दो मांगों पर झुकी सरकार लेकिन कानून वापस लेने की मांग पर अड़े किसान

सब्सिडियाँ जारी रहेंगी, किसानों पर पराली जलाने पर आपराधी मामले दर्ज़ नहीं होंगे इन दो मांगों के माने जाने के साथ सरकार और आंदोलनकारी किसानों की वार्ता पर पड़ी बर्फ पिघली. वहीं कॉंग्रेस के बड़े नेता ने एक टीवी चैनल पर कहा या यूं कहें की किसानों को समझाया (भड़काया) कि उन्हे सरकार से वार्ता की आवश्यकता नहीं है और सरकार को समझाईश दी कि तीनों कृषि सुधार क़ानूनों को रद्द कर दें. यही बात समाजवादी पार्टी के एक बड़े नेता ने भी प्रधानमंत्री को दिल बड़ा करने की सलाह दी.

नई दिल्‍ली:  

कल आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच अब तक की सबसे सकारात्मक बैठक हुई.  इस बैठक में सरकार ने किसानों की दो बड़ी मांगें मान ली हैं. इसके तहत पराली जलाने पर अब किसानों के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाएंगे और किसानों को बिजली बिल पर मिलने वाली सब्सिडी में कटौती नहीं होगी, यानी ये सब्सिडी जारी रहेगी. 

कानून वापस लेने की मांग पर अड़े किसान 

35 दिनों से आंदोलन (Farmers Protest) कर रहे किसान तीन हफ्ते के ब्रेक बाद सरकार से मिलने आए.  दिल्ली के विज्ञान भवन में कल 30 दिसंबर को दोपहर दो बजे बातचीत शुरू हुई.  इसमें किसानों ने चार मुद्दे रखे.  करीब 5 घंटे बाद सरकार ने किसानों की 50 प्रतिशत बात मान लीं.  बाकी मांगों पर 4 जनवरी को चर्चा होगी.  इस बैठक में नये कृषि कानूनों की वापसी और MSP की कानूनी Guarantee प्रमुख हैं.  सरकार इन मुद्दों के हल के लिए कमेटी बनाने को तैयार है लेकिन किसान कानून वापस लेने की मांग पर अड़े हैं. 

किसान भले ही सरकार का खाना न खा रहे हों पर सरकार ने कल किसानों  का खाना भी खाया और उनकी चाय भी पी. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने लाइन में खड़े होकर किसानों के लिए गुरुद्वारे से लाया गया लंगर खाया.  इन तस्वीरों से संदेश साफ है कि अब किसानों और सरकार के बीच जमी बर्फ पिघलने लगी है. 

रूस के मशहूर लेखक Leo Tolstoy ने कहा था – 

“हर कोई इस दुनिया को बदलने के बारे में सोचता है लेकिन कोई भी खुद को बदलने के बारे में नहीं सोचता. ”

किसानों को बहका रहे वामपंथी और टुकड़े टुकड़े गैंग के लोग

मौजूदा किसान आंदोलन में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. किसान संगठन चाहते हैं कि किसानों की आमदनी बढ़े और उनकी मुश्किलें कम हों.  लेकिन वो खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं.  वामपंथी और टुकड़े टुकड़े गैंग के लोग किसानों को बहका रहे हैं. 

जब नया नागरिकता कानून आया था तो एक विशेष धर्म के लोगों को ये कहकर डराया गया था कि इससे उनकी नागरिकता छीन ली जाएगी.  शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रहे लोगों से कहा गया था कि उन्हें देश से काट दिया जाएगा और इस आंदोलन में भी एक क्षेत्र विशेष के किसानों से कहा जा रहा है कि उनकी ज़मीनें छीन ली जाएगीं, जबकि सच ये है कि न तो किसी की नागरिकता गई और न ही किसी की ज़मीन जाएगी. 

सरकार ने नये कृषि कानून इसलिए बनाए हैं कि किसानों की आमदनी बढ़े. वो अपनी मर्जी से अपनी फसल बेच सकें. 

अधिकतर किसानों ने नये कानूनों को बताया फायदेमंद 

किसी नियम या सुधार के लागू होने में बदलाव का एक दौर होता है.  जिसमें कुछ समय लगता है और तब जाकर सुधार के नतीजे आते हैं.  नये कृषि कानूनों को लागू हुए 6 महीने से अधिक समय बीत चुका है और देश के अधिकतर किसानों ने नये कानूनों को फायदेमंद बताया है. 

बावजूद इसके आंदोलनकारी किसान खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं है. उन्हें लगता है कृषि कानूनों को वापस लेना ही एक मात्र विकल्प है. 

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