लड़की और लड़के की शादी की उम्र नहीं:लिव इन रिलेशनशिप में साथ रहते हैं. अदालत ने क्या कहा?

  यदि वयस्क कपल में से किसी एक की उम्र विवाह योग्य निर्धारित उम्र से कम भी है तब भी वो अपने साथी के साथ लिव इन रिलेशन में रह सकता है, यह अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के साथ को अवैध करार नहीं दिया जा सकता और इसके खिलाफ किसी भी तरह का आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता। बता दें कि केरल हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने के अधिकार को ना तो कोई कोर्ट कम कर सकता है ना ही कोई व्यक्ति, संस्था या फिर संगठन।

 करणीदानसिंह राजपूत

लड़के लड़कियों का लिव इन रिलेशनशिप में रहने का प्रचलन भारत में बढ रहा है और अभिभावकों की चिंता भी बढ रही है। नई चिंता यह है कि लड़का लड़की दोनों की उम्र शादी की कानूनी उम्र से कम हो और वे शादी नहीं करके लिव इन रिलेशनशिप में रहने लग जाएं। इस प्रकार के मामले बढ जाएं तो फिर क्या होगा? जब कानूनी रूप से अभिभावक कुछ नहीं कर पाएं तब केवल एक ही रास्ता रहता है कि बच्चों को सीख देने का कार्य समय रहते किया जाए। उनको समझा कर ही ऐसे रिलेशन से दूर रखा जा सकता है। ऐसे मामलों में लड़की अपने घर से निकलती है। मतलब लड़की को ही समझाया जाए कि विवाह की उम्र से पहले किसी लड़के से संबंध बनाना सही नहीं है। आजकल सोशल मीडिया पर ऐसे संपर्क होते हैं और वे संबंध बन जाते हैं। अकेली लड़की को ही नहीं लड़के को भी शिक्षा दी जानी चाहिए कि विवाह की उम्र से पहले कोई संबंध चाहे लिव इन रिलेशनशिप हो ,उचित नहीं है।

अदालतें ऐसे मामलों में आखिर क्या करें?

 लड़के लड़की सुरक्षा मांगते हैं और अदालत सुरक्षा देने का आदेश पुलिस को देती है। 

अभी पंजाब का एक मामला सामने आया है: 

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही 17 साल की लड़की और 20 साल के लड़के को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देते हुए कहा है कि अगर वे बिना शादी के ही साथ रहना चाहते हैं तो यह उनकी मर्जी।

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही 17 साल की लड़की और 20 साल के लड़के को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देते हुए कहा है कि अगर वे बिना शादी के ही साथ रहना चाहते हैं तो यह उनकी मर्जी। इस फैसले का मूल्यांकन करना अदालत का काम नहीं है।

अदालत की एकल पीठ ने पंजाब के बठिंडा के एक जोड़े की याचिका पर यह आदेश दिया। इस जोड़े ने अपनी जान की सुरक्षा और परिवार के सदस्यों से आजादी के लिए अनुरोध किया था। अदालत ने कहा कि उत्तरी भारत में खासकर हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाएं होती रहती हैं और कहा कि ऐसे जोड़े की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य की है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि लड़की के अभिभावक उसकी शादी कहीं और कराना चाहते थे क्योंकि उन्हें दोनों के संबंधों का पता चल गया था। लड़की अपने अभिभावक के घर से निकल गयी और अपने जीवनसाथी के साथ रहने लगी। विवाह योग्य उम्र नहीं होने के कारण उन्होंने शादी नहीं की। शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए।

जोड़े ने बताया कि उन्होंने बठिंडा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। इस संबंध में पंजाब के सहायक महाधिवक्ता ने अदालत को सूचित किया कि जोड़े की शादी नहीं हुई है और वे लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं।

आगे उन्होंने कहा कि हाल में कुछ पीठों ने ऐसे मामलों को खारिज कर दिया जहां ऐसे रिश्तों में रह रहे जोड़े ने सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध किया था। न्यायमूर्ति संत प्रकाश ने कहा कि अगर किसी ने शादी के बिना ही साथ रहने का फैसला किया है तो ऐसे लोगों को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार करना न्याय का मखौल होगा और ऐसे लोगों को उन लोगों से गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं, जिनसे उनकी सुरक्षा की जरूरत है।

न्यायाधीश ने कहा ऐसी स्थिति में अगर सुरक्षा से मना किया जाता है तो अदालत भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को जीवन और आजादी के अधिकार और कानून के शासन को बनाए रखने में अपना कर्तव्य निभाने में नाकाम होंगी। न्यायमूर्ति प्रकाश ने तीन जून के अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं ने बिना शादी के ही साथ रहने का फैसला किया और उनके फैसले का मूल्यांकन करना अदालत का काम नहीं है।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अगर याचिकाकर्ताओं ने कोई अपराध नहीं किया तो इस अदालत को सुरक्षा मंजूर करने के उनके अनुरोध को अस्वीकार करने की कोई वजह नहीं है। इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने से मना करने वाली पीठ के दृष्टिकोण के अनुरूप यह अदालत वही नजरिया अपनाने के पक्ष में नहीं है।’’

अदालत ने बठिंडा के एसएसपी को याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश दिया। इससे पूर्व लिव-इन रिश्ते में रह रहे जोड़े को लेकर अलग-अलग पीठों ने अलग-अलग फैसले दिए थे। न्यायमूर्ति एच एस मदान की एकल पीठ ने सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध करने वाले पंजाब के एक जोड़े की याचिका को खारिज करते हुए 11 मई के अपने आदेश में कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक और सामाजिक तौर पर स्वीकार्य नहीं है।

वहीं, हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल ने 18 मई के अपने आदेश में हरियाणा के एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान करते हुए कहा था कि ऐसे रिश्तों की सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ रही है।