PC Goodbyes Congress
सारिका तिवारी, चंडीगढ़:
चंडीगढ़ कॉंग्रेस में चल रही अंतर्कलह थमने का नाम ही नहीं ले रही। पवन कुमार बंसल के 30 वर्षों से साथी रहे प्रदीप छाबड़ा ने आज कॉंग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
पवन कुमार बंसल किरण खेर से लगातार दो बार चुनाव हारने और अपने नेतृत्व में निकाय चुनावों में भी कॉंग्रेस की भद्द पिटवाने के बाद भी आलाकमान का वरदस्त होने के कारण चंडीगढ़ प्रदेश कॉंग्रेस को अपनी जागीर समझे बैठे हैं।
सनद रहे कि प्रदीप छाबड़ा ने पिछले कई दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला और पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल प्रदीप छाबड़ा के राजनीतिक गुरु भी रहे हैं। छाबड़ा द्वारा कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद अब यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वह जल्द ही दूसरे दल में शामिल होंगे। हालांकि, छाबड़ा ने अपना एक मंच का भी गठन किया है, जिसे वह गैर राजनीतिक बताते हैं, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि आने वाले नगर निगम चुनाव को देखते हुए वह अपना मंच सक्रिय कर देंगे। वीरवार को सेक्टर-35 स्थित कांग्रेस भवन में नई गठित प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, जिसमें नेताओं ने कहा कि प्रदीप छाबड़ा को पार्टी से बाहर कर देना चाहिए। इसके लिए अध्यक्ष सुभाष चावला को नोटिस भेजने का अधिकार दिया गया था। कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला द्वारा छाबड़ा को आज दोपहर तक कारण बताओ नोटिस भेजा जाना था, लेकिन इससे पहले ही प्रदीप छाबड़ा ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। चंडीगढ़ की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राजनीतिक दल के पूर्व अध्यक्ष ने पार्टी छोड़ है।
आलाकमान आलाकमान मस्त कॉंग्रेस पस्त।
कॉंग्रेस पार्टी में सम्राट कि भूमिका निभा रहे आल कमान का हाल ठाकुर सुहाती सनने वाले ए निरंक्ष राजा जैस है। हरीश रावत को पुन: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद कि दावेदारी चाहिए थी अत: उन्होने राजाधिराज को समझा दिया कि वह सुलगते पंजाब को शांत कर आए हैं और अभी ताज़ा ताज़ा काँग्रेस के प्रथम परिवार के मुंह लगे को पंजाब में स्थापित कर आए हैं। लेकिन इस सब कि कॉंग्रेस को कितनी भारी कीमत च्कानी पड़ेगी यह तो आने वाले च्नाव ही बताएँगे परांत एक बात साफ है कि भाजपा से आए सिद्धू के लिए उन्होने बरसों परने साथी को खो दिया है। पंजाब प्रदेश कॉंग्रेस सब देख सुन और समझ रही है। चिंगारी कब दावानल बन जाये पता नहीं।
यह भी पढ़ें: चंडीगढ़ कांग्रेस की आंतरिक फूट कहीं पार्टी के लिए नुकसानदेय
निकाय चुनाव सर पर छबड़ा अब घर पर
बंसल के चलते प्रदेश में कॉंग्रेस कमजोर हो रही है। इनके चलते पहले भी निकाय चुनावों से ठीक पहले चंडीगढ़ प्रदेश कॉंग्रेस के एक दिग्गज नाम चन्द्रमुखी शर्मा ने पार्टी छोड़ी थी जिसका खामियाजा कॉंग्रेस को चकना पड़ा था। चन्द्र्मूही शर्मा ने आम आदमी पार्टी का दामन थामा। आआपा निकाय चुनाव में एक नयी पार्टी होने के नाते कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन कॉंग्रेस के वोट बैन में बड़ी सेंध लगा गयी थी जिस कारण कॉंग्रेस का सूपड़ा साफ होते होते रह गया। लेकिन इस बार ध्यान देने की बात है कि अभी केसीएचएच दिन पहले ही पूर्व महासचिव संजीव भारद्वाज भी इस्तीफा दे चुके हैं। कॉंग्रेस इस इस्तीफे कि गंभीरता समझ पाती इससे पहले ही PC ने अपना इस्तीफा दे दिया। अब क्या कॉंग्रेस के स्थानी नेताओं को इतनी समझ नहीं कि छाबड़ा क्या अकेले ही जाएंगे। कॉंग्रेस पार्टी के कितने ही प्रकोष्ठ जो छबड़ा में अपना हमदर्द देखते हैं वह चुप रहेंगे? इस प्राईदृश्य से लगता है क कॉंग्रेस स्थानीय निकाय चुनाव में तो सूपड़ा साफ ही होगा।
यह भी पढ़ें: चंडीगढ़ प्रदेश कॉंग्रेस अंतर्कलह: छाबड़ा की चावला को चिट्ठी
चुके हुए कारतूसों के साथ जंग की तैयारी, कॉंग्रेस की पुरानी बीमारी (यथा राजा तथा प्रदेश प्रमुख)
पवन कुमार बंसल एक चुके हुए कारतूस हैं। आलाकमान का वरदस्त होने के कारण तीन तीन चुनाव हारने पर भी इन पर कोई कार्यवाई नहीं होती। मोदी लहर के चलते पहली बार किरण खेर से हारे। भाजपा में किरण खेर का नाम मात्र शाहरुख खान कि फिल्मी माँ से अधिक नहीं आँका जाता था। जबकि उस समय कॉंग्रेस का प्रदेश में दबदबा था पर आप रेल मंत्रालयों में नियुक्तियों में पैसे खाने के आरोपी थे, दोनों ही कारणों से हार गए। चंडीगढ़ में जहां पवन कमार बंसल को वोट मिलते थे वहीं किरण को भाजपा के कारण। लेकिन दूसरी बार क्या हुआ? आप को न्यायालय से राहत मिल चुकी थी। किरण खेर के खिलाफ सुगबुगाहट भी थी छबड़ा, चन्द्र्मुखी और चावला सरीखे लोग आपके लिए काम कर रहे थे, फिर क्या हुआ? आप हार गए। क्या इस पर आपकी जवाबदेई तय पायी गयी? आपने एक एक कर युवा नेताओं को किनारे करना आरंभ कर दिया। नतीजा निकाय चुनावों में करारी हार। और अब आगे क्या होगा?