भारतीय सनातन परंपरा में ‘सती’ की शक्ति
अजय नारायण शर्मा ‘अज्ञानी’, धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़ :
बिंदिया चाहे तो निज सत से, रवि को राह भुला सकती है।
यम के हाथों से निज पी के, बिंदिया प्राण बचा सकती है।
बिंदिया निज सत से पावक को, चंदन सरिस बना सकती है।
शंकर-विष्णु-विरंचि तक को भी यह शिशु रूप धरा सकती है।
पुराणों में ऐसे कई प्रसंग उपलब्ध हैं जहाँ पत्नी ने अपने पति के प्राणों की रक्षा हेतु अपने सतीत्व के तेज से सूर्योदय होना ही रोक दिया था,ठीक उसी प्रकार जैसे भगवान श्री कृष्ण ने ज्यद्रथ वाढ के समय सूरी को कुछ पलों के सूरी को अस्त कर दिया था।
शंखचूड़ की पत्नी को जब ज्ञात हुआ कि कल सूर्योदय होते ही शंखचूड़ भगवान् शंकर से युद्ध करेगा तो उसने अपने पति का अवश्यम्भावि अन्त को देखते हुए सूर्योदय को रोक दिया था। सूर्योदय के न होने के कारण युद्ध लंबा खींच गया।
कौशिक पूर्वकृत पापों के फलस्वरूप कोढ़ी हो गया तथा कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी शाण्डिली महान पतिव्रता थी। एक बार रात्रि में वह कौशिक को अपने कंधों पर बैठा कर कहीं जा रही थी। एक स्थान पर निरपराध माण्डव्य ऋषि को चोरी के संदेह में दण्ड के लिए सूली पर चढ़ाया गया था। अँधेरे में दिखायी न देने से शाण्डिली के पति का पैर सूली से टकरा गया जिससे माण्डव्य ऋषि को अत्यंत कष्ट हुआ। पीड़ा से व्याकुल ऋषि ने शाप दिया कि वह सूर्योदय पर मृत्यु को प्राप्त होगा।
शाण्डिली ने कहा यदि ऐसा है तो कल सूर्योदय ही नहीं होगा।
मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि दस दिनों तक सूर्योदय न होने से सब ओर हाहाकार मच गया। सभी देवता महासती अनुसूया की शरण में गए और माता अनुसूया ने शाण्डिली को पति की जीवनरक्षा का वचन दिया। तब शाण्डिली ने अपना वचन वापस लिया जिससे सूर्योदय होते ही कौशिक निर्जीव हो गया और माता अनुसूया ने कौशिक को पुनर्जीवित करके उसे स्वस्थ, तरुण और शतायु किया।
उधर मांडव्य ऋषि ने धर्मराज से स्वयं को इस दंड दिये जाने का कारण पूछा तो धर्म राज ने बताया की जब वह छ: वर्षीय बालक थे तब वह कीड़ों को शूल (काँटों) से पीड़ा पहुंचाया करते थे इसी कारण उन्हे यह पीड़ा भोगनी पड़ी। तब ऋषि ने क्रोधित हो धर्मराज कपो श्राप दिया की मनुष्य की अबोधावयसथा में किए गए कर्म दंडनीय नहीं होते अत: आप भी रुग्ण हो कर पृथवि पर ए आशय व्यक्ति के रूप में जन्म लेंगे। महाभारत काल में धर्मराज विदूरर बन कर पैदा हुए।