यूपी विधानसभा चुनाव – 22, कॉंग्रेस और प्रियंका की साख दांव परलेकिन आंतरिक कलह जारी

  निकाय, लोकसभा चुनाव, पंचायत चुनाव और कई उपचुनावों में हार का मुंह देख चुकी कांग्रेस अपने बुरे दौर से नहीं निकल पा रही है। इसके साथ ही पार्टी संगठन में रार और नेताओं की आपसी कलह ने भी प्रदेश में पार्टी का बंटाधार किया है। हाल में ही प्रदेश में नई कार्यकारिणी गठित की गई. इस कार्यकारिणी के गठन का उद्देश्य प्रदेश में संगठन को एक बार फिर से मजबूती के साथ खड़ा करने के साथ ही आने वाले विधानसभा चुनाव में जीत का जंप लगाना था। कांग्रेस तमाम उठा-पठक के बाद भी 2022 में जीत का सपना देख रही है।

सरीका तिवारी:

उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है। बीजेपी अपने संगठन को दुरुस्त करने के लिए मंथन में जुटी है तो सपा छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाने में जुटी है, वहीं कांग्रेस कश्मकश में फंसी हुई है कि कैसे प्रियंका गांधी की छवि और लोकप्रियता को बचाए रखा जाए, क्योंकि 2022 के चुनाव पार्टी बेहतर नहीं कर पाई तो उसका सीधा असर प्रियंका वाड्रा पर पड़ेगा. ऐसे में कांग्रेस तय नहीं कर पा रही हैं कि वो अकेले या फिर गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरे। 

प्रदेश में कांग्रेस में मचा हुआ बवाल शांत होने का नाम नहीं ले रहा है।  एक बार फिर कांग्रेस की खेमेबाजी सड़क पर आ गयी है। पार्टी में आये दिन होने वाले ड्रामों की हकीकत की अपनी-अपनी कहानी लेकर हर कोई दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने को तैयार बैठा है।  जिसके कारण पार्टी में अंसतोष और अविश्वास लगातार बढ़ता जा रहा है, जोकि आने वाले दिनों में पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है।  जिसका खामियाजा 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। 

क्या है प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का इरादा
हाल ही में प्रदेश में नई कार्यकारिणी गठित की गई है।  जिसके बाद से ही पार्टी में तू-तू मैं-मैं जारी है।  प्रदेश कार्यकारिणी में मनमुताबिक पद न मिलने से शुरू हुए घमासान की आहट दिल्ली तक सुनाई दे रही है, तो वहीं प्रदेश में भी इसके अलग ही सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। 

सियासी जानकारों की मानें तो कांग्रेस को आपसी गुटबाजी और खेमेबाजी से ऊपर उठकर ग्रासरूट पर काम करने की जरूरत है। ताकि धरातल पर कांग्रेस का जनाधार बढ़ाया जा सके. यही नहीं प्रदेश कांग्रेस को एक ऐसे नेतृत्व की दरकार है जो कि सर्वप्रिय के साथ ही सर्वमान्य हो। 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 7 सीटों पर ही सिमट गई थी। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस इससे ज्यादा नहीं कर पाती है तो ये उसके लिए दुर्भाग्य की बात होगी।