”द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991” समाप्त करें जिससे देश में मन्दिर-मस्जिद विवाद सदैव के लिए समाप्त हो जाए: वसीम रिजवी
पीएम को लिखे पत्र में वसीम रिजवी ने कहा कि ”द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991” को कांग्रेस के शासन काल मे जानबूझकर बनाया गया था, ताकि हिंदुस्तान में मन्दिर-मस्जिद का विवाद हमेशा चलता रहे. रिजवी के मुताबिक इस एक्ट को तत्काल खत्म किए जाने की जरूरत है, जिससे देश में मन्दिर-मस्जिद विवाद सदैव के लिए समाप्त हो जाए. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन के मुताबिक कांग्रेस ने धार्मिक आंकड़ों के आधार पर इस देश मे लंबे समय तक हुकूमत किया.
कोरल ‘पुरनूर’ चंडीगढ़ – 30 सितंबर
उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (पूजा स्थल अधिनियम 1991) को खत्म करने की माँग की है। उन्होंने पुराने तमाम तोड़े गए मंदिरों को हिंदुओं को वापस देने और मुगल काल के पहले की स्थिति बहाल करने की माँग की है।
पीएम को लिखे पत्र में वसीम रिजवी ने कहा कि द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को कॉन्ग्रेस के शासन काल मे जानबूझकर बनाया गया था, ताकि हिंदुस्तान में मन्दिर-मस्जिद का विवाद हमेशा चलता रहे। रिजवी के मुताबिक इस एक्ट को तत्काल खत्म किए जाने की जरूरत है, जिससे देश में मन्दिर-मस्जिद विवाद सदैव के लिए समाप्त हो जाए। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन के मुताबिक कॉन्ग्रेस ने धार्मिक आँकड़ों के आधार पर इस देश मे लंबे समय तक हुकूमत किया।
क्या है प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट:
प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 या उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत की संसद का एक अधिनियम है। … इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से अयोध्या विवाद से संबंधित घटनाओं को वापस करने की अक्षमता को स्वीकार किया। बाबरी संरचना को ध्वस्त करने से पहले 1991 में पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव द्वारा एक कानून लाया गया था। यह अधिनियम बाबरी मस्ज़िद (वर्ष 1992) के विध्वंस से एक वर्ष पहले सितंबर 1991 में पारित किया गया था। यह अधिनियम राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व (Positive Obligation) भी प्रदान करता है कि वह स्वतंत्रता के समय मौजूद प्रत्येक पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखे। इस अधिनियम की धारा 3 (Section 3) के तहत किसी पूजा के स्थान या उसके एक खंड को अलग धार्मिक संप्रदाय की पूजा के स्थल में बदलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह अधिनियम सभी धर्मों में समानता बनाए रखने और संरक्षित करने के लिये विधायी दायित्व राज्य की एक आवश्यक धर्मनिरपेक्ष विशेषता (Secular Feature) है, यह भारतीय संविधान की मूल विशेषताओं में से एक है। अयोध्या में विवादित स्थल को अधिनियम से छूट दी गई थी इसलिये इस कानून के लागू होने के बाद भी अयोध्या मामले पर मुकदमा लड़ा जा सका।
यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल पर लागू नहीं होता है जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या प्राचीन स्मारक हो अथवा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (Archaeological Sites and Remains Act, 1958) द्वारा कवर एक पुरातात्विक स्थल है।अधिनियम की धारा 6 में अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष की कैद का प्रावधान है।
वसीम रिजवी ने पत्र में लिखा है, “द प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 कॉन्ग्रेस की हुकूमत में इसलिए बनाया गया, ताकि मुगलों द्वारा भारत के प्राचीन पवित्र मंदिरों को तोड़ कर बनाई गई अवैध मस्जिदों को हिंदुस्तान की जमीन पर एक विवाद के रूप में जिंदा रखा जाए और यह अधिनियम बनाए जाने के लिए कॉन्ग्रेस की सरकार पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और हिन्दुस्तान के कट्टरपंथी मुल्लाओं का दबाव था, क्योंकि कॉन्ग्रेस पार्टी हिन्दुस्तान की आजादी के बाद से धार्मिक आँकड़ों के आधार पर भारत में हुकूमत करती रही है और हिन्दुस्तान का कट्टरपंथी मुसलमान जो कि मुगलों के कुकर्मों, जुल्म और ज्यादतियों का पक्षकार है, वह वोट के रूप में कॉन्ग्रेस को भारत में हुकूमत बनाए रखने में मदद कर रहा है।”
उन्होंने पत्र में आगे लिखा, “प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 एक विवादित अधिनियम है, जो किसी एक धर्म के अधिकार व धार्मिक सम्पत्ति जो उनसे मुस्लिम कट्टरपंथी मुगल शासकों ने ताकत के बल पर छीन कर उस पर अपना धार्मिक स्थल (मस्जिदें) बना दिए थे, वह सभी प्राचीन धार्मिक स्थल (मंदिर) जिस भारती हिन्दू धर्म के मानने वालों के थे, उन्हें वापस न मिलने पाए, इस अन्याय को सुरक्षा प्रदान करता है, जो कि एक धर्म विशेष के धार्मिक अधिकारों व धार्मिक संपत्तियों का हनन है।”
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