क्या क्रिकेट की दीवानगी पड़ रही है भारत के खेल भविष्य पर भारी
खेल डेस्क:
टोकियो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा सहित भारत के खिलाड़ियों ने देश का मान बढ़ाया। देश के लिए यह बहुत ही गर्व की बात है। लेकिन क्या 130 करोड़ की विशाल मानव सम्पदा वाले विश्व के सबसे प्राचीन राष्ट्र के लिए 1 स्वर्ण सहित मात्र 7 पदक गर्व का विषय हो सकता है? चीन, अमरीका, जापान, ब्रिटेन, रूस आदि कई देशों के सिर्फ इसी ओलंपिक के पदक भारत के 100 वर्षों के कुल ओलंपिक पदकों से कहीं ज्यादा है।
इसका क्या कारण है, कहाँ गलतियाँ है, कैसे इस प्रदर्शन को सुधारा जा सकता है इसका जवाब अब भारत को तलाशना पड़ेगा। इसके कई कारण हो सकते हैं। एक तो भारत में सभी को क्रिकेट का नशा इतना ज्यादा चढ़ा दिया गया है कि अन्य खेलों की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाने दिया जाता। जबकि क्रिकेट सिर्फ कुछ चुनिंदा देश जो ब्रिटेन के गुलाम रहे हैं, उनमें ही खेला जाता है। विश्व के 90% देशों में क्रिकेट नहीं खेला जाता। भारत के प्रतिभा की कोई कमी नहीं है सिर्फ उसे तराशने की जरूरत है। तीरंदाजी में हमारे जनजाति युवा, असम, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, झारखंड, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में बहुत प्रतिभा है।
फुटबॉल में बंगाल, उड़ीसा एवं नार्थ ईस्ट के सभी राज्यों के युवा बहुत अच्छा खेलते हैं। मार्शल आर्ट में भी पूर्वोत्तर राज्यों एवं केरल के युवा माहिर है। बस जरूरत है इन्हें सही तरीक़े से आगे बढ़ाने की। खेलों में भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बहुत आवश्यकता है। तभी भारत ओलंपिक जैसे बड़े खेल आयोजनों में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा सकता है अन्यथा हम यूँ ही 1 गोल्ड पर अपनी पीठ थपथपाते रहेंगे।