नहीं रहे कॉंग्रेस के संकटमोचन अहमद पटेल
अहमद पटेल को लेकर सुबह से हर कॉन्ग्रेसी नेता अपना दुख प्रकट कर रहा है. सोनिया गाँधी खुद उनके निधन को अपने लिए एक बड़ा नुकसान बता रही हैं. उनका कहना है कि उन्होंने एक वफादार सहयोगी और दोस्त खोया है. लेकिन, क्या यह शब्द काफी हैं इस कथन को साबित करने के लिए कि वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की कॉन्ग्रेस में गाँधी परिवार के सदस्यों जितनी पैठ थी?
- अहमद पटेल का 71 साल की उम्र में निधन
- अहमद पटेल 8 बार सांसद रहे, लेकिन मंत्री नहीं बने
- पटेल को कांग्रेस का संकट मोचक माना जाता था
नयी दिल्ली(bयूरो):
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के करीबी रहे अहमद पटेल का निधन हो गया है. कांग्रेस का उन्हें चाणाक्य कहा जाता था. पार्टी के लिए साधन जुटाने का काम हो या किसी संकट से किसी को उबारने का काम हो इसमें अहमद पटेल माहिर थे. इसीलिए अहमद पटेल ने अपने सियासी जीवन में मंत्री बनने के बजाय खुद के कांग्रेस पार्टी के बैकडोर मैनेजर की भूमिका में रखा. उन्होंने दुनिया से ऐसे समय में अलविदा कहा है जब कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार को उनकी खासी जरूरत थी.
सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल कांग्रेस में बेहद ताकतवर असर रखने वाले नेता होने के बावजूद खुद को लो-प्रोफाइल रखते थे. अहमद पटेल अपने युवा अवस्था में क्रिकेट खेलने के दौरान भले ही फ्रंटफुट पर आकर बैटिंग करना पसंद करते थे, लेकिन सियासत में बैकडोर में यानी पर्दे के पीछे रह कर काम करना पसंद करते थे. गांधी परिवार के अलावा किसी को नहीं पता कि उनके दिमाग में क्या रहता था. 2004 से 2014 तक केंद्र की सत्ता में कांग्रेस के रहते हुए अहमद पटेल की राजनीतिक ताकत सभी ने देखी है.
अहमद पटेल तीन बार लोकसभा और पांच बार राज्यसभा सदस्य रहे. इस दौरान इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ काम किया. उनके सियासी सफर में छह बार केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी. इंदिरा और राजीव ने अपनी कैबिनेट में अहमद पटेल को लेना चाहा, लेकिन उन्होंने सरकार के बजाय संगठन में काम करना पंसद किया. इसके बाद सोनिया के राजनीतिक सलाहकार बने तो फिर बैकडोर मैनेजर की अपनी भूमिका तय कर ली. वो खुद भी कहा करते थे, ‘मैं सिर्फ सोनिया गांधी के एजेंडे पर अपनी पूरी ईमानदारी से काम करता हूं.’
कांग्रेस के तालुका पंचायत अध्यक्ष के पद से करियर शुरू करने वाले पटेल की कांग्रेस में तूती बोलती थी. कांग्रेस संगठन ही नहीं बल्कि सूबे से लेकर केंद्र तक में बनने वाली सरकार में कांग्रेस नेताओं का भविष्य भी अहमद पटेल तय करते थे. 2005 में चाहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हरियाणा के सीएम बनाने का फैसला रहा हो या फिर पृथ्वीराज चौव्हाण को महाराष्ट्र की सत्ता सौंपनी हो. ऐसे कई उदाहारण मिल जाएंगे, जहां अहमद पटेल की छाप साफ दिखाई दी. कांग्रेस के सहयोगी दलों से बात करनी हो या फिर वरिष्ठ नेताओं को साधकर रखने का काम हो, यह काम अहमद पटेल बाखूबी तरीके से किया करते थे.
अहमद पटेल हर मिलने वाले को मनोवैज्ञानिक नजर से देखते हैं. उनका यही हुनर उन्हें ‘किंगमेकर’ बना रखा था. केंद्र में यूपीए सरकार में पार्टी की बैठकों में सोनिया जब भी ये कहतीं कि वो सोचकर बताएंगी, तो मान लिया जाता कि वो अहमद पटेल से सलाह लेकर फैसला करेंगी. यहां तक कि यूपीए 1 और 2 के ढेर सारे फैसले पटेल की सहमति के बाद लिए गए. यही नहीं कांग्रेस की कमान भले ही गांधी परिवार के हाथों में रही हो, लेकिन अहमद पटेल के बिना पत्ता भी पार्टी में नहीं हिलता था. यानी रिमोट उन्हीं के पास रहता था. इस तरह से कांग्रेस सरकार हो या फिर पार्टी, दोनों के बीच संतुलन बनाकर रखते थे.
कांग्रेस में कुछ भी बिगड़ने पर भले सबसे पहले अहमद को निशाना बनाया जाता हो, लेकिन सोनिया गांधी का भरोसा उन पर हमेंशा कायम रहा. यही वजह रही कि कांग्रेस के छोटे और बड़े सभी नेताओं के साथ वो मिलते और उनकी बात को सुनते थे. अहमद पटेल को श्रद्धांजलि देते हुए कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया है. दिग्विजय सिंह ने कहा है, ‘अहमद पटेल नहीं रहे. एक अभिन्न मित्र विश्वसनीय साथी चला गया. हम दोनों सन 77 से साथ रहे. वे लोकसभा में पहुंचे, मैं विधानसभा में. हम सभी कांग्रेसियों के लिए वे हर राजनीतिक मर्ज की दवा थे. मृदुभाषी, व्यवहार कुशल और सदैव मुस्कुराते रहना उनकी पहचान थी.’
अहमद पटेल के निधन पर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मैंने एक सहयोगी को खो दिया है, जिसका पूरा जीवन कांग्रेस पार्टी को समर्पित था. उनकी ईमानदारी और समर्पण, कर्तव्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, हमेशा मदद करने की कोशिश, उदारता… उनमें यह सभी दुर्लभ गुण थे, जो उन्हें दूसरों से अलग करते थे. वहीं, प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा, ‘अहमद जी न केवल एक बुद्धिमान और अनुभवी सहकर्मी थे, जिनसे मैं लगातार सलाह और परामर्श के लिए मुखातिब थी बल्कि वे एक ऐसे दोस्त थे जो हम सभी के साथ खड़े रहे. दृढ़, निष्ठावान और अंत तक भरोसेमंद रहे. उनका निधन एक विशाल शून्य छोड़ देता है. उनकी आत्मा को शांति मिले.’
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