चिराग तले बगावत
लोजपा में बगावत की शुरुआत रविवार को ही हो गई थी। रविवार को ही खबरें आईं कि लोजपा के छह में से पांच सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष से मिलकर अपने नए नेता को चुन लिये जाने की सूचना दी है। दिवंगत नेता राम विलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को लोजपा संसदीय दल का नया नेता चुना गया था। इसे लोकसभा अध्यक्ष ने भी मान्यता दे दी है। अब पार्टी पर कब्जे को लेकर बागी गुट ने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। बागी गुट ने जल्द ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाए जाने की बात कही है। इसमें पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि पशुपति कुमार पारस को ही नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना जाता है। लोजपा के स्थापना काल के बाद 25 वर्षों से अधिक समय तक राम विलास पासवान खुद ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। उन्होंने खुद ही चिराग को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की घोषणा की थी।
सरिका तिवारी, नयी दिल्ली/ पटना/ चंडीगढ़ :
लोजपा संसदीय दल के नेता बने पशुपति कुमार पारस ने मंगलवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई। इस बैठक में चिराग पासवान को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने की अनुशंसा कर दी। इसके तुरंत बाद चिराग पासवान ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की वर्चुअल बैठक की। इस बैठक में पांचों सांसदों (पशुपति कुमार पारस, प्रिंस राज, वीणा देवी, चंदन सिंह और महबूब अली कैसर) को लोजपा से हटाने की अनुशंसा कर दी।
लोजपा नेता राजू तिवारी ने इस संबंध में मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि आज राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई और इस बैठक में पांचों सांसदों को पार्टी से हटाए जाने का फैसला लिया गया। इससे पहले चिराग ने अपने अधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर चाचा के नाम इस साल 29 मार्च को लिखी पांच पन्नों की एक भावुक चिट्ठी शेयर की। इसके साथ लिखे संक्षिप्त संदेश में वह अपने चाचा पशुपति कुमार पारस पर जमकर बरसे। चिराग ने लिखा-पार्टी मां समान है और मां के साथ धोखा नहीं करना चाहिए।
इस दौरान चिराग ने अपने चाचा पशुपति पारस को लिखी 29 मार्च 2021 की पुरानी चिट्ठी भी ट्विटर पर सार्वजनिक कर दी है। इस चिट्ठी में उन्होंने साफ लिखा है कि ‘2019 में रामचंद्र चाचा के निधन के बाद से ही आपमें बदलाव देखा और आज तक देखते आ रहा हूं। चाचा के निधन के बाद प्रिंस की जिम्मेदारी चाची ने मुझे दे दी और कहा कि आज से मैं ही प्रिंस के लिए पिता समान हूं। प्रिंस को आगे बढ़ाने के लिए उसको प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मैंने दी। सबलोग इस फैसले से खुश थे लेकिन मुझे तब पीड़ा हुई जब आप इस फैसले के विरोध में नाराज हो गए और आपने प्रिंस को मिली नई जिम्मेवारी के लिए उसे शुभकामना देना भी उचित नहीं समझा।’
गौरतलब है कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के छह लोकसभा सदस्यों में से पांच ने दल के मुखिया चिराग पासवान को संसद के निचले सदन में पार्टी के नेता के पद से हटाने के लिए हाथ मिला लिया है और उनकी जगह उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद के लिए चुन लिया है।
रणनीतिकार ने चिराग को डुबोया
लोजपा सांसद चिराग पासवान को इस हश्र में लाने वाले उनके तथाकथित चुनावी रणनीतिकार हैं। पार्टी दायरे की चर्चाओं पर गौर करें तो लोजपा में अचानक प्रकट होकर दिन-रात चिराग के साथ साए के तौर पर रहने वाले इस शख्स की तूती ऐसी बोलती थी कि कोई इसके सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर सकता। दल हो या परिवार, सबकी अनदेखी कर चिराग केवल इसकी ही बात सुनते रहे। बताया जाता है कि चिराग आंख मूंदकर इस पर भरोसा करते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि विधानसभा चुनाव में अकेले अपने दम चुनाव लड़ने की सलाह भी इसी शख्स ने दी थी। दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी चिराग से अगर कोई पार्टी नेता मिलना चाहता, अपनी बात कहना चाहता तो पहले इसी शख्स से अनुमति लेनी पड़ती। इसी शख्स से दल के छोटे-बड़े सभी नेता आजिज आ चुके थे। पांच सांसदों की बगावत में इस शख्स का भी बड़ा योगदान माना जाता है।
पहले चुनाव को छोड़ बाकी सबमें पिछड़ती रही लोजपा
गठन के बाद लोक जनशक्ति पार्टी अपने पहले चुनाव को छोड़कर कभी भी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई। खासकर बिहार विधानसभा चुनाव में वह दो बार अकेले और बाकी समय कई दलों के साथ चुनाव लड़ चुकी है पर उसे अपने कोर वोटर से अधिक मत हासिल नहीं हो सके हैं। लोजपा की स्थापना 2000 में रामविलास पासवान (अब दिवंगत) ने की थी। पार्टी ने पहला चुनाव 2004 के लोकसभा का लड़ा। 12 राज्यों में 40 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली लोजपा को बिहार की मात्र चार सीटों पर जीत हासिल हुई। लोजपा को 10.02 फीसदी ही मत हासिल हुए। साल 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में पार्टी ने पहली बार विधानसभा के चुनावी मैदान में ताल ठोकी। अकेले अपने दम पर चुनावी मैदान में 178 सीटों पर उतरी लोजपा को 29 सीटें हासिल हुईं। यही नहीं पार्टी के खाते में 12.62 फीसदी वोट भी आए जो अब तक का सबसे अधिक है। तब रामविलास पासवान बंगले (पार्टी का चुनाव चिह्न) की चाभी को सत्ता की चाभी से जोड़कर दंभ भरते रहे, लेकिन संयोग ऐसा रहा कि उस समय किसी की भी सरकार नहीं बन सकी।
बागी गुट के लिए आसान है रास्ता
उम्मीद है कि पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में बागी गुट नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में आसानी से बाजी मार लेगा। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान अपनी नीति को लेकर चिराग पार्टी के ज्यादातर नेताओं से नाराजगी मोल ले चुके हैं। उनकी पार्टी का बिहार में अब न तो एक भी विधायक है और न हीं विधान पार्षद। पार्टी के पास बिहार में केवल छह सांसद ही बचे हैं, जिनमें एक चिराग बिल्कुल अकेले खड़े दिख रहे हैं। हालांकि आसार इस बात के भी हैं कि पार्टी दो गुटों में बंट जाए।
कल पटना पहुंच रहे हैं पारस
पारस ने बताया कि बुधवार को वे पटना पहुंच रहे हैं और यहीं पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी करेंगे। पार्टी के संसदीय दल के नेता पद और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से बेदखल किए जाने के बाद चिराग पासवान ने भी मंगलवार की शाम दिल्ली स्थित 12 जनपथ सरकारी आवास पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर आगे की रणनीति पर लंबी मंत्रणा की।