पंजाब चुनावों में विजय सांपला होंगे भाजपा का चेहरा
पंजाब में 34 आरक्षित सीट हैं, जिनमें रविदासिया समाज, भगत बिरादरी, वाल्मीकि भाईचारा, महजबी सिख की भारी संख्या में वोट हैं। खासकर दोआबा में रविदासिया समाज बहुसंख्या में है और करीब 35 फीसदी आबादी दलितों की है। भाजपा हाईकमान ने पंजाब में दलित सीएम बनाने की घोषणा की हुई है। पार्टी के पास केंद्रीय राज्य मंत्री सोमप्रकाश रविदासिया समाज से हैं जबकि राष्ट्रीय एससी/एसटी आयोग के चेयरमैन विजय सांपला भी इसी बिरादरी से हैं। भगत चुन्नी लाल काफी बुजुर्ग हो चुके हैं और 2017 में ही उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था। पार्टी के पास दो ही कद्दावर नेता हैं, जिनको सीएम चेहरा बनाकर चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है।
नरेश शर्मा भारद्वाज , जालन्धर:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में राज्यमंत्री के तौर पर काम कर चुके विजय सांपला को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का चेयरमैन बनाया है। इसी के साथ सरकार ने 2022 में पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए अपना तुरुप का पत्ता भी चल दिया है। वहीं राष्ट्रीय राजनीति में सांपला का कद दोबारा बड़ा कर दिया है।
विजय सांपला को राष्ट्रीय चेयरमैन की कुर्सी देकर भाजपा की ओर से पंजाब की 34 विधानसभा सीटों पर प्रभाव डालने की पूरी रणनीति तैयार की गई है। पंजाब में 2022 में भाजपा अकेले चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। राज्य में पार्टी पहले ही दलित वोट बैंक को लेकर काफी गंभीर रही है। पंजाब में 117 में से 34 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, जिसमें से अभी तक भाजपा पांच सीटों पर ही चुनाव लड़ती रही है। बाकी सीटों पर शिअद ने अपना कब्जा रखा था।
कृषि कानून पास होने से पंजाब का ग्रामीण वोटर केंद्र सरकार से नाराज चल रहा है।। सांपला का राजनीतिक करियर पर उस समय विराम लग गया था, जब 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी टिकट काटकर सोम प्रकाश को दे दी गई थी। वह अब केंद्र में मंत्री हैं। लोकसभा चुनावों में टिकट न मिलने के बावजूद विजय सांपला ने पार्टी और मैदान में अपना संघर्ष जारी रखा।
सोफी पिंड के सरपंच से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले विजय सांपला ने 2007 में जालंधर वेस्ट से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी। उनका ग्राउंड वर्क भी पूरा हो चुका था लेकिन एन मौके पर उनका टिकट कट गया। टिकट भगत चुन्नी लाल ले गए। सांपला और भगत चुन्नी लाल में यहीं से सियासत की जंग शुरू हो गई।
2012 में भी सांपला ने दोबारा जालंधर वेस्ट से टिकट लेने के लिए जोर लगा दिया। लेकिन भगत चुन्नी लाल ने उनका टिकट कटवाकर खुद हासिल कर लिया। 2014 में लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करने वाले सांपला को पार्टी ने 2017 में पंजाब का प्रधान बनाकर उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा था।
किसान आंदोलन ने खोली दोबारा राह
इसके बाद श्वेत मलिक पंजाब के प्रधान बने और 2019 में सांपला का लोकसभा का टिकट कट गया तो उनकी विरोधी लॉबी जबरदस्त ढंग से हावी हो गई। सांपला का गुट बिल्कुल हाशिये पर चला गया। अब 2021 में सांपला का दोबारा उदय हुआ है। केंद्र सरकार ने उनको राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का चेयरमैन बनाकर 34 विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव डालने की कोशिश की है।
भाजपा की लीडरशिप तो यह भी खुलेआम कह चुकी है कि पंजाब में दलित मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकता है। पंजाब में किसानी कानून का डटकर विरोध हुआ है और पंजाब से निकला आंदोलन कई राज्यों में फैल गया है। जिसको केंद्रीय राज्यमंत्री सोम प्रकाश समेट नहीं पाए। जिससे भाजपा हाईकमान की नाराजगी पंजाब के नेताओं से काफी हो गई थी। ऐसे में हाईकमान ने दोबारा सांपला को बड़ी जिम्मेदारी देकर मैदान में उतारा है।
राज्य में पूरी ताकत झोंकने की तैयारी
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा हाईकमान जहां 45 शहरी सीटों पर हिंदू वोट बैंक पर पूरी नजर गड़ाये हैं तो वहीं, 34 दलितों सीटों पर भी अपना परचम लहराने की तैयारी कर रही है। आने वाले दिनों में भाजपा की लीडरशिप पंजाब में पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर रही है। इसकी शुरुआत सांपला की ताजपोशी से हो गई है।
सांपला के निकटवर्ती अमित तनेजा का कहना है कि पार्टी के प्रति वफादारी और मेहनत का फल सांपला को मिला है। उन्होंने 2019 में लोकसभा का टिकट कटने के बावजूद पार्टी के लिए जी-जान से मेहनत की और पंजाब में संघर्ष किया। सांपला को राष्ट्रीय चेयरमैन की कुर्सी देने से हाईकमान ने पंजाब के वोटरों को यह संदेश दिया है कि छोटा प्रदेश होने के बावजूद पंजाब उनकी प्राथमिकता में है।