किसी से मदद लेने से अच्छा है भूखा सो जाऊंगा, बलदेव राज
शरीर से बूढ़ा हुआ तो क्या हुआ, स्वाभिमान तो जिंदा है, मरते दम तक मेहनत करके अपने परिवार को पालूंगा किसी से मदद लेने से अच्छा है भूखा सो जाऊंगा: बलदेव राज
राहुल भारद्वाज सहारनपुर:
यह शब्द है गोपाल नगर, नुमाइश कैंप निवासी बलदेव राज अहूजा के, जिनकी उम्र है 83 वर्ष, गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद उम्र के इस पड़ाव में किसी से मदद की चाहत नहीं रखते। स्वाभिमान से जीना चाहते हैं। इसलिए वजन तोलने की मशीन को अपना रोजगार का साधन बनाकर बमुश्किल दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाते हैं। कई बार खाली हाथ भी घर जाना पड़ता है। प्रतिदिन गोपाल नगर नुमाइश कैंप से एक हाथ मे लाठी के सहारे दूसरे हाथ में वजन तोलने की मशीन लेकर लगभग 1 किलोमीटर पैदल चलकर माधव नगर स्थित पंजाब नेशनल बैंक की शाखा के बाहर आकर जमीन पर बैठ जाते हैं। वजन तोलने की मशीन सामने रखकर लोगों को वजन तोलने के लिए इशारा करते हैं। बैंक में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में लोग आते जाते हैं। लेकिन बैंक की पार्किंग में खड़े दुपहिया वाहनों के बीच बैठे बलदेव राज पर बहुत कम लोगों की नजर पड़ती है। बुजुर्ग होने के कारण बोलने की क्षमता भी बहुत कम है ऐसे में जमीन पर लाठी की आवाज से आने-जाने लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित करके उन्हें वजन तोलने के लिए इशारा करते हैं। वजन तोलने का कोई मूल्य नहीं रखा हुआ। जिसकी जो इच्छा हो दे जाता है।
बलदेव राज ग्राहक को भगवान का रूप मानकर उसे स्वीकार कर लेते हैं। यह पूछने पर कि दिन में कितना कमा लेते हो बलदेव राज कहते हैं कभी 20 से लेकर 50 रुपये तक,तो कभी खाली हाथ वापस जाना पड़ता है।आज मेरे पास अबतक दो ग्राहक आए जो 10 रुपये दे गए।आज इसी में ही संतोष करना पड़ेगा। बलदेव राज से जब यह पूछा गया कि यदि कोई संस्था या कोई व्यक्ति आपकी मदद करें तो क्या आप उसे स्वीकार करेंगे। तो स्वाभिमानी बुजुर्ग बलदेव राज ने मदद लेने से साफ इंकार करते हुए जो कहा, उसे सुनकर मेरा दिल भर आया।उन्होंने कहा कि किसी की मदद लेने से अच्छा है रात को भूखा सो जाऊंगा। वो कहते हैं कि जो मदद करेगा उसका लौटाना तो पड़ेगा ही। इस जन्म में नहीं,तो पता नहीं किस जन्म में, लौटाना तो पड़ेगा । हिसाब तो देना ही पड़ेगा। इसलिए मैं किसी से मदद नहीं लूंगा। यह मशीन ही मेरे जीने का सहारा है। इससे मैं अपनी रोटी कमा कर दो वक्त गुजारा करने की कोशिश करता हूं। बलदेव राज भावुक होकर बताते हैं। कि कुछ वर्ष पूर्व उनके युवा पुत्र की हृदय गति रुक जाने से मौत हो गई थी।अब बीमार पत्नी व बेटे के दो बच्चों की जिम्मेदारी भी बलदेव राज के कंधों पर है।पुत्र की इच्छा थी कि मरने के बाद उसके नेत्रदान कर दिए जाए। नेत्रदान के बाद संस्था वालों ने उनकी मदद के लिए पैसा देना चाहा लेकिन बलदेव राज पैसा लेने से साफ इनकार कर दिया। एक और जहां इस दुनिया में लाखों-करोड़ों रुपए कमाने के बाद भी लोग अपने जीवन में संतुष्ट नहीं हैं। दान दिए गए पैसों के बदले में लोग अपने नाम का पत्थर लगवाने की इच्छा रखते हैं। समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए लोग लाखों रुपए अपनी शान शौकत के लिए खर्च कर देते हैं।आज समाज मे महंगी कार महंगे ब्रांडेड कपड़े, जूते स्टेटस सिंबल बन गए हैं। पैसों के लिए अपनों का खून बहाने वाले दरिंदों की संख्या भी कम नहीं है। पैसा कमाने के लालच में किसी भी हद तक जाकर रिश्तो को भी तार-तार कर देते हैं।शाम ढलते ही ऐसे के लोग शराब और पार्टियों में पैसा पानी की तरह बहाते हैं। लेकिन समाज का यह वर्ग कभी भी उन स्वाभिमान से जीने वाले गरीबों की तरफ नहीं देखता जो दो वक्त की रोटी कमाने के लिए दिन रात मेहनत करते हैं। ऐसे में बलदेव राज जैसे स्वाभिमानी लोग समाज को आइना दिखाने का काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को मदद की आवश्यकता नहीं है।बल्कि इनके जज्बे को देखकर इनका उत्साहवर्धन करने की जरूरत है। बलदेव राज का जीवन ऐसे लोगों के लिए नसीहत है जो अपार धन संपदा होने के बावजूद भी दुखी रहते है।नसीहत है ऐसे युवकों के लिए जो काम ना करने के बहाने ढूंढते हैं और अपने माता पिता के पैसे को पानी की तरह बहाते है। नसीहत है समाज के उन लोगों के लिए जो दान में पैसा देने के बाद अपने नाम के पत्थर लगवाने की चाहत रखते हैं। नसीहत है उन लोगों के लिए जो गरीबों को दान देने के बाद उनका फोटो खींचकर सोशल
मीडिया पर वायरल करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी संघर्ष करने हिम्मत रखने वाले बलदेव राज से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।
मेरा समाज के लोगों से अनुरोध है। कि ऐसे स्वाभिमानी बुजुर्ग बलदेव राज के पास जाकर उनका हौसला बढ़ाये और उनके छोटे से रोजगार को बढ़ावा दे। उनकी मशीन से अपना वजन तोल कर उसका मूल्य दे।
हमे दुआ मिलेगी और उनके परिवार को दो वक्त की रोटी।
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