलहाल राजनीतिक स्थिति स्पष्ट हो गई है।

ऐसे एकतरफा चुनाव परिणाम के क्या कारण हो सकते हैं? यह प्रश्न इसलिए और प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में वापस न आने के दावे किए जाने लगे थे। राज्य के मुख्यमंत्री बिप्लब देब शुरू से ही लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम के निशाने पर रहे हैं। शुरुआती दिनों में उनकी हर बात और हर बयान पर न केवल बहस का मुद्दा बनाया गया, बल्कि उन बयानों पर कई बार अफवाह और भ्रम भी फैलाया गया। समस्या यह थी कि इस इकोसिस्टम के लोगों को बिप्लब देब की राजनीति की समझ नहीं थी, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अचानक त्रिपुरा की राजनीति में उतार दिया था। राज्य की उनकी समझ और लोगों के साथ उनके समीकरण की समझ त्रिपुरा के बाहर बैठे लोगों को नहीं थी।

डेमोग्राफी में बदलाव के विषय पर उत्तर-पूर्वी राज्यों में असम की तरह ही त्रिपुरा का भी एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य रहा है। लंबे समय तक चलने वाली वाम मोर्चे की सरकार ने त्रिपुरा को जिस स्तर का शासन और प्रशासन दिया उससे राज्य की जनता परेशान तो थी, लेकिन पश्चिम बंगाल की तरह उसके पास विकल्प दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के रूप में उसे जब विकल्प मिला तो जनता को वामपंथियों से छुटकारा मिला और वामपंथियों के शासन से तंग आ चुकी जनता को एक युवा मुख्यमंत्री में नई राजनीति की आशा दिखी। यही कारण है कि वर्तमान मुख्यमंत्री काफी लोकप्रिय हैं और जनता उन्हें मौके देने से पीछे नहीं हटना चाहती।

इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि वर्षों तक सत्तासीन रहे वामपंथियों के पास सरकारी योजनाओं की डिलीवरी की जो प्रशासनिक मशीनरी थी, उसे पूरी तरह से जंग लग गया था। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि वर्तमान सरकार आने के बाद केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का लाभ काफी हद तक जनता तक पहुँचता रहा है। त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में यह सुनिश्चित करना अपने आप में बड़ा काम माना जाता है और वर्तमान मुख्यमंत्री को इस बात की समझ है कि छोटे-छोटे प्रयासों से यह काम किया जा सकता है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में पहले से चल रहे तरीकों में बदलाव लाने का प्रयास किया गया है और उसका असर भी दिखाई देता है। राज्य के कुछ कृषि उत्पादों के लिए नए बाज़ार खोजने की कोशिशों की पहचान स्थानीय लोगों द्वारा की गई है।

वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा उत्तर-पूर्वी राज्यों में विकास प्राथमिकता देने का असर बाकी राज्यों की तरह त्रिपुरा में भी दिखाई दे रहा है। राज्य के साथ देश के अन्य जगहों की कनेक्टिविटी सुलभ होने के साथ ही स्थानीय उत्पादों के लिए नए बाजार मिलने की संभावना बढ़ेगी। वर्तमान मुख्यमंत्री प्रयास करते हुए नज़र आते हैं और जनता के साथ उनके संबंध पहले से बढ़े हैं। लोगों की बात सुनने के लिए तैयार मुख्यमंत्री की उनकी छवि उनके राजनीतिक सफर का भविष्य उज्ज्वल करेगी। निकाय चुनावों के परिणाम से साफ़ है कि एक दल के तौर पर भाजपा राज्य में अपनी जड़ें जमा चुकी है और असम की तरह ही त्रिपुरा में भी लंबे समय तक सत्ता में रहने का प्रयास उत्तर-पूर्वी राज्यों को लेकर दल की योजना का महत्वपूर्ण हिस्सा है।