श्रीमद्भागवद्गीता : जीवन जीने की कला – प्रो. राजकुमार, कुलपति,
- सप्त दिवसीय (आनलाईन) महर्षि विश्वामित्र वेद वेदाङ्ग कार्यशाला तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ विश्वेश्वरानंद विश्वबन्धु संस्कृत एवं भारत भारती अनुशीलन संस्थान, पंजाब विश्वविद्यालय साधु आश्रम में हुआ
- श्रीमद्भागवद्गीता : जीवन जीने की कला – प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्वविद्यालय
दिनांक 25.3.2021:
विश्वेश्वरानंद विश्वबन्धु संस्कृत एवं भारत भारती अनुशीलन संस्थान, साधु आश्रम में सप्त दिवसीय महर्षि विश्वामित्र वेद वेदाङ्ग कार्यशाला तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटनोत्सव के मुख्यातिथि प्रो. श्रेयांश द्विवेदी, कुलपति, महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, कैथल, हरियाणा, विशिष्ट अतिथि प्रो. कृष्णकान्त शर्मा, पूर्व डीन, संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, अध्यक्ष प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ श्री कृष्णकान्त तिवारी, काशी के द्वारा वैदिक मंगलाचरण के द्वारा किया गया। मंच का संचालन डा. ऋतु बाला ने किया। डा.सुधांशु कुमार षडंगी (विभागाध्यक्ष) ने आनलाइन जुडे़ सभी महानुभावों का स्वागत कर अतिथियों का परिचय दिया। प्रो. नरसिंह चरण पण्डा ने वेद वेदाङ्ग कार्यशाला तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटनोत्सव में विषय प्रवर्तन किया। इस अवसर पर अध्यक्ष प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ ने छात्रों को आशीर्वाद हेतु अपने सम्बोधन में कार्यक्रम की प्रंशसा कर संस्कृत की प्रति अपनी अथाह प्रेम भावना को अभिव्यक्त किया तथा विशेष रुप से श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में कहा कि यह एक ऐसा ग्रन्थ है जो सबको जीवन में अवश्य पढना चाहिए क्योंकि यह ग्रन्थ विषाद से प्रसाद की ओर, कायरता से शूरवीरता की ओर, निराशा से आशा की ओर, अस्थिरता से स्थिरता की ओर, सन्देह से विश्वास की ओर, दुर्बलता से दृढता की ओर ले जाना वाला है। मुख्यातिथि प्रो. द्विवेदी जी ने इस अवसर पर कहा कि वेद में गूढ़ ज्ञान निहित है। मानव द्वारा ग्राह्य उच्चतम आध्यात्मिक सत्य, नैतिक सिद्धान्तों के बीज इत्यादि बहुश विषय वेद में प्राप्त होते है। आज प्रत्येक छात्र, अध्यापक का यह दायित्व बनता है कि वे वेद ज्ञान का सर्वत्र प्रचार तथा प्रसार करें। विशिष्ट अतिथि प्रो. शर्मा जी ने इस अवसर पर वेदार्थ ज्ञान हेतु वेदचतुष्टय, वेदाङ्ग को समझना अनिवार्य बताया है। कार्यशाला तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय वेदार्थ निर्णय में ऋषि, छन्द एवं देवताओं का वैशिष्ट्य में वर्णित ऋषि, छन्द, देवता तत्वों का सामान्य परिचय दे विषय को सरल बनाने का प्रयास किया। धन्यवादज्ञापन प्रो. कृष्णा सैनी ने किया। कार्यशाला का प्रथम व्याख्यान दोपहर 3.00 बजे प्रारंभ हुआ। इसके व्याख्याता प्रो. विक्रम कुमार, पंजाब विश्वविद्यालय ने सूक्तों में प्रतिपादित देवताओं का स्वरूप पर विस्तृत विवरण प्रदान किया। देवताओं के उत्पत्ति, उनके स्थानादि का निरूपण तथा स्वरूप का विवेचन किया। पूषन्, सविता, सरस्वती, आदित्य आदि वेदाताओं को लौकिक उदाहरण के द्वारा प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रो. प्रेमलाल शर्मा, प्रो. रघुबीर सिंह, प्रो. प्रवीण सिंह राणा, आचार्य सांख्यायन, डा. सुबोध कुमार, डा. सुनीता जायसवाल, डा. नरेन्द्र दत्त तिवारी, नवनालंदा विश्वविद्यालय, डा. सुषमा अलंकार, चण्डीगढ., डा दीपलता, हिमाचल यूनिवर्सिटी, प्रो. कृष्णमुरारि शर्मा, डा. टीना वैद, प्रो. सुभाष चन्द्र दास, उत्कल यूनिवर्सिटी, प्रो. रणजीत कुमार, दिल्ली यूनिवर्सिटी, डा. सुमन लता, भावना सोनी, राजेन्द्र मलिक इत्यादि 70 से भी अधिक प्रतिभागिओं ने कार्यक्रम में भाग ले कार्यक्रम की गरिमा को बढाया है।
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