हिंदुत्व का बड़ा चेहरा बने योगी, मोदी और शाह के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं
राजनीतिक जगत में इस बात की भी चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेताओं को अब ऐसा फ़ैसला समझ में आ रहा है, जिसे अब बदलना और बनाए रखना, दोनों ही स्थितियों में घाटे का सौदा दिख रहा है। दूसरे, पिछले चार साल के दौरान बतौर मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ की जिस तरह की छवि उभर कर सामने आई है, उसके सामने चार साल पहले के उनके कई प्रतिद्वंद्वी काफ़ी पिछड़ चुके हैं। यहां तक कि पिछले दो हफ़्ते से आरएसएस और बीजेपी के तमाम नेताओं की दिल्ली और लखनऊ में हुई बैठकों के बाद यह माना जा रहा था कि शायद अब यूपी में नेतृत्व परिवर्तन हो जाए लेकिन बैठक के बाद वो नेता भी योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ कर गए जिन्होंने कई मंत्रियों और विधायकों के साथ आमने-सामने बैठक की और सरकार के कामकाज का फ़ीडबैक लिया।
करणीदानसिंह राजपूत, सूरतगढ़:
भाजपा शासित राज्यों में विरोध की दशा दिशा में अभी तो केवल मोदी के नाम के सहारे ही लड़ने और जीतने की संभावना मानते हुए राज्यों के चुनाव में उतरेंगे मगर मोदी-शाह की सबसे बड़ी मुश्किल है कि योगी उनके लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं। योगी फिर से जीते तो मोदी के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। क्योंकि हिंदू नेता के तौर पर योगी इस समय भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाते हैं।
यूपी की दशा दिशा सब के सामने आ चुकी है।
सीएम योगी आदित्यनाथ दिल्ली में आकर पीएम और गृह मंत्री से भेंट कर चुके हैं। केंद्र की टीम लखनऊ में डेरा लगाकर हल निकालने की जुगत में बैठी है लेकिन बीच का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। योगी भारी पड़ रहे हैं और केंद्र की टीम वहां बिना भार का रूई का गोला साबित हो रही है।
बंगाल चुनाव में मिली हार के बाद पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी को सबसे बड़ी ठेस भी पहुंची है की भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वापस टीएमसी में शामिल हो गया। चाहे वह टीएमसी से ही आए थे लेकिन भाजपा से गए जब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद था। संगठन में एक पद नीचे यानि दूसरे क्रम पर थे। मोदी शाह से समकक्ष नहीं तो कुछ छोटा।
यह मामूली तो नहीं कहा जा सकता। इसके बाद बंगाल में जो टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए लोगों का वापस टीएमसी में लौटने का तूफान मचा है। समाचारों में तो यह संख्या बड़ी है। चुनाव के समय रोजाना ममता को झटका लगने का समाचार खूब प्रचारित किये जाते रहे जब टीएमसी छोडकर भाजपा में शामिल होते। इतना करने के बावजूद राज मिलने तक की संख्या तक नहीं पहुंच पाए। ममता को नीचा दिखाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय चेहरे अपने पद और कद से बहुत नीचे उतरे। अब भाजपा को रोजाना झटके लग रहे हैं।
बंगाल में राज नहीं मिलने पर जो कमजोरी आई है उससे राज्यों में चुनौती मिलने लगी है। भाजपा शासित राज्यों में जो विरोध के स्वर देखने को मिल रहे हैं वो नेताओं की चिंता बढ़ाने के लिए काफी हैं। सबसे मुश्किल ये है कि विरोध केवल हिंदी भाषी राज्यों में नहीं है बल्कि दक्षिण तक पहुंच चुका है। चिंता केवल इतनी ही नहीं है।
कर्नाटक में भी मुख्यमंत्री येदियुरप्पा केंद्रीय नेतृत्व को आंखें दिखा रहे हैं। वहां एक धड़ा उनके विरोध में सामने आ चुका है। केंद्रीय नेतृत्व चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा, क्योंकि मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं। उन्हें नाराज करने का मतलब होगा इस समुदाय को नाराज करना। कर्नाटक भाजपा के लिए अहम इस वजह से भी है क्योंकि दक्षिण में ये अकेला राज्य है जहां भाजपा अपने दम पर खड़ी है।
प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात के हालात भी ठीक नहीं हैं। वहां मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और पार्टी अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच सिर फुटौव्वल चल रही है। पाटिल को मोदी का नजदीकी माना जाता है। कोरोना मामले पर मुख्यमंत्री के साथ उनकी तनातनी अब जगजाहिर हो चुकी है। केंद्रीय नेतृत्व के लिए ये बड़ी चिंता का मामला है। दोनों की तनातनी में गुजरात के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल अपने लिए मौका तलाश रहे हैं। वो मुख्यमंत्री बनने के लिए गुणाभाग कर रहे हैं।
गोवा में भाजपा के नेता और मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के खिलाफ उनकी ही कैबिनेट ने मोर्चा खोल रखा है। गोवा में भी उत्तर प्रदेश के साथ अगले साल चुनाव होना है। केंद्र ने वहां के हालात सुधारने का जिम्मा बीएल संतोष को दिया है। नतीजा देखना रोचक होगा।
बंगाल में हार के बाद किस तरह की भगदड़ भाजपा में मची है, ये बात जगजाहिर हो चुकी है। भाजपा चाहकर भी अपने लोगों को रोकने में नाकाम साबित हो रही है। त्रिपुरा में भी हालात काबू से बाहर होते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में भी हालात ठीक नहीं हैं। बंगाल से मात खाकर लौटे कैलाश विजय वर्गीय के बारे में कहा जा रहा है कि वो शिवराज को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनने के जुगाड़ में हैं।
भाजपा की दशा दिशा शोचनीय होने पर भी माना जा रहा है कि असंतोष से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है राज्यों में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का नाम ही काफी रहेगा।