पापाकुंशा एकादशी कथा और महत्व

धर्म/संस्कृति, चंडीगढ़:

पापांकुशा एकादशी कल मनाई जाएगी, आश्विन शुक्ल पक्ष की ये एकादशी कल्याण करने वाली है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है. साथ ही मनचाही इच्छाओं की पूर्ति और घर में पैसों की बढ़ोतरी होती है. इस बार एकादशी 26 अक्टूबर को सुबह 9 बजे लग रही है, इसलिए 27 अक्टूबर को ही एकादशी व्रत रखा जाएगा. व्रत का पारण अगले दिन 28 अक्टूबर को होगा, इस एकादशी का व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलती है.

सनातन धर्म में पड़ने वाली कई एकादशी तिथियों में पापांकुशा एकादशी का काफी महत्व माना जाता है. धार्मिक विश्वास के अनुसार, जो भक्त आज सच्चे ह्रदय से भगवान विष्णु की आराधना करेंगे उनके समस्त पापों का नाश होगा. पापांकुशा एकादशी में भक्त भगवान विष्णु के स्वरुप भगवान पद्मनाभ की पूजा अर्चना करेंगे. आइए जानते हैं पापांकुशा एकादशी का शुभ मुहूर्त और महत्व. 

श्री कृष्ण और पांडव

पापांकुशा एकादशी की कथा और महत्व

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? अब आप कृपा करके इसकी विधि तथा फल कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! पापों का नाश करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। हे राजन! इस दिन मनुष्य को विधिपूर्वक भगवान पद्‍मनाभ की पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी मनुष्य को मनवांछित फल देकर स्वर्ग को प्राप्त कराने वाली है।

मनुष्य को बहुत दिनों तक कठोर तपस्या से जो फल मिलता है, वह फल भगवान गरुड़ध्वज को नमस्कार करने से प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य अज्ञानवश अनेक पाप करते हैं परंतु हरि को नमस्कार करते हैं, वे नरक में नहीं जाते। विष्णु के नाम के कीर्तन मात्र से संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है। जो मनुष्य शार्ङ्‍ग धनुषधारी भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं, उन्हें कभी भी यम यातना भोगनी नहीं पड़ती।

जो मनुष्य वैष्णव होकर शिव की और शैव होकर विष्णु की निंदा करते हैं, वे अवश्य नरकवासी होते हैं। सहस्रों वाजपेय और अश्वमेध यज्ञों से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी के व्रत के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं होता है। संसार में एकादशी के बराबर कोई पुण्य नहीं। इसके बराबर पवित्र तीनों लोकों में कुछ भी नहीं। इस एकादशी के बराबर कोई व्रत नहीं। जब तक मनुष्य पद्‍मनाभ की एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, तब तक उनकी देह में पाप वास कर सकते हैं।

हे राजेन्द्र! यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर स्त्री तथा अन्न और धन की देने वाली है। एकादशी के व्रत के बराबर गंगा, गया, काशी, कुरुक्षेत्र और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं। हरिवासर तथा एकादशी का व्रत करने और जागरण करने से सहज ही में मनुष्य विष्णु पद को प्राप्त होता है। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के करने वाले दस पीढ़ी मातृ पक्ष, दस पीढ़ी पितृ पक्ष, दस पीढ़ी स्त्री पक्ष तथा दस पीढ़ी मित्र पक्ष का उद्धार कर देते हैं। वे दिव्य देह धारण कर चतुर्भुज रूप हो, पीतांबर पहने और हाथ में माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को जाते हैं।

हे नृपोत्तम! बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में इस व्रत को करने से पापी मनुष्य भी दुर्गति को प्राप्त न होकर सद्‍गति को प्राप्त होता है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की इस पापांकुशा एकादशी का व्रत जो मनुष्य करते हैं, वे अंत समय में हरिलोक को प्राप्त होते हैं तथा समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी तथा जूती दान करने से मनुष्य यमराज को नहीं देखता।

जो मनुष्य किसी प्रकार के पुण्य कर्म किए बिना जीवन के दिन व्यतीत करता है, वह लोहार की भट्टी की तरह साँस लेता हुआ निर्जीव के समान ही है। निर्धन मनुष्यों को भी अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए तथा धनवालों को सरोवर, बाग, मकान आदि बनवाकर दान करना चाहिए। ऐसे मनुष्यों को यम का द्वार नहीं देखना पड़ता तथा संसार में दीर्घायु होकर धनाढ्‍य, कुलीन और रोगरहित रहते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- हे राजन! जो आपने मुझसे मुझसे पूछा वह सब मैंने आपको बतलाया। अब आपकी और क्या सुनने की इच्छा है?

इति शुभम्।

शास्त्रों में माना जाता है की पाप रुपी हाथी को पुण्य रुपी अंकुश से भेटने के कारण ही इसे पापांकुशा एकागशी के नाम से जाना जाता है. श्रीकृष्ण के अनुसार जो व्यक्ति पाप करता है, ये व्रत करने से उसे पापों से मुक्ति मिल जाती है.

पापांकुशा पूजन विधि सबसे पहले सुबह उठकर नहां ले और इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए विधि-विधान से पूजा करें. सबसे पहले घर में या मंदिर में भगवान विष्णु से विधि- विधान से पूजा करें. सबसे पहले घर में या मंदिर में भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें. इसके बाद गंगाजल पीकर शुद्ध करें और फिर रक्षासूत्र बांधे. इसके बाद शुद्ध घी से दीपक जलाकर शंख और घंटी बजाकर पूजन करें और संकल्प करें, इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें औऱ दिन भर उपवास करें.

एकादशी तिथि कब से कब तक

एकादशी तिथि प्रारंभ: 26 अक्तूबर 2020 सुबह 09:00 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 27 अक्तूबर 2020 सुबह 10:46 बजे
व्रत पारण 28 अक्तूबर 2020 : सुबह 08:44 बजे तक

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