कामिदा एकादशी – व्रत, विधि और कथा

श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामदा है। इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही बाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। कामदा एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते है। उन्हें गंगा स्नान के फल से भी बड़ा फल मिलता है। यही फल सूर्य, चन्द्र ग्रहण, केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से मिलता है। श्री विष्णु भगवान के पूजन का फल समुन्द्र और बन सहित पृथ्वी दान करने और सिंह राशि वालों को गोदावरी नदी में स्नान के फल से भी अधिक होता है। व्यतीपात में गण्डक नदी में स्नान करने से जो फल मिलता है।वह फल भगवान की पूजा करने से मिल जाता है।

धर्म/संस्कृति डेस्क ,चंडीगढ़ :

भगवान की पूजा का फल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के फल के बराबर है। अतः भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा न बन सके। तो श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। आभूषण से युक्त बछड़ा सहित गौ दान करने से जो फल मिलता है, वह फल कामदा एकादशी के व्रत से मिल जाता है।

व्रत और विधि :

इसे ‘पवित्रा’ अथवा ‘कामिदा’ एकादशी के नाम से पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार श्रावण कृष्ण पक्ष की एकादशी कामिका है। इस दिन भगवान श्रीधर की पूजा की जाती है। इस दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु को पंचामृत स्नान कराके भोग लगाना चाहिए। फिर आचमन के पश्चात धूप, दीप, चंदन, नैवेद्य तथा तुलसी से भगवान का पूजन कर आरती उतारनी चाहिए। इस व्रत को करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है और ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है।

कथा :

प्राचीन काल में किसी गाँव में एक ठाकुर रहता था। वह बहुत ही क्रोधी स्वभाव का था। एक दिन किसी बात पर उस क्रोधी ठाकुर की एक ब्राह्मण से हाथापाई हो गई। परिणामस्वरूप वह ब्राह्मण ठाकुर के हाथों मारा गया। अपने हाथों मारे गए ब्राह्मण की उस ठाकुर ने तेरही (क्रिया) करनी चाही। किंतु सभी ब्राह्मणों ने उस क्रिया में शामिल होने तथा भोजन करने से इंकार कर दिया। तब ठाकुर ने सभी ब्राह्मणों से निवेदन किया- ‘भगवन! मेरा यह पाप किस प्रकार दूर होगा?’ इस पर ब्राह्मणों ने कहा- ‘तुम श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी (कामदा एकादशी) का व्रत करो और भगवान श्रीधर का पूजन करो तथा ब्राह्मणों को भोजन कराओ। तभी तुम्हारे पाप का प्रायश्चित होगा।

ठाकुर ने उनके कहे अनुसार भगवान श्रीधर का भक्ति भाव और शुद्ध हृदय से व्रत और पूजन किया। रात्रि में जब वह भगवान की मूर्ति के पास शयन कर रहा था, तभी भगवान ने उसे दर्शन देकर कहा- ‘हे ठाकुर! तेरा ब्रह्महत्या का पाप दूर हो गया है। अब तुम उस ब्राह्मण की तेरही (क्रिया) कर सकते हो। तेरे घर से अब सूतक समाप्त हो गया है।’ उस ठाकुर ने भगवान के आदेशानुसार ही किया और ब्रह्महत्या के पाप से दोषमुक्त हो गया और सुखी जीवन बिताकर अंत में विष्णु लोक को गया।

जो उत्तम द्विज श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामदा एकादशी का व्रत करते है। तथा श्री विष्णु भगवान की पूजा करते है। उसमे समस्त वेद, नाग, किन्नर पितृ आदि की पूजा हो जाती है। मनुष्यों को अध्यात्म विघा से जो फल मिलता है। उसका अधिक फल कामदा एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। इस व्रत के करने से मनुष्य अन्तिम समय अनेक दुखों से युक्त यमराज तथा नर्क के दर्शन नहीं करता।

कामिदा एकादशी के व्रत तथा रात्रि के जागरण से मनुष्य को कुयोनि नहीं मिलती और अन्त में स्वर्गलोक को जाता है। जो उत्तम मनुष्य श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिदा एकादशी को तुलसी से भक्ति पूर्वक श्री विष्णु भगवान की पूजा करते है। वे इस संसार सागर में रहते हुए भी इससे इस प्रकार अलग रहते है। जिस प्रकार कमल जल में रहता हुआ भी जल से अलग रहता है।