माँ धूमवाती जयंती
आज 18 जून को है मां धूमावती जयंती, साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है मां का सर्वोत्तम भोग मीठी रोटी, घी के द्वारा होम करने से प्राणियों के सभी संकट समाप्त हो जाते हैं।
धर्म/संस्कृति डेस्क, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम – चंडीगढ़ :
मां धूमावती का प्रकटोत्सव ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को है। अग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह जयंती 18 जून 2021 शुक्रवार को मनाई जाएगी। माता धूमावती 10 महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति हैं। आओ जानते हैं इनके प्रकटोत्सव की कथा और पूजा पर्व का शुभ मुहूर्त।
मां धूमावती के प्राकट्य से संबंधित कथाएं अनूठी हैं। पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआं निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ। इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं। यानी धूमावती धुएं के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है। सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआं।
दूसरी कहानी यह है कि एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी। तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी। उन्होंने शिव से कहा-‘मुझे भूख लगी है’ मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें’ शिव ने कहा-‘अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता’ तब सती ने कहा-‘ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूं। और वे शिव को ही निगल गईं। शिव तो स्वयं इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं। लेकिन देवी की लीला में वे भी शामिल हो गए।
भगवान शिव ने उनसे अनुरोध किया कि ‘मुझे बाहर निकालो’, तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया… निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘ आज और अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी….
तभी से वे विधवा हैं। पुराणों में अभिशप्त, परित्यक्त, भूख लगना और पति को निगल जाना ये सब सांकेतिक प्रकरण हैं। यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नहीं होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है। मां धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं।विशेष : कुछ लोगों का मानना है गृहस्थ लोगों को देवी की साधना नहीं करनी चाहिए।
इन महाविद्या का स्थायी आह्वाहन नहीं होता अर्थात इन्हे लंबे समय तक घर में स्थापित या विराजमान होने की कामना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये दुःख, क्लेश और दरिद्रता की देवी हैं। जप शुरू करने से पहले आवाहन करें और ख़त्म होने पर विसर्जन कर दें।
कौन है माता धूमावती : माता धूमावती 10 महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति हैं। कहते हैं कि धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें ‘सुतरा’ कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऋषि दुर्वासा, भृगु और परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती है। सृष्टि कलह की देवी होने के कारण इन्हें कलहप्रिय भी कहा जाता है। देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमें ये समस्त विश्व को समेट कर महाप्रलय कर देती हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। चतुर्मास देवी का प्रमुख समय होता है जबकि इनकी साधना की जाती है। इनकी साधना से जीवन में निडरता और निश्चिंतता आती है। इनकी साधना या प्रार्थना से आत्मबल का विकास होता है। इस महाविद्या के फल से देवी धूमावती सूकरी के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग अरिष्ट और शत्रुओं का नाश कर देती है। प्रबल महाप्रतापी तथा सिद्ध पुरूष के रूप में उस साधक की ख्याति हो जाती है।इस महाविद्या की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम किया जाता है। धूमावती महाविद्या के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला लोभ-लालच से दूर रहें। शराब और मांस को छूए तक नहीं। साधना करने से पहले नियम जरूर जान लें। सुहागन महिलाओं को इनकी पूजा नहीं करना चाहिए।
धूमावती का मंत्र : मोती की माला से नौ माला ‘ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:’ या ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्।। धूं धूं धूमावती ठ: ठ:। मंत्र का जाप कर सकते हैं। जप के नियम किसी जानकार से पूछें।