देश के पूर्व गृह मंत्री और वरिष्ठ कॉंग्रेस नेता बूटा सिंह नहीं रहे वह 86 वर्ष के थे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री सरदार बूटा सिंह का आज सुबह निधन हो गया. 86 साल के बूटा सिंह काफी समय से बीमारी चल रहे थे. पंजाब के जालंधर के मुस्तफापुर गांव में जन्मे बूटा सिंह 8 बार लोकसभा के सांसद रहें. उनकी पहचान पंजाब के बड़े दलित नेता के तौर पर रही. उनके परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं.
- देश के पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह का हुआ निधन
- लंबी बीमारी के बाद 87 वर्ष की उम्र में निधन
- नेहरू-गांधी परिवार के विश्वासपात्र रहे सरदार बूटा सिंह कई वरिष्ठ पदों पर रहे आसीन
जयपुर
नए साल में राजस्थान और देश की राजनीति को एक बड़ा दुख झेलना पड़ा है। देश की पूर्व गृह मंत्री 87 वर्षीय और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बूटा सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। उनके जाने के साथ ही देश-प्रदेश के राजनीतिक क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। राजस्थान से भी बूटा सिंह का खास नाता रहा है। आपको बता दें कि सन 1984 से बूटा सिंह राजस्थान की जालोर सीट से चुनाव लड़ते आ रहे थे। 1999 तक उनका यहां बड़ा लंबा राजनैतिक इतिहास रहा है। लेकिन राजस्थान से उनका नाता कैसे जुड़ा , इसके पीछे एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। दरअसल नेहरू-गांधी परिवार के खास और विश्वासपात्र माने जाने वाले सरदार बूटा सिंह का राजस्थान की राजनीति में आना संयोगमात्र ही माना जा सकता है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि जब राजस्थान से उनका नाता जुड़ा, तो राजनैतिक सफऱ के आखिर चुनाव तक उन्होंने राजस्थान को और राजस्थान ने उनका साथ नहीं छोड़ा ।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद राजीव गांधी ने दी सुरक्षित सीट
राजनीति के जानकारों की माने तो ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी चाहते थे कि बूटा सिंह को ऐसी सीट से चुनाव लड़वाया जाए, जहां से उनकी जीत निश्चित हो। लिहाजा बूटा सिंह को कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली जालोर-सिरोही सीट से दी गई। इससे पहले बूटा सिंह 1966 से पंजाब की रोपड की सीट से चुनाव लड़ रहे थे। वहीं पंजाब के दलित कांग्रेसी नेता बूटा सिंह ने हरियाणा की साधना सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा था।
पहली बार में जीते, तो दूसरी बार में हारे
आपको बता दें कि 1984 में हुए चुनाव में बूटा सिंह पहली ही मर्तबा में चुनाव जीत गए। लेकिन 1989 में दोबारा जब उन्होंने चुनाव लड़ा, तो बीजेपी और वरिष्ठ नेता भैरोंसिंह शेखावत को उस दौर के वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल को उनके सामने उतारा गया। लेकिन इस रोमांचक मुकाबले में जीत मेघवाल की हुई। कैलाश मेघवाल चुनाव जीत गए। बूटा सिंह जैसे दिग्गज नेता को हराने के बाद मेघवाल का कद भी बीजेपी में बढ़ गया। लेकिन खास बात यह रही है कि बूटा सिंह ने अपनी सीट नहीं छोड़ी, दोबारा 1991 में जालोर से ही चुनाव जीता। इसी तरह आगे 1999 में सिरोही से सांसद रहे। हालांकि 2004 में जालोर से चुनाव जीतने के बाद उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया।
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