छत्रपति, राम रहीम और पत्रकारिता

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने समान रूप में डेरा से माल कमाया, गिफ्ट खाये और चिरौरी की. लगातार डेरा मुखी के आतंक, पाखंड और लूट पर आंख मूंदे रहे. उन्होंने अदालत के सामने बरसों भीड़ जमा करने को कभी खबर नहीं बनाया लेकिन डेरा मुखी के सफाई कार्यक्रम को बड़े अक्षरों में खबर बनाया. उन्होंने डेरा के मर रहे श्रद्धालुओं, नपुंसक हो रहे श्रद्धालुओं की आह को कभी खबर नही बनाया, उन्होंने डेरा के छोटे-छोटे सेवा कामों को भी बडा करके दिखाया. उन्होंने यह खबर तक दबाई कि पंचकूला में मरने वाले साधुओं में भी नपुंसक साधु मिले जबकि वे डेरा की गुफा तक जाने के तमाम दावे करते पाए गएं भांडगिरी मीडिया का काम रहा और इस भांडगिरी ने 2002 से 2018 तक मीडिया में कोई विमर्श नहीं उठने दिया, कोई विमर्श पैदा नहीं किया कि पत्रकारिता के लिए आवाज उठाने वाले अगर जघन्य तरीके से कत्ल कर दिए जाएं तो उनकी लड़ाई क्या परिवार की निजी लड़ाई तक सीमित कर दी जाए?

वीरेंद्र भाटिया :

रामरहीम को cbi के तीसरे केस में भी कल सजा हो गयी। बताया जाता है कि राम रहीम के बिखरे प्यादों ने इस केस को प्रभावित करने का भरपूर जोर लगाया और केस के फैसले को आगे से आगे बढ़ाने और किसी मनचाहे अंजाम तक ले जाने की कोशिश में लगे रहे । लेकिन राम रहीम की फ़ाइल इतनी मजबूत है और राम रहीम के पूर्व के केस और सज़ा आपस मे इतनी गुंथी हुई है कि किसी भी सामान्य जज की हिम्मत ओवर रूल करने की नही पड़ती।

राम रहीम जब से गद्दी पर आया, उसने अपनी एक विश्वस्त टीम बनाई और उसी टीम से अपनी सुविधा के तमाम काम करवाता रहा। एक टीम जब कत्ल के केस में अरेस्ट हुई तो दूसरी टीम खड़ी की। दूसरी टीम का सरताज एक तेज दिमाग डॉक्टर था जिसने डॉक्टरी कम की और डेरा का प्रबंधन यहां तक कि डेरा का व्यवसायीकरण तक उसी ने किया ।जब उस डॉक्टर ने सब सम्भाल लिया तो राम रहीम चिंतामुक्त हो अपनी आसक्तियों और शोंक में ज्यादा गहरे उतर गया।

पूरे डेरा, और डेरा की महत्वूवर्ण सत्ता को लगता था कि इस देश मे सब मैनेज होता है। अकाली इनेलो कॉन्ग्रेस bjp सब तो मैनेज थे। इसके अलावा देश और है क्या। और जो मैनेज नही होते थे उन्हें रास्ते से हटा दिया जाता था।

छत्रपति पहला आदमी था जो डेरा से मैनेज नही हुआ। छत्रपति उस दौर में साध्वी और रणजीत सिंह के कत्ल की खबरे निकाल कर लाया जब डेरा का पराक्रम शहर के सर चढ़कर बोल रहा था। एक पत्रकारिता छत्रपति ने की और एक पत्रकारिता छत्रपति के जाने और राम रहीम के जेल जाने तक हमने देखी। डेरा की आदित्य इंसा टीम ने हर मोर्चे पर हर किसी को मैनेज किया। मैनेज करने में करोड़ो करोड़ रुपये का खर्च हुआ ।वह खर्च महंगी सब्जियां बेचकर औऱ बाबा के महंगे पॉप शो की टिकटे बेचकर यानी अनुयाइयो की आस्था को निचोडकर उगाहे गए। आस्था का ऐसा जूस आजतक किसी ने नही निचोड़ा होगा जैसा डेरा की शातिर टीम ने निचोड़ा ।एक कद्दू सत्तर हजार में बेचा गया। अंगूर की एक टोकरी 25 लाख की। एक भिन्डी चार हजार की बेची गयी। शो की टिकेट के एक लाख रुपये तक के दाम भी रखे गए। ब्लॉक वाइज टिकट बेची जाती औऱ ब्लॉक वाइज संगत ढोई जाती। धर्म के नाम पर हम कितने कितने कितने जाहिल हो सकते हैं यह हमे राम रहीम ने साक्षात दिखाया।

जिन तीनो केस में राम रहीम को सजा हुई है वे तीनों केस आपस मे जुड़े हुए हैं। ये बात न्याय की कुर्सी पर बैठा कोई भी जज इग्नोर नही कर सकता। इनमे से दो केस छत्रपति ने उजागर किये और तीसरे केस में छत्रपति खुद एक केस हो गए।

जिस रणजीत सिंह की ह्त्या का फैसला कल सुनाया गया है उसकी मौत की खबर दो माह बाद छत्रपति खोज कर लाये। रणजीत सिंह का परिवार मौत की खबर पर चुपी मार गया था, छत्रपति जब उनके परिवार से मिला तो उन्होंने कहा कि आपसी रंजिश में उसकी मौत हो गयी है। छत्रपति इस झूठ को जानता था। उसने साध्वी की चिट्ठी अपने समाचार पत्र में प्रकाशित की थी। रणजीत सिंह के घर से लौटते ही छत्रपति ने रणजीत सिंह की मौत को खबर बना दिया। जैसे ही रणजीत सिंह की मौत की ख़बर बाहर निकली डेरा प्रबंधन में हड़कंप मच गया। उसी दिन छत्रपति को रास्ते से हटाने के निर्देश राम रहीम ने जारी कर दिये।

बस, ताकत यहीं हारती है। जब वह किसी मद में चूर होकर आंख बंद करके निर्देश देती है। हम सिरसा निवासी एक बड़ी लड़ाई के नजदीक के साक्षी हैं। 2002 से 2017 तक राजनीतिक छल, धार्मिक प्रपंच, कानूनी पतले मार्ग, पत्रकारिता का चरम औऱ फिर पत्रकारिता का पतन और दलाली और आम लोगों का ताकत की तरफ खड़े हो जाना और पीड़ित को गरियाना समझाना और उपदेश देना नजदीक से देखा हमने ।राजनीतिक नेताओं का पीड़ितों पर दबाब बनाना, सामाजिक ठेकेदारों का पीड़ितों पर दबाब बनाना, खुद डेरा के क्रियाकलापो से पीड़ित पर दबाव बनाना , खुद को इतना विशालकाय और परोपकारी दिखा कर पीड़ित को छोटा करने की कार्यनीति से पीड़ितों का मनोबल तोड़ना ।लेकिन पीड़ितों का साधू हो जाना औऱ अपनी भीतर की शक्ति को पोषित करते रहना उनकी जीत का कारण बना। और एक साधु का साधुता भूलकर बाहरी मोहरों साधनों पर आ खडा होना एक बडे धार्मिक विश्वास की अकाल मौत का कारण बना।

अंशुल छत्रपति पीड़ितों का सम्बल रहा, उनका नेतृत्व करता रहा। अंशुल विशेष बधाई का पात्र है। साधुओं को नपुंसक बनाने का एक अन्य केस भी राम रहीम पर चल रहा है ।राम रहीम का धर्म के नाम पर शर्म हो जाना शायद हम अंध धार्मिक लोगों के लिये शिक्षा का कोई प्रेरणा स्रोत बने। काश कि रहम मांगते ईश्वर देखकर हमें ईश्वर पहचानने की दृष्टि हासिल हो जाए।
( साभार)