ऑक्सिजन संबंधी सरकार के जवाब पर राहुल गांधी का ‘खेला’ हो गया

सरकार ने कहा था कि ऑक्सीजन की कमी से किसी मौत की जानकारी नहीं है। इस बयान पर सियासत गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा है। पात्रा ने कहा है कि ये राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा है कि स्वास्थ्य राज्य का मसला है और राज्यों से जो डेटा मिलता है, उसके आधार पर हम जानकारी तैयार करते हैं।

नयी दिल्ली(ब्यूरो) :

राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं। ट्वीट करते हैं। सरकार को ‘घेरते’ हैं। बस मुद्दे या तो जनता से दूर होते हैं या फिर झूठ पर आधारित होते हैं। ये बात अलग है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा जेब में होने के कारण कोई उनका फैक्ट-चेक नहीं करता। उनकी ट्वीट पर ‘छेड़छाड़ वाला कंटेंट’ का लेबल नहीं लगाया जाता। अब उन्होंने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों पर राजनीति खेली है। ऑक्सीजन की कमी से हुई हर एक मौत पर उन्हें केंद्र से आँकड़ा चाहिए, जबकि स्वास्थ्य राज्य का मुद्दा है।

राहुल गाँधी ने क्या कहा? राहुल गाँधी ने एक खबर ट्वीट की। PTI की इस खबर में लिखा था कि केंद्र सरकार ने जानकारी दी है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को लेकर राज्यों ने अलग से कोई आँकड़ा नहीं दिया है। अब स्वास्थ्य मुख्यतः राज्य का मुद्दा है। कोरोना के आँकड़ों पर संक्रमितों की संख्या, रिकवर होने वालों की संख्या, मृतकों की संख्या – ये सब डेटा राज्य जुटा रहे थे।

राज्यों द्वारा ये आँकड़े केंद्र को भेजे जा रहे थे, जिन्हें सरकारी वेबसाइट पर अपलोड किया जाता था। इससे केंद्र सरकार को भी सहूलियत होती है कि किस राज्य में स्थिति गंभीर होने के कारण ज्यादा ध्यान देना है और किस राज्य में प्रबंधन ठीक है तो हस्तक्षेप की ज़रूरत न के बराबर है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार बैठक की। जहाँ स्थिति गंभीर होने की आशंका थी, उन राज्यों को चेताया भी।

‘राज्यों ने अलग से कोई आँकड़े नहीं दिए’ का अर्थ राहुल गाँधी ने क्या लगाया, अब वो देखिए। उन्होंने इसे ऐसे दिखाया जैसे केंद्र सरकार कह रही हो कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से किसी मरीज की मौत ही नहीं हुई। अब राज्यों ने बताया ही नहीं, तो केंद्र को कैसे पता चलेगा? देश के हर राज्य में स्वास्थ्य मंत्रालय है, उनका पूरा का पूरा बजट है और हर साल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय उन्हें सहयोग देता है।

केंद्र योजनाएँ बनाता है और इसके लिए वित्त की व्यवस्था करता है, लेकिन इसे धरातल पर तब तक लागू नहीं किया जा सकता, जब तक राज्य व स्थानीय प्रशासन सहयोग न करे। अब ‘आयुष्मान भारत’ जैसी योजनाओं और दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने किस तरह अड़ंगा लगाया था, ये पता होना चाहिए। योजना के वहाँ लागू न होने से जनता को ही घाटा हुआ।

ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के सहारे अपनी राजनीति चमकाने की जुगत में लगे राहुल गाँधी को सवाल राज्यों से पूछना चाहिए कि उन्होंने ऐसा कोई आँकड़ा क्यों नहीं दिया? पंजाब, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और तमिलनाडु – ये वो राज्य हैं, जहाँ कॉन्ग्रेस ये तो सत्ता में है या सत्ता की साझीदार है। राहुल गाँधी इन पाँचों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहेंगे कि वो ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का आँकड़ा केंद्र को भेजें?

वैसे मामला ये है कि राहुल गाँधी अगर कहें भी तो शायद ही कोई मानें। कुछ राज्यों की सरकारों का दावा राहुल गाँधी के दावे के विपरीत है तो कुछ राज्यों में उनके ही नेता उनकी नहीं सुनते। पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला अब तक स्वीकार नहीं किया है। महाराष्ट्र में उनका संगठन ‘एकला चलो रे’ का राग अलाप रहा है।

महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की बात करना यहाँ विशेष रूप से आवश्यक है। इन दोनों राज्यों का कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के आँकड़े को लेकर क्या कहना है। सबसे पहले बात छत्तीसगढ़ की। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने छत्तीसगढ़ को ‘ऑक्सीजन सरप्लस राज्य’ करार देते हुए कहा कि कोविड-19 आपदा की दूसरी लहर के दौरान राज्य में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत ही नहीं हुई।

यहाँ उन्होंने आँकड़े देने-लेने की बात नहीं की, बल्कि सीधा ऐलान किया कि हुई ही नहीं। लेकिन, राहुल गाँधी इस पर ट्वीट कर के ऐसा नहीं लिखेंग – “सिर्फ़ ऑक्सीजन की ही कमी नहीं थी। संवेदनशीलता व सत्य की भारी कमी- तब भी थी, आज भी है।” मोदी सरकार के बयान को गलत संदर्भ में पेश कर और तोड़-मरोड़ कर उन्होंने यही चीन लिखी थी। देव ने कहा कि उन्होंने दिल्ली जैसे प्रदेशों के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के बारे में सुना, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं था।

अब बात महाराष्ट्र की, जहाँ तीन पहियों वाली सरकार में कॉन्ग्रेस भी शामिल है। ये अलग बात है कि शिवसेना और NCP से रोज उसके कुछ न कुछ मतभेद सामने आते रहते हैं। मई के मध्य में महाराष्ट्र की सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ को स्पष्ट रूप से कहा कि ऑक्सीजन शॉर्टेज की वजह से राज्य में किसी मरीज की मौत नहीं हुई है। क्या इस पर राहुल गाँधी का कोई ‘संवेदनहीनता’ वाला ट्वीट आया?

अगर केंद्र सरकार को राज्य आज आँकड़े भेज देते हैं कि इतने मरीजों की मौत ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई है, सरकार सदन और सुप्रीम कोर्ट को सूचित कर देगी। जो राज्य बताएँगे, सरकार उसे सार्वजनिक कर देगी। यही तो संघीय ढाँचा है, जहाँ मिलजुल कर काम होता है। ये कोई कॉन्ग्रेस का संगठन थोड़े है, जहाँ माँ और बेटा-बेटी जो यह दे, उसे ही अंतिम ब्रह्मवाक्य की तरह माना जाता है।

और ऑक्सीजन के मामले में दिल्ली सरकार को कोर्ट ने फटकारा, उसका क्या? सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई ऑडिट से खुलासा हुआ कि दिल्ली को ऑक्सीजन की जितनी आवश्यकता थी, उससे चार गुना से अधिक बढ़ा कर दिखाया गया। इस पर तो राहुल गाँधी चुप ही रहे। जिस केंद्र सरकार ने टैंकरों की व्यवस्था से लेकर ऑक्सीजन उत्पादन में वृद्धि के लिए जी-तोड़ प्रयास किया, उसे बदनाम करने में तो एक सेकेंड भी नहीं हिचके।

ये वही बात है कि वैक्सीन पर सवाल उठाने वाले वैक्सीन क्यों नहीं दिया पूछने लगे। ठीक वैसा ही है, जब ‘भाजपा की वैक्सीन’ कहने वाले नेता उसी वैक्सीन को लेने लगें। वही नीति है, जिसका पालन कर के गंगा किनारे वर्षों से चली आ रही परंपरा को कोरोना से जोड़ कर लाशों की राजनीति की जाए। ये चीजें आगे भी जारी रहेंगी और आरोप लगाने के लिए तोड़-मरोड़ का काम होता रहेगा। राहुल गाँधी भी जमीन से दूर, जनता से दूर, बैठ कर आराम से ट्वीट करते रहेंगे।