जागरूकता के अभाव में आज हर सातवां ग्लोकोमा रोगी आंखों की रोशनी खो जाने के बाद चिकित्सक पास पहुंचता है : स्वामी दिव्यानंद जी
सतीश बंसल, सिरसा 10 मार्च:
खूबसूरत आंखें कुदरत का हर इंसान को एक बेहतरीन तोहफा है, किंतु आंखों के प्रति लापरवाही आज एक समस्या बनती जा रही है। ये खूबसूरत आंखें प्रभु के बनाए इस खूबसूरत संसार के सौंदर्य को नहीं देख पा रही हैं। विश्व की एकमात्र संस्था वल्र्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने इस वर्ष वल्र्ड ग्लोकोमा अवेयरनेस सप्ताह के अंतर्गत इसी थीम को लेकर जागरूकता के लिए सभी स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रेरित किया है कि ‘द वल्र्ड इस ब्राइट सेव योअर साइट’ ग्लोकोमा जिसे आम भाषा में कालामोतिया भी कहा जाता है, इसकी भयंकरता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अशिक्षा और लापरवाही के कारण आज हर सातवां ग्लोकोमा का रोगी आधी से भी अधिक अपनी आंखों की रोशनी को खोकर चिकित्सक के पास पहुंचता है। सफेद मोतिया के आप्रेशन के बाद भी या फिर मल्टीपल सर्जरी अथवा इंजरी के बाद भी आंखों की रोशनी कालामोतिया के कारण छिन सकती है। अच्छी भली आंख वाले भी अचानक अपनी आंखों की रोशनी कम होने या छिन जाने की शिकायत कर सकते हैं। जिसका कारण है कालामोतिया। आंखों का बढ़ता दबाव जो धीरे-धीरे बढ़ता है और हमारी आप्टिक नर्व जैसी अति संवेदनशील नर्व को प्रभावित कर क्षीण कर देता है।
मंथन आई हैल्थ केयर फाऊंडेशन के सौजन्य से पूज्य महाराज श्री स्वामी दिव्यानंद जी महाराज की छत्रछाया में वल्र्ड ग्लोकोमा अवेयरनेस सप्ताह के अंतर्गत सिरसा केक शिव मंदिर में आयोजित ग्लोकोमा अवेयरनेस शिविर में मंथन के चेयरमैन पूज्य गुरूदेव महाराज श्री ने कहा कि हमारी जागरूकता और नेत्र विशेषज्ञ का उचित मार्गदर्शन ही हमें इस नजरों के कातिल रोग ग्लोकोमा से बचा सकता है। इस अवसर पर नगर के प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ डॉ. संदीप गुप्ता (जो सिविल अस्पताल में कार्यरत हैं) ने बताया कि इस रोग में प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ता है। एक प्रकार के ग्लोकोमा में यह अपने लक्षण भी नहीं बताता। न कोई सिरदर्द-उल्टी आदि कुछ भी नहीं। इसमें सेंट्रल विजन ठीक होने से तथा केवल प्रथम साइड विजन क्षीण होने से रोगी को दिखता भी ठीक है, इसीलिए वह चिकित्सक के पास आने की जरूरत भी नहीं समझता तो रोग का निदान और उपचार भी कैसे संभव होगा? यही मुख्य कारण है इस रोग के होने का और इसके कारण दृष्टिहीनों की संख्या बढऩे का। इसके अतिरिक्त आनुवांशिक कारणों का भी एक प्रकार से प्रभाव बन सकता है अथवा अन्य रोगों के कारण भी प्रयोग होने वाली कुछ स्टेराइड या अन्य औषधियों के कारण भी यह रोग हो जाता है। वैसे तो 40 वर्ष के बाद इस रोग की सम्भावना काफी है, इसके अलावा शूगर व ब्लड प्रेशर भी इसमें कारण है। इसलिए 40 वर्ष के बाद तो रूटीन चैकअप करवा ही लेना चाहिए किंतु एक प्रकार का ग्लोकोमा ऐसा भी है जो जन्मजात बच्चों में भी हो सकता है, जिसका कारण उसमें आंखों की रचना का ठीक न होना है किंतु ऐसे नैरो एंगल ग्लोकोमा का इलाज संभव इसीलिए हो जाता है क्योंकि इसमें दर्द आदि लक्षण भी मिल जाते हैं और रोगी चिकित्सक तक पहुंच भी जाता है। कोई भी कारण बने हमारी सजगता ही हमें चिकित्सक तक पहुंचा कर समस्या का समाधान निकाल सकती है। कार्यक्रम के अंत में डॉ. संदीप गुप्ता को प्रसाद स्वरूप सिरोपा भेंट कर समिति की ओर से अभिनंदन और महाराज श्री से आशीर्वाद दिया गया। सचिव धर्मपाल मेहता ने सभी का धन्यवाद किया।
कार्यक्रम में मा. जयदयाल मेहता, चंद्रशेखर मेहता, चरणदास मेहता, विजय मेहता, बंटी डूमड़ा, कृष्ण बंसल, मनोहर फुटेला, कृष्ण मेहता, हरभगवान चांदना, जगदीश मेहता, बीके दिवाकर एडवोकेट, डॉ. विरेंद्र मेहता, प्रो० दयाल मेहता, राजेंद्र मुंजाल, डॉ.आजाद सिंह तथा राहुल ने भी महाराज श्री से आशीर्वाद लिया। एक अन्य कार्यक्रम में गुलाब चंद पैट्रो सिटी पर महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य में लंगर भंडारे का भी आयोजन किया गया, जो अनवरत रूप से प्रात: काल से सायंकाल तक चलता रहा। कार्यक्रम के आयोजक कृष्ण गर्ग ने बताया कि यह भण्डारा प्रतिवर्ष इसी रूप में चलता रहता है।
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