सचिन “दुविधा” में क्या करें क्या नहीं
राजस्थान में कांग्रेस के अंदर एक बार फिर उठापटक तेज हो ती दिख रही है। सचिन पायलट का धैर्य जवाब दे रहा है। पिछले साल बगावत के बाद जब उन्होंने कांग्रेस में वापसी की थी, तो उम्मीद थी कि उनका और उनके विश्वासपात्र विधायकों का सरकार के अंदर बेहतर समायोजन होगा, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। पिछले महीने पायलट ने खुलकर कहा, ‘कई माह पहले एक कमेटी बनी थी। मुझे विश्वास है कि अब और ज्यादा विलंब नहीं होगा। जो चर्चाएं की गई थीं और जिन मुद्दों पर आम सहमति बनी थी, उन पर तुरंत प्रभाव से कार्रवाई होनी चाहिए।’ सचिन की इस ऊहापोह वाली स्थिति का अंतत: लाभ भाजपा ही को मिलेगा। जिस प्रकार से राजस्थान की राजनीति चलती है कि सरकारें हर बार बदल कर आतीं हैं, उस गणित से अगली बार भाजपा कि सरकार होगी। असमंजस में पड़े सचिन पायलट को जादूगर गहलोत अपने पाँच साल पूरे करने के लिए इस्तेमाल करेंगे। 2023 में अभी देर है।यदि इसी असमंजस में अगले दो ढाई साल भी नकल जाते हाँ तो भाजपा को सचिन का भार नहीं उठाना पड़ेगा और सत्ता भी मिल जाएगी।
सारिका तिवारी, चंडीगढ़:
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस समय लगातार समस्याओं से जूझ रही है। पार्टी के प्रमुख युवा नेता और राहुल गांधी के एक समय बेहद करीबी माने जाने वाले जितिन प्रसाद बुधवार को बीजेपी में शामिल हो गए। जितिन के बाद कांग्रेस से अब किसकी ‘बारी’, इसे लेकर चर्चाओं और अटकलों का दौर शुरू हो गया है। जितिन के बीजेपी में जाते ही राजस्थान के कांग्रेस नेता सचिन पायलट का नाम ट्रेंड करने लगा। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल किया-ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद के बाद क्या ‘वे’ अगले नेता होंगे? इसके पीछे कारण भी बताए जा रहे हैं. पिछले साल राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करने वाले सचिन पायलट से किए गए वादों को कांग्रेस हाईकमान ने अब तक पूरा करना तो दूर अभी तक शायद संगयान भी नहीं लिया है।
गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट के ‘बागी तेवरों’ और उनके ‘लगभग बाहर’ आने को राजस्थान की कांग्रस सरकार को गिराने के बीजेपी के मास्टर प्लान का हिस्सा माना जा रहा था. हालांकि यह प्लान, अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंच पाया. गांधी परिवार के साथ मीटिंग के बाद सचिन ने अपना इरादा बदल दिया. उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा था-मैंने जो मुद्दे उठाए हैं, उनके निराकरण का वादा किया गया है. हालांकि सचिन ने बुधवार को एक इंटरव्यू में पार्टी आलाकमान को याद दिलाया है कि इन ‘वादों’ को अब तक पूरा नहीं किया गया है। एक दैनिक को दिए इंटरव्यू में सचिन पायलट ने कहा, “10 माह हो चुके हैं. मुझसे कहा गया कि समिति की ओर से तत्परता से कार्रवाई की जाएगी लेकिन आधा कार्यकाल (राजस्थान सरकार का) हो चुका है और इन मुद्दों को सुलझाया नहीं गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पार्टी के पक्ष में जनादेश (राजस्थान में) दिलाने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं की आवाज को सुना नहीं जा रहा है।”
कांग्रेस के लिए अब राजस्थान के सीएम गहलोत और सचिन पायलट, दोनों को ही एक साथ खुश रखना, कठिन चुनौती साबित हो रहा है। राजस्थान में कैबिनेट विस्तार में सचिन पायलट कैंप को ज्यादा स्थान देना इसका एक समाधान हो सकता है। बताया जाता है कि सीएम गहलोत इसलिए राजी है। कैबिनेट विस्तार की मांग विभिन्न कारणों के चलते लंबित है। सूत्र बताते हैं कि पायलट की मांगों पर विचार के लिए गठित किया गया पैनल की अगस्त के बाद से मीटिंग नहीं हुई है। इस पैनल के एक सदस्य, अहमद पटेल की पिछले साल नवंबर में कोविड के कारण मौत हो गई थी. अहमद पटेल को कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी का ‘प्रमुख संकटमोचक’ माना जाता था।
राजेश पायलट की पुण्यतिथि की तैयारियां भी तेज
जानकारी यह भी मिल रही है कि 11 जून को राजेश पायलट की पुण्यतिथि को लेकर सचिन पायलट की ओर से तैयारी चल रही है। लेकिन पुण्यतिथि की तैयारियों के साथ सूत्रों के हवाले से यह बात भी सामने आ चुकी है। पायलट और उनके समर्थक विधायक पुण्यतिथि कार्यक्रम में अपना “शक्तिप्रदर्शन” करेंगे, ताकि कांग्रेस नेतृत्व को नाराजगी से जुड़े संकेत दिए जा सकें।
गहलोत खेमा भी पूरी तरह अलर्ट
बड़ी बात यह भी है कि सचिन पायलट के साथ अब गहलोत खेमा भी पूरी तरह अलर्ट मोड़ पर है। सीएम गहलोत के बेहद करीबी माने जाने वाले धमेंद्र राठौड़ ने हाल ही पायलट समर्थक विश्वेंद्र सिंह और पी आर मीणा के साथ मुलाकात की थी। कयास यह भी लगाए जा रहे है कि अब गहलोत सरकार की ओर से उन्हें डेमेज कंट्रोल के तहत पायलट खेमे को मंत्रिमण्डल में शामिल करने को लेकर कवायद तेज हो गई है।