कोरोना की मार झेल रही नयी दिल्ली अपने ही मुख्यमंत्री की चालों का शिकार होती जान पड़ती रही है। इनके अपने नेता जो अब इन्हे छोड़ चुके हैं उनकी मानें तो अरविंद केजरीवाल ए अराजक, निरंकुश और आट्म्मुग्ध व्यक्ति हैं। कमोबेश यही हाल इनके मंत्रिमंडल का भी है। इनके मंत्री तो अपनी पत्नी से पाशविक ढंग से पेश आने पर, फर्जी डिग्री के मामले में जेल यात्रा कर चुके हैं। कुछ तो दूसरे राजी में भी जेल जा चुके हैं। धारना – प्रदर्शन प्रेमी दिल्ली के मुख्यमंत्री पीआर अरबों रुपयों के गैरजिम्मेदाराना इस्तेमाल के आरोप भी लग चुके हैं। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय की फटकारों के बाद न्यायधीशों को खुश करने के लिए 5 सितारा होटल में उनके स्वास्थ्य लाभ के प्रबंध कर न्यायालय द्वारा पुन: प्रताड़ित हुए। यहाँ तक की न्यायालय ने यहाँ तक कह दिया की यदि आपसे इस घड़ी में दिल्ली नहीं संभालती तो क्यों न केंद्र को दिल्ली सौंप दी जाय? कल मध्य रात्रि दिल्ली की चाभी एलजी को सोंप दी गयी। अभ केजरीवाल और उनका मंत्री मण्डल एक प्रशासनिक ज़िम्मेदारी के आलावा कुछ भी नहीं।
सारिका तिवारी, चंडीगढ़/नयी दिल्ली:
कोरोना संक्रमण से बेहाल दिल्ली में केंद्र सरकार ने ‘Government of National Capital Territory of Delhi(Amendment) Act 2021’ नोटिफाई कर दिया। यह 27 अप्रैल 2021 की आधी रात से प्रभावी हो गया है। इसमें दिल्ली के उप राज्यपाल के अधिकारों को परिभाषित किया गया है। अब इस केंद्र शासित प्रदेश में सरकार का मतलब ‘उप राज्यपाल’ होगा। ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राजक्षेत्र अधिनियम शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021’ के लागू होने के बाद हर फैसले पर LG का विचार लेना होगा।
दिल्ली सरकार अथवा कैबिनेट द्वारा कोई भी फैसला लिया जाता है तो उससे पहले उसे LG के साथ सलाह-मशविरा करना होगा। ये नोटिफिकेशन ऐसे समय में आया है, जब दिल्ली में प्रदेश और केंद्र की सरकार अदालत से लेकर ग्राउंड जीरो तक एक-दूसरे के सामने खड़ी है। केजरीवाल सरकार पर दिल्ली में ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए लापरवाही बरतने का आरोप है, जिसके कारण कई मरीजों की जान गई।
इस अधिनियम में ‘GNCT ऑफ दिल्ली एक्ट, 1991’ को फिर से परिभाषित किया गया है, जिसके हिसाब से चुनी हुई सरकार और LG की शक्तियों को फिर से परिभाषित किया गया है। अब दिल्ली की विधानसभा या इसकी समितियाँ दिल्ली की NCT की रोजमर्रा के मुद्दों पर फैसला नहीं ले पाएगी और साथ ही प्रशासनिक मामलों में जाँच का आदेश नहीं दे पाएगी। विपक्षी दलों ने इस बिल का जम कर विरोध किया था।
हालाँकि, केंद्र सरकार का कहना है कि यह कोई संशोधन नहीं है बल्कि पहले से ही बने-बनाए अधिनियम को और स्पष्ट किया गया है। इससे न तो चुनी हुई सरकार का कोई अधिकार छीना गया है और न ही उप-राज्यपाल को विशेषाधिकार दिए गए हैं। केंद्र के अनुसार, बजट, बिल इत्यादि दिल्ली सरकार के ही अधीन हैं, लेकिन डे-टू-डे प्रशासन पर निर्णय वो नहीं लेगी क्योंकि दिल्ली सरकार की कमिटी आपराधिक मामलों को देखने लगी तो फिर एग्जीक्यूटिव पुलिस क्या करेगी?
सेक्शन 24 में लिखा है कि विधानसभा द्वारा पास किए गए कानून उप-राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए जाएँगे। साथ ही प्रशासनिक जाँच बिठाने जैसे अधिकारों में कटौती की गई है। बता दें कि दिल्ली पुलिस पहले से ही वहाँ की सरकार के अधीन न होकर केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है, ऐसे में चीजों को लिखित में और स्पष्ट किया गया है। सरकार के फैसलों के लिए उप-राज्यपाल का मत लिए जाने की बात भी कही गई है।
बता दें कि नई दिल्ली देश की राजधानी है, ऐसे में वहाँ हर घटना का सम्बन्ध देश की सुरक्षा से जुड़ता है। लिहाजा, दोनों सरकारों के अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या ज़रूरी है। ‘नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट’ में संशोधन कर उसमें सिर्फ एक चीज जोड़ी गई है, कुछ भी हटाया नहीं गया है। 1991 एक्ट में बस इतना जोड़ा गया है कि दिल्ली में सरकार का तात्पर्य उप राज्यपाल से होगा।