राजकोट में 200 महिलाओं ने ‘तलवार रास’ में दिखाया हस्तलाघव

गुजरात के राजकोट में राजपूत महिलाओं ने अपने तलवार बाजी कौशल का शानदार प्रदर्शन कर सबके दिलों को जीत लिया है। दरअसल, राजकोट में पांच दिवसीय तलवार रास कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें राजपूत महिलाओं ने न सिर्फ बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, बल्कि अपने तलवार कौशल का प्रदर्शन भी किया। इसका एक वीडियो सामने आया है, जिसमें एक महिला अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर कुछ महिलाओं की पीठ पर चढ़कर तलवार बाजी करती दिख रही है।

राजकोट में चल रहे पांच दिन के कार्यक्रम में ‘तलवार रास’ का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और तलवार कौशल दिखाया। कार्यक्रम में राजपूती महिलाओं ने आंख में पट्टी बांधकर तलवार से करतबबाजी दिखाई। वीडियो में दिख रहा है कि एक महिला आंख में पट्टी बांधकर कुछ महिलाओं की पीठ पर चढ़कर तलवार से करतब दिखा रही है।

‘तलवार रास’ में राजपूत महिलाएँ पारंपरिक कपड़े पहनती हैं। तलवार के साथ अपने कौशल का प्रदर्शन करते हुए पारंपरिक नृत्य करती हैं। राजकोट के शाही परिवार की राजकुमारी कादंबरी देवी ने कहा, “तलवार रास पिछले बारह वर्षों से आयोजित किया जा रहा है। हर साल एक नया समूह होता है और महिलाएँ पूरे उत्साह के साथ इस कार्यक्रम में भाग लेती हैं।”

कादंबरी देवी ने आगे कहा, “तलवार एक देवी की तरह है और इसलिए हम शस्त्र पूजा करते हैं।” यह आयोजन राजपूत महिला योद्धाओं के इतिहास को जीवित रखने और यह संदेश देने के लिए है कि आज की महिलाएँ उतनी ही शक्तिशाली हैं जितनी वे सालों पहले थीं।

तलवार रास की लिबरलों ने मुहर्रम से तुलना की

‘तलवार रास’ महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लिबरल को पसंद नहीं आया। उन्होंने इसकी तुलना मुहर्रम से करते हुए इसे ‘संघी आतंकवाद’ तक कह डाला।

विडंबना यह है कि इस कार्यक्रम की आलोचना करने वाले लोगों को विदेशी ‘आत्मरक्षा‘ तकनीकों को बढ़ावा देने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन पारंपरिक भारतीय कला और संस्कृति को देखकर वे भयभीत हो जाते हैं। बता दें कि गुजरात की लोक परंपराओं के विद्वान डॉ. उत्पल देसाई के अनुसार, तलवार रास राजपूत युद्ध नायकों की याद में बनाया गया था, जो भुचर मोरी (18 जुलाई, 1591) के ऐतिहासिक युद्ध में मारे गए थे।