नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अक्षय लाकड़ा ने आरटीआई द्वारा 3 जुलाई 2019 को पूछे गए सवालों के जवाबों की प्रति को शुक्रवार (2 अप्रैल, 2021) को ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा है, ”RTI से खुलासा हुआ कि 1 अप्रैल 2015 से लेकर 31 मार्च 2019 के बीच दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने ना ही किसी हॉस्पिटल को अनुदान दिया और न ही किसी नए फ्लाईओवर का निर्माण करवाया। बस झूठे विज्ञापन दे-दे कर जनता को मूर्ख बना लिया और जनता भी इसकी बातों में आ गई।” दीगर बात है कि अरविंद केजरीवाल का रवैया भाजपा द्वारा संचालित दिल्ली निगम के साथ बेहद पक्षपातपूर्ण रहा है। दिल्ली निगम अरविंद केजरीवाल के पिछले कार्यकाल में भी फंडस की कमी से जूझती रही। यहाँ तक की सफाई कर्मियों की हड़ताल के कारण दिल्ली में जो गंद और बदबू का कीचड़ फैला उसका असली कारण आआपा सरकार के होने के बावजूद सारा ठीकरा भाजपा पर फोड़ा गया। और अब जब केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली निगम उपचुनावों में बम्पर जीत हासिल कर ली है तब भी इनका रवैया निगम के प्रति वही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का पूरा ध्यान विज्ञापन के जरिए अपना चेहरा चमकाने पर है। उधर वेतन के अभाव में दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों और उनके बच्चों का चेहरा मुरझाया हुआ है। एमसीडी कर्मचारियों के वेतन को लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर सुनावाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल सरकार को कड़ी फटकार लगाई।
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
दिल्ली नगर निगम (MCD) के कर्मचारियों को समय से सैलरी और पेंशन नहीं मिलने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को फटकार लगाई है। इससे जुड़ी जनहित याचिका (PIL) पर सोमवार (5 अप्रैल 2021) को सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि एक तरफ विज्ञापनों पर पैसे खर्च किए जा रहे दूसरी ओर इस मुश्किल समय में कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हैं।
एक राष्ट्रिय चैनल के अनुसार हाई कोर्ट ने कहा, हम देख सकते हैं कि किस तरह से सरकार राजनेताओं की तस्वीरों के साथ अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देने पर खर्च कर रही है। लेकिन कर्मचारियों की सैलरी तक नहीं दी जाती है।
केजरीवाल सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने सवाल किया, “क्या ये अपराध नहीं है कि इतने कठिन समय में भी, आप विज्ञापन पर पैसा खर्च कर रहे हैं।” आप सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि नगर निगमों को धन नहीं देना पड़े, इसलिए सरकार वित्तीय संकट का हवाला देती है। लेकिन, अखबारों और अन्य माध्यमों से विज्ञापन पर पैसा खर्च करने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं है।
कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को किसी भी तरह की मोहलत देने से इनकार करते हुए कर्मचारियों का मार्च तक का पूरा बकाया क्लियर करने का आदेश दिया है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमान के अनुसार, दिल्ली सरकार को ईडीएमसी को 864.8 करोड़ रुपए, एसडीएमसी को 405.2 करोड़ रुपए और उत्तरी दिल्ली नगर निगम को 764.8 करोड़ रुपए देने हैं।
आजतक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि एमसीडी को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए 400 करोड़ रुपए का फंड मिलना था, लेकिन उसे दिल्ली सरकार से केवल 109 करोड़ रुपए मिले हैं।
4 साल में कोई अस्पताल या फ्लाईओवर नहीं
हाल ही में तेजपाल सिंह द्वारा दायर एक आरटीआई से पता चला था कि AAP सरकार द्वारा किए गए विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचे के लम्बे-लम्बें दावों के विपरीत, राजधानी में 2015-2019 के बीच यानी 4 सालों में न तो कोई नया अस्पताल बनाया और न ही किसी फ्लाईओवर का निर्माण किया। केजरीवाल सरकार द्वारा पिछले 5 वर्षों में स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में किए गए कार्यों की जानकारी के लिए 2019 में RTI दायर की गई थी।
नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अक्षय लाकड़ा ने आरटीआई द्वारा 3 जुलाई 2019 को पूछे गए सवालों के जवाबों की प्रति को शुक्रवार (2 अप्रैल, 2021) को ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा है, ”RTI से खुलासा हुआ कि 1 अप्रैल 2015 से लेकर 31 मार्च 2019 के बीच दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने ना ही किसी हॉस्पिटल को अनुदान दिया और न ही किसी नए फ्लाईओवर का निर्माण करवाया। बस झूठे विज्ञापन दे-दे कर जनता को मूर्ख बना लिया और जनता भी इसकी बातों में आ गई।”
इस बीच, खान मार्केट इलाके को सँवारने के नाम पर वहाँ एक नया सेल्फी पॉइंट बनाया गया है।
शीला दीक्षित सरकार में परिवहन मंत्री रहे हारून यूसुफ का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में विज्ञापन और प्रचार पर 611 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों की स्थिति और बुनियादी सुविधाओं के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया है।
केजरीवाल सरकार पर पूर्व में जनता के लिए काम करने की जगह झूठे और भ्रामक प्रचारों के जरिए अपना महिमामंडन करने के आरोप भी लग चुके हैं।
आइए देखते हैं केजरीवाल सरकार किस तरह जनता के पैसे को सिर्फ प्रचार-प्रसार के लिए खर्च कर रही है, वो आंकड़ा चौंकाने वाला है।
केजरीवाल के पिछले सात साल के कार्यकाल को देखें तो आपको पता चलेगा कि सरकार का मकसद जनता के हित में काम करने से ज्यादा ढिंढोरा पीटना रहा है। इससे साफ संकेत मिलता है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली सरकार की झूठी तारीफ के लिए दिल खोलकर पैसे लूटा रहे हैं।
साल 2012-13 में आम आदमी पार्टी ने 10.11 करोड़ रुपये सरकार के विज्ञापन पर खर्च किया। यह आंकड़ा 2013-14 में बढ़कर 11.22 करोड़ हो गया। इसके बाद 2014-15 में चुनाव से ठीक पहले तक 7.37 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किए गए। वहीं 2015-16 में सरकार के गठन के साथ ही पार्टी की तरफ से सरकारी कामकाज के प्रचार प्रसार के लिए किए गए विज्ञापन पर 62.03 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2016-17 में अरविंद केजरीवाल की सरकार ने विज्ञापन पर 66.80 करोड़ रुपये खर्च किए तो वहीं 2017-18 में यह आंकड़ा लगभग दोगुना हो चुका था। इस वित्त वर्ष में अरविंद केजरीवाल सरकार ने विज्ञापन पर 120.30 करोड़ रुपये खर्च कर दिए।
2020 के मार्च महीन में कोरोना ने देश में दस्तक दी तब भी अरविंद केजरीवाल की सरकार विज्ञापन पर रोक नहीं लगा पाई। अभी तक 2020-21 के आंकड़े सही तरीके से मौजूद नहीं हैं। लेकिन जिस तरह से कोरोना काल में अरविंद केजरीवाल सरकार ने विज्ञापन के जरिए अपनी उपलब्धियों को जाहिर करने की कोशिश की उससे साफ पता चलता है कि यह आंकड़ा साल 2019-20 के मुकाबले कई गुणा बड़ा होगा। हालांकि 2020-21 के लिए जनवरी तक का अनुमानित आंकड़ा 177.18 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है।
गौरतलब है कि लगभग 2 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश की सरकार ने 500 करोड़ से ज्यादा की रकम केवल अपने काम के विज्ञापन के लिए खर्च कर दिए। इतनी रकम के जरिए दिल्ली की जनता को विकास का एक और मानक तैयार करके दिया जा सकता था। लेकिन अरविंद केजरीवाल सरकार जनता के बीच अपने स्कीमों को लेकर विज्ञापने के जरिए पहुंचने का रास्ता ही सही मानती रही। यही वजह है कि राष्ट्रीय राजधानी की जनता के टैक्स के पैसे को केजरीवाल एंड कंपनी विज्ञापनों पर लूटा रही है।