6 साल से संगठन का पुनर्गठन नहीं होना कांग्रेस की कमजोरी साबित हो सकती है उपचुनाव में
धर्मपाल वर्मा, चंडीगढ़:
सोनीपत जिले में बरोदा में होने जा रहे उपचुनाव को लेकर जितने चाक-चौबंद भारतीय जनता पार्टी के लोग हैं उतने कांग्रेसी नजर नहीं आ रहेl हाल में भाजपा ने ओमप्रकाश धनखड़ के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। जाट यहां तक कि दूसरे दलों के भी उनके इर्द-गिर्द नजर आने लगे हैं और भाजपा का प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किसी भी समय सार्वजनिक किया जा सकता है।
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के लोग काफी कैलकुलेटिव है। हर चीज सोच समझकर तय करते हैं परंतु मुकाबले में खड़ी कांग्रेस पार्टी की कमजोरी पिछले 6 साल से संगठन के चुनाव न होना भी नजर आ रही है। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर अशोक तंवर 6 साल से भी अधिक समय तक अध्यक्ष रहे परंतु वे बिना फौज के कमांडर साबित हुए और इतने बड़े कार्यकाल में भी कार्यकारिणी का गठन नहीं कर पाएl अब कुमारी सेलजा की हालत भी कुछ ऐसी ही लग रही है। उन्होंने अब तक जो नियुक्तियां की है उसे देखकर ऐसा लगता है कि वह इस मामले में बहुत अधिक संजीदा नहीं है। उनका नया अमला प्रभावी नजर नहीं आ रहा हैl उप चुनाव से पहले प्रदेश कार्यकारिणी का गठन करना कांग्रेस और कुमारी शैलजा के लिए एक चुनौती से कम नहीं है।
जिस तरह से कॉन्ग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर कार्यकारी अध्यक्ष से काम चला रही है उसी तरह हरियाणा में भी प्रदेश की पूर्व महिला कांग्रेस अध्यक्ष के पार्टी छोड़ जाने के बाद कार्यकारी अध्यक्ष से काम चलाना पड़ रहा है। चुनाव आयोग ने जिस तरह से कांग्रेस को नोटिस देकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के संदर्भ में कह दिया है उसी तरह हरियाणा में महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की जरूरत भी आन पड़ी है। यहां यह पद पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कहने पर उसी तरह भरा जा सकता है जैसा 2013 में डॉ अशोक पवार के अध्यक्ष बनने के बाद एक बैलेंस बनाने के लिए भरा गया था और अब तो बैलेंस क्या जरूरत बन गई है।
पार्टी ने उस समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा को महिला की अध्यक्ष बनाने की छूट दी थी और उन्होंने दलित प्रदेश अध्यक्ष के होते जाटों को प्रतिनिधित्व देते हुए सुमित्रा चौहान को प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनवाया था। यह सर्व विदित है कि सुमित्रा चौहान हरियाणा महिला कांग्रेस की सबसे सफल अध्यक्ष कहीं जाती हैं। सुमित्रा अब कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में जा चुकी हैंl
सुमित्रा चौहान के समय में महिला कांग्रेस हरियाणा में बुलंदियों पर नजर आती थीl इसीलिए कांग्रेस को उनकी कमी निश्चित तौर पर खल रही हैl
सुमित्रा चौहान के चले जाने के बाद ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व देते हुए और समय अनुकूल व्यवस्था करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने श्रीमती सुधा भारद्वाज को कार्यकारी अध्यक्ष बनवाया था। विधानसभा के चुनाव में सक्षम सक्रिय और जातीय समीकरणों को साधने के लिए कांग्रेस को जल्दी ही रेगुलर महिला कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी होगी। यदि ऐसा नहीं किया गया तो बरोदा में होने जा रहे कांटे के उपचुनाव में कांग्रेस को इसकी कमी बार-बार खलेगी। यह वह क्षेत्र है जहां ग्रामीण महिलाएं भी किसी दल विशेष के प्रति जनमत बनाने का काम करती हैं। आधी आबादी पूरा हक वाली मान्यता को परिलक्षित करती हैंl पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हैl खेत में भी घर में भी।
हरियाणा महिला कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुधा भारद्वाज ब्राह्मण समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं। ब्राह्मण समुदाय के मतदाता भी आने वाले उपचुनाव में निर्णायक साबित हो सकते है। ऐसे में उनकी सेवाएं जारी रखते हुए नए अध्यक्ष की नियुक्ति की जा सकती हैं।
हरियाणा में कांग्रेस ने रेगुलर प्रदेश अध्यक्ष के साथ दो दो कार्यकारी अध्यक्ष बना कर भी काम चलाया है।
ऐसे में यही फार्मूला महिला कांग्रेस के पुनर्गठन को लेकर भी अप्लाई किया जा सकता है। उप चुनाव को देखते हुए जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने जाटों को प्रतिनिधित्व दिया है ऐसा ही कांग्रेस को भी करना पड़ेगा। व्यवहार में देखा जाए तो जिस क्षेत्र में जिस समुदाय का हस्तक्षेप और संख्या ज्यादा होती है वहां उस समुदाय को प्रतिनिधित्व दिए बिना उचित परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सकता।
सुधा भारद्वाज के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश अध्यक्ष की एक और प्रबल उम्मीदवार श्रीमती नीना राठी भी कांग्रेस छोड़ गई। वह भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई। अब यह दोनों मतलब सुमित्रा चौहान और नीना राठी बरोदा विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट मांगते नजर आएंगे और जाट मतदाताओं को प्रभावित करेंगे। इसके मुकाबले भारतीय जनता पार्टी को काउंटर करने के लिए कांग्रेस के पास जाट अध्यक्ष * होना लाजमी है और कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया तो यह कमी प्रत्येक गांव में महसूस की जाएगी। चुनाव तैयारियों से लड़ा जाता है, प्रबंध से लड़ा जाता है, योजना से लड़ा जाता है lइस मामले में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस से कहीं आगे नजर आ रही है।
कांग्रेस के लिए एक दिक्कत यह भी है की सुमित्रा चौहान नीना राठी ही नहीं जाटों की बात करें तो अध्यक्ष पद की एक और प्रबल उम्मीदवार चित्रा सरवारा भी अब कांग्रेस में नहीं है उन्होंने हरियाणा डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम का एक नया राजनीतिक दल गठित कर लिया। अब कांग्रेस के ही लोग कहने लगे हैं कि नई राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस की आशा की किरण किरण मलिक (हांसी) हो सकती है।
श्रीमती मलिक महिलाओं के अलावा जाटों, जिला हिसार और युवाओं का तो प्रतिनिधित्व करेंगी ही, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सांसद दीपेंद्र हुड्डा के खेमे का भी प्रतिनिधित्व करेंगी। उनका जाटों की बड़ी ख्वाब मलिक (गठवाला) से संबद्ध होना एक खास बात है।
बरोदा विधानसभा क्षेत्र में मलिक गोत्र के 16 गांव हैं। चुनाव और राजनीति की हाल की परिस्थितियों को इस तरह से भी कैश किया जा सकता है कि किरण एक छात्र नेत्री रही हैं और पार्टी में आईटी सेल की अग्रणी और तार्किक प्रगतिशील महिला है। उनका ताल्लुक हिसार जिले के हांसी विधानसभा क्षेत्र से है और पारिवारिक पृष्ठभूमि भी राजनीतिक हैl बता दें कि वह पंचकूला गवर्नमेंट पीजी कॉलेज छात्र संगठन की अध्यक्ष रही हैl प्रभावशाली व्यक्तित्व और मौजूदा प्रदेश महिला संगठन का स्टफ् उनका पक्षधर है। यह खास बात है।
कहते हैं कि युद्ध के समय घोड़े नहीं बदले जाते। संभव है कॉन्ग्रेस चुनाव के समय प्रदेश संगठन में पुनर्गठन न कर पाए परंतु जो रिक्त पद हैं वहां उपयुक्त व्यक्ति का समायोजन भी समय की जरूरत हो जाता है। इसलिए यह माना जा रहा है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक प्रदेशभर के इस बात के लिए लॉबिंग कर रहे हैं कि कम से कम महिला प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे से बनाई जानी चाहिए। हरियाणा महिला कांग्रेस की आज की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुधा भारद्वाज का ताल्लुक भी सोनीपत जिले से है। ऐसे में यदि किरण मलिक का नाम आगे किया जाता है तो बरोदा विधानसभा क्षेत्र के मलिक मतदाताओं में इस बात का बड़ा फर्क पड़ सकता है।
हरियाणा में एक कहावत है की ‘दहिया अशनाई’ मतलब रिश्तेदारी का और गठवाला यानि मलिक भाई का… (पक्षधर) धर्म माना जाता है।मतलब मलिकों में भाईचारा अपेक्षाकृत ज्यादा होता है और किरण मलिक तो मलिकों की बहू है, वह उपचुनाव में बरोदा में पासा पलटने में सक्षम साबित हो सकती हैं।
संभव है कांग्रेसी इस मामले में जल्दी ही कोई कदम उठा ले। देखते हैं आगे आगे होता है क्या ?
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