राजऋषि दशरथ मेडिकल कालेज में 55 लाख की लागत से बनेगा ऑक्सिजन संयंत्र
देश में मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन की फ़िलहाल किल्लत है, जिसके लिए रिलायंस से लेकर टाटा और कई अन्य कंपनियाँ सामने आई हैं। टाटा को जब नए संसद भवन के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी तो इन्हीं लोगों ने उसकी आलोचना की थी। अंबानी-अडानी को ये लोग रोज गाली देते हैं। इसी तरह अब वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को भी निशाना बनाया जा रहा है। साथ ही एक वर्ग दोहरा रवैया अपनाते हुए ये भी पूछ रहा है कि 18 से कम के उम्र वालों को वैक्सीन पहले ही क्यों नहीं दी?
अब जब देश कोरोना काल में एक तरह के मेडिकल आपातकाल से गुजर रहा है, ऐसे समय में ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट देश में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए आया है। ट्रस्ट ने निर्णय लिया है कि वो दशरथ मेडिकल कालेज में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करेगा। देश में ऑक्सीजन की दिक्कत को देखते हुए ट्रस्ट ने ये बड़ा फैसला लिया है। इस ऑक्सीजन प्लांट को स्थापित करने में 55 लाख रुपए का खर्च आएगा।
‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट के ट्रस्टी डॉक्टर अनिल मिश्र ने इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए कहा कि इस समय पूरा देश कोरोना की दूसरी लहर से परेशान है, ऐसे में राम मंदिर की तरफ से भी जनहित में योगदान दिया जा रहा है। बता दें कि रामलला के अस्थायी मंदिर में दर्शन-पूजन पहले ही रोक दिया गया है, ताकि श्रद्धालुओं की भीड़ न जुटे। इसी तरह कुम्भ के अखाड़ों ने भी हरिद्वार में अब इसे प्रतीकात्मक रखने का फैसला किया।
इस खबर से गिरोह विशेष को ज़रूर परेशानी हो सकती है, जो लगातार मंदिर-मंदिर की रट लगाए हुए था और पूछा जा रहा था कि जिस देश में मंदिर बनवाए जाते हों, वहाँ स्वास्थ्य सिस्टम कैसे सुधरेगा? अब उन्हें आत्मचिंतन करने का समय आ गया है क्योंकि मंदिर सरकार नहीं, श्रद्धालु बनवा रहे हैं। हाँ, मंदिर की संपत्ति पर ज़रूर सरकार का कब्ज़ा है। क्या किसी अन्य मजहब में ऐसा होता है? हिसाब माँगा जाता है?
हाल ही में अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने इसी तरह का प्रोपेगंडा फैलाया था। स्वरा भास्कर को ये तो जानना ही चाहिए कि इस आपात स्थिति में राम मंदिर क्या कर रहा है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी दो और खबरें हैं, जो आजकल में ही आईं।
- राजस्थान के सांगनेर स्थित जामा मस्जिद में जब पुलिस लॉकडाउन का पालन कराने गई तो पुलिस पर ईंट-पत्थरों से हमला किया गया।
- गुजरात के कपड़वंज स्थित अली मस्जिद में भीड़ जुटाने से रोका गया तो पुलिस पर हमला हुआ।
अभी तक गिरोह विशेष के एक भी सेलेब्रिटी ने इन घटनाओं की निंदा नहीं की है। पिछले साल भी ऐसी कई घटनाएँ सामने आई थीं, ये नई नहीं हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि गाँवों में स्थित छोटे मंदिरों से लेकर हजारों वर्ष पुराने भव्य मंदिर तक कोरोना काल में जिस तरह से गरीबों की सेवा कर रहे हैं, उसे छिपाने के लिए राम मंदिर के दान का मुद्दा बार-बार उठाया जाता है? साथ ही इससे इस्लामी कट्टरपंथियों की करतूतों पर भी पर्दा डाला जाता है?
असली कारण यही है। पीएम केयर्स फंड में जिस तरह से मंदिरों ने आगे आकर बढ़-चढ़ कर दान दिया, उसकी प्रशंसा इन सेलेब्रिटीज ने नहीं की। कुम्भ को सही समय पर समाप्त कर के अखाड़ों ने बिना किसी के कहे ही जनहित में निर्णय लिया, उसकी तारीफ़ इन वामपंथी पत्रकारों ने नहीं की। IIT कानपुर के उस रिसर्च पर आँख मूँद लिया गया, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि कुम्भ से कोरोना के प्रसार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
देश में मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन की फ़िलहाल किल्लत है, जिसके लिए रिलायंस से लेकर टाटा और कई अन्य कंपनियाँ सामने आई हैं। टाटा को जब नए संसद भवन के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी तो इन्हीं लोगों ने उसकी आलोचना की थी। अंबानी-अडानी को ये लोग रोज गाली देते हैं। इसी तरह अब वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को भी निशाना बनाया जा रहा है। साथ ही एक वर्ग दोहरा रवैया अपनाते हुए ये भी पूछ रहा है कि 18 से कम के उम्र वालों को वैक्सीन पहले ही क्यों नहीं दी?
असली दिक्कत ये नहीं है। अगर हम मंदिरों की सूची गिनाने लगें जिन्होंने कोरोना काल में गरीबों के भोजन से लेकर आमजनों में जागरूकता फैलाने का काम किया है तो कई पन्ने छोटे पड़ जाएँगे। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि लिबरल गिरोह को ह्यूमन चेन टाइप की कोई स्टोरी आजकल मिल नहीं रही है क्योंकि तबलीगी जमात प्रकरण से लेकर अबकी रमजान में छूट की माँग तक, मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कहानियों का उनके पास भी अभाव है।
आपको याद होगा एक युवती ने लिखा था कि जब राम मंदिर के लिए चंदा माँगने के लिए लोग उसके घर आए तो वो कई मिनटों तक गुस्से में काँपती रही। एक महिला ने तो चंदा माँगने वालों की बेइज्जती करते हुए वीडियो भी पोस्ट कर मजे लिए थे। अब यही लोग मंदिरों से हिसाब माँगते हैं, जबकि इन मंदिरों को बनाने से लेकर इनमें पूजा-पाठ तक, इनका योगदान शून्य ही होता है। अब सोशल मीडिया मंदिर के रुपयों से हिसाब का सवाल लिए भरा पड़ा है।
हाल ही में स्वामीनारायण मंदिर ने अपने परिसर में ही कोविड केयर यूनिट स्थापित किया। वजह ये है कि मोदी काल में पौने 2 लाख किलोमीटर सड़कें, 12 नए AIIMS, 7 नए IIT-IIM-IIIT और 35 एयरपोर्ट्स बने हैं; इन आँकड़ों को छिपाने के लिए ये नैरेटिव तो बनाना पड़ेगा न कि ‘मोदी सरकार मंदिर बनवाती है।’ अभी तो 3 करोड़ परिवारों को उज्ज्वला गैस योजना का लाभ मिलने और 11 करोड़ टॉयलेट्स बनवाने की बात हमने की ही नहीं।
मंदिर का पैसा सरकार रखती है। लेकिन, हज के लिए सब्सिडी सरकार देती है। कई राज्यों में मौलानाओं और मस्जिद के कर्मचारियों को वेतन सरकार देती है। पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में दरगाह के लिए खजाने सरकार खोलती है। राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में CM की तस्वीर के साथ मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए विज्ञापन सरकार देती है। हज हाउस सरकार बनवाती है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग सरकार का मंत्रालय है।
अब जब इस कोरोना काल में ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट ने अयोध्या के राजाश्री दशरथ मेडिकल कॉलेज में 55 लाख रुपए की लागत से ऑक्सीजन प्लांट लगाने का निर्णय लिया है, तो लिबरल गिरोह की जुबान सिल जाएगी। तबलीगी जमात के सुपर स्प्रेडर्स का बचाव करने वाले ये लोग श्रीराम मंदिर ट्रस्ट द्वारा ऑक्सीजन प्लांट लगाने या देश के हजारों मंदिरों द्वारा कोरोना के खिलाफ लड़ाई में योगदान दिए जाने पर चूँ तक न करेंगे।
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