व्यक्तित्व- एक परिचय : धर्म और समाज को समर्पित सरला गुप्ता
एडवोकेट भूमिका चौबीसा:
- नाम – सरला गुप्ता पत्नी श्री राजकुमार गुप्ता।
- जन्म – 23 मार्च 1961 को ब्यावर निवासी स्वर्गीय श्री जमनालाल जी व माता स्वर्गीय श्रीमती दुर्गादेवी आर्य के घर 10 वीं संतान के रूप में हुआ।
- शिक्षा – गोदावरी आर्य कन्या विद्यालय ब्यावर व राणावास जैन छात्रावास में हायर सेकेंडरी तक।
किसी भी व्यक्ति के निर्माण में संपूर्ण समाज का योगदान होता है और संस्कारों से ही व्यक्ति का निर्माण होता है जो माता-पिता व गुरुजनों से प्राप्त होते हैं इसीलिए मैं अपने परिचय से पुर्व मेरे माता-पिता का परिचय देना आवश्यक समझती हूं। मेरे माता-पिता कट्टर आर्य समाजी थे इसलिए महर्षि दयानंद द्वारा बताएं सिद्धांतों का मन, वचन और कर्म से पालन करते थे। नित्य घर में दोनों समय संध्या व प्रातः यज्ञ होता था। वह सेवा कार्यों में सदैव तत्पर रहते थे। आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर भी सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते थे। अनेकों विधवा व गरीब अपनी अमानत बिना किसी लिखा पढ़ी या गवा कर उनके पास रखते थे। उन्होंने अनेकों हिंदू बच्चियों को विधर्मीयों के चंगुल से निकाल कर पुनः सम्मानजनक जीवन दिलवाया और यह कार्य आज भी भाई बड़ी तत्परता से कर रहे हैं। यहां मैं कुछ प्रेरणादायक वृतांत बताना चाहूंगी जो मेरे लिए भी प्रेरणा स्त्रोत है।
मेरी माँ यथा नाम तथा गुण वाली सुग्रहणी थी। वह निडर, निर्भीक, सत्यवती व कुशल नेतृत्व क्षमता की धनी थी। ब्यावर में कोई भी आंदोलन सत्याग्रह या धरने होते तो उनके ही नेतृत्व में होते थे। क्योंकि उस समय ब्यावर में महिला पुलिस की नियुक्ति नहीं थी, अजमेर से बुलाना होता था जिसमें एक से डेढ़ घंटे का समय लग जाता था। उस समय कांग्रेस का शासन था और ब्यावर में उनके अवैध शराब के ठेके थे। आए दिन उन पर लड़ाई झगड़े वह गाली गलौच होते रहते थे। 15 अगस्त का दिन था मां हम बहनों व मोहल्ले की कुछ महिलाओं के साथ ठेकों पर गई व शराबियों को पकड़कर बाहर निकालकर ठेके पर ताला लगा दिया। अगले दिन रक्षाबंधन पर्व था। कलेक्टर थे फिरोज खान, हम लोग उनके पास गए व राखी बांध कर उन ठेकों को बंद करवाने का नेग मांगा। 3 दिनों के अंदर उन ठेकों को अवैध मानकर बंद करा दिया गया।
कंपनी बाग (सुभाष बाग)के नाम से सरकारी पार्क है जिसमें बालाजी का मंदिर था। मुसलमानों ने उस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाना चाहा सभी पुजारी अपने घरों में छिप गए।इसी तरह मुख्य बाजार में होलिका दहन हो रहा था मुसलमानों का जुलूस निकलने वाला था वह लोग अड़ गए कि इस होली को ठंडी करके इस पर से हमारा जुलूस जाएगा।लोग डर के मारे घरों में घुस गए फोन की सुविधा थी नहीं किसी ने पिताजी को आकर बताया तो उन्होंने ब्यावर आया व्यायामशाला के लोगों को बुलाया व हथियार तथा गेवी-फावड़े लेकर पहुंच गए। मुसलमानों को साइड से जुलूस निकालना पड़ा व उस मस्जिद को तोड़ कर पुनः मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित की तथा ललकारा। आज भी वह मंदिर पीर पछाड़ बालाजी के नाम से व्याख्यात हैं।
मेरे सबसे बड़े भाई वायु सेना में थे। चीन व पाकिस्तान के विरुद्ध दोनों युद्ध वे लड़े। मां ने उन्हें पत्र लिखा कि “जिस दिन के लिए माता अपने पुत्रों को जन्म देती है वह समय आ गया है। सौ को मार कर मरना और अपना अंगूठा काट कर उन्होंने उस पत्र पर अपने खून से तिलक किया।
पिताजी पीली टोपी धारण करते थे जो जनसंघ की निशानी थी। इमरजेंसी में भी उन्होंने वो टोपी नहीं हटाई। हिंदी सत्याग्रह में 11 दिन अजमेर जेल में रहे,वे स्वतंत्रता सेनानी थे। विभाजन के समय पाकिस्तान से हिंदुओं की लाशों से भरी ट्रेन को ब्यावर के पास खरवा कर के स्थान है वहां रोक कर मुसलमानों की लाशों से भरकर पुन: ट्रेन रवाना की।
लगभग 55 वर्ष पूर्व परिस्थितियां बहुत विपरीत थी उस समय ईसाई लड़की जो नर्स थी। हिंदू बना कर मेरे भाई का विवाह उससे करवाया जिसका परिणाम यह हुआ कि हमें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। हम पांच बहनों का विवाह होना शेष था दो बहनों की सगाई हो रखी थी वह भी टूट गई। वो भाभी मात्र चार माह ही जीवित रह पाई। उन्हें टाइफाइड व पीलिया हो गया था। उनके हिंदू बनने से नाराज उनके स्टाफ ने उन्हें गलत इलाज दिया, उनकी देह को दफनाने के लिए ब्यावर का पूरा इसाई समुदाय अमृत कौर अस्पताल में इकट्ठा हो गया। पिताजी व भाई कुछ आर्य समाज के सदस्यों के साथ हथियार लेकर पहुंचे व पिताजी ने गरज कर प्रशासन को कहा कि अगर यहां से ताबूत गया तो इतने ताबूत जाएंगे कि आपको गिनती करना मुश्किल हो जाएगा। तब कलेक्टर ने उन लोगों को फटकारा ,पूरी वैदिक पद्धति से भाभी का अंतिम संस्कार प्रशासन की निगरानी में संपन्न हुआ।
सन 1966-1967 में गौ रक्षा आंदोलन का पहला जत्था(पूरे देश से) मेरी मां के नेतृत्व में ब्यावर से रवाना हुआ। मेरा सबसे छोटा भाई मात्र 9 माह का था। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार अपराधियों का सा व्यवहार करती थी, भोजन में कंकड़, बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था नहीं थी।
मुझे आज भी वह दृश्य याद है हमारी बैरक में हमारे साथ दो डाकू लड़कियों को भी रखा गया था, जो पेड़ पर चढ़कर बैठ जाती थी। वहां उनके लिए सिगरेट व शराब की व्यवस्था थी। एक का नाम मंजीत कौर था दूसरी का नाम याद नहीं आ रहा। 7 नवंबर 1966 को 144 धारा तोड़कर सत्याग्रह किया जिसमें लगभग 125 गौ रक्षक, साधु संत शहीद हुए। दीपावली भी जेल में मनाई किंतु दीपावली के दिन कुछ भी भोजन सामग्री प्रशासन की तरफ से नहीं आई, इससे गौ रक्षक हताश निराश हो गए और आंदोलन को बीच में ही बंद करने पर अड़ गए और वह देश व्यापी आंदोलन बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हो गया। उसमें तीन माह हम सात भाई बहन मां के साथ तिहाड़ जेल में रहे। अगर वह आंदोलन एक माह और चलता तो आज गौ हत्या पूरी तरह से बंद होती इस आंदोलन के लिए मेरे पिताजी ने अपना 3 मंजिला मकान बेच दिया था। स्वर्गीय शास्त्री जी के कार्यकाल में अकाल पीड़ितों की सहायतार्थ आवाहन पर मेरी मां ने अपने शरीर से जेवर उतार कर दे दिए।
राष्ट्र सेविका समिति का अजमेर जिले का प्रथम अभ्यास वर्ग अजमेर में लगा। इसमें मेरी दो बड़ी बहनों ने भाग लिया और ब्यावर में नित्य प्रातः शाखा शुरू की जिसमें 60-65 संख्या नित्य रहती थी व योग चाप, दंड व छुरीका का नित्य अभ्यास होता था। राणावास जैन छात्रावास में भी आत्म सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दंड व छुरीका चलाने सिखाने की अनुमति ली। कभी भी लावारिस व भिखारियों की लाश का पता लगने पर ठेले में ले जाकर वैदिक पद्धति से अंतिम संस्कार करते। एक भिखारी के तकिए से उस समय 7000 रुपए की राशि मिली उस राशि से अनेक भिखारियों को आजीविका के साधन उपलब्ध कराकर सम्मानजनक जीवन जीना सिखाया। आर्थिक तंगी के कारण हमें रोटी बिना घी की मिलती किंतु घर में यज्ञ दैनिक होता, वैदिक विद्वान सन्यासी जन व अतिथियों का पूरा सत्कार वह मान सम्मान किया जाता। अनेक विधवा व समाज से बहिष्कृत महिलाओं को घर पर रखते व उनके पुनर्विवाह कराएं। उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष में रहा किंतु उनके अंतिम समय में उनके शुभ कर्मों का फल स्पष्ट दिखा। उनकी सभी 12 संतान उस समय पूर्णरूपेण स्वस्थ धन-धान्य, पुत्र पौत्र आदि से संपन्न व सुखी थी। भारतीय जनता पार्टी के सभी पदाधिकारियों का हमारे घर पर आना होता रहता था, पिताजी के स्वर्गवास पर माननीय गुलाब चंद जी कटारिया ने पार्टी का झंडा पिताजी की पार्थिव देह को उड़ा कर सम्मानित किया।
मेरे बाल्यकाल के संस्कार से 16 वर्ष की आयु में विवाह संपन्न हुआ।ससुराल व पीहर दोनों तरफ आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। अतः हम दो बहनों का विवाह एक साथ आर्य समाज में संपन्न हुआ। विवाह के समय मेरे पति अशोका टॉकीज के सामने चाट का ठेला लगाते थे। विवाह के 8 वर्ष पश्चात पति की नौकरी हिंदुस्तान जिंक में लगी, तब तक मैं तीन पुत्रों की मां बन चुकी थी। विवाह के पश्चात पता लगा कि पति देव बुरी संगत में है। लगभग 15 वर्ष उनके सभी दुर्गुण दूर करने में लगे अब वह पूरी तरह बदल चुके थे। बुजुर्गों ने सही कहा है कि लड़का तो एक ही कुल को तारता है किंतु लड़की दो कुलों को तारती है। मेरे पति हिंदुस्तान जिंक देबारी में कार्यरत रहे यहां इंटक यूनियन को मान्यता है उसके सदस्य होते हुए भी वह बजरंग दल के गिरवा संयोजक व मैं दुर्गा वाहिनी के जिला संयोजिका रही लगभग 7 वर्ष के दौरान संगठन द्वारा जो भी कार्यक्रम लिए जाते कॉलोनी वासियों की पूरी टीम बनाकर गांव-गांव जाकर लगभग 150 गांव संपन्न करते। उसी दौरान मैंने राष्ट्र सेविका समिति का प्रारंभिक अभ्यास वर्ग 15 दिन का किया जिसमें हिंदुस्तान जिंक कॉलोनी से 5 बच्चियां भी साथ थी। हम लोगों ने कॉलोनी में राष्ट्रीय सेविका समिति की शाखा शुरू की लगभग 6 माह निर्विघ्नं नित्य शाखा चली जिसमें 35 से 40 संख्या रहती थी 6 दिसंबर को अयोध्या कार सेवा में मेरे परिवार से 13 सदस्यों ने भाग लिया जिसमें मेरे तीनों पुत्रवती सभी सम्मिलित थे उसके पश्चात शाखा बंद करनी पड़ी लगभग 30 वर्ष पूर्व कॉलोनी में 50 घरों से 10-10 रुपए एकत्रित कर प्रति माह ₹500 वनवासी कल्याण परिषद में आदरणीय श्री रामस्वरूप जी को बांसवाड़ा के लिए भिजवाते थे। बजरंग दल के नेतृत्व में सभी त्यौहार व अन्य कार्यक्रम समय-समय पर संपन्न करते 22-23 वर्ष पूर्व देबारी में इंटक का अखिल भारतीय अधिवेशन था जिसमें दर्शना शर्मा ने वंदे मातरम गाकर शुभारंभ किया।
वर्तमान में आर्य समाज हिरण मगरी सेक्टर 4 की सह मंत्री के रूप में सेवा कर रही हूं व राष्ट्रीय सेविका समिति की जिला कार्यवाही के दायित्व का निर्वहन कर रही हूं। इसी के साथ पतंजलि हरिद्वार से योग शिविर व रोजड़ से क्रियात्मक योग शिविर किए हैं। आर्य समाज से पुरोहित भी नियुक्त हो, हिंदुओं के सोलह संस्कार, शुभ-अशुभ कार्य व जन्मदिवस, वर्षगांठ तथा ग्रह प्रवेश आदि पर सेवा भाव से यज्ञ संपन्न करा रही हूं।जो दक्षिणा मिलती है वह आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े बच्चों का विद्यालय (दयानंद कन्या विद्यालय) में दान देती हूं व वैदिक गुरुकुलो की सहायतार्थ भेजती हूं।
वैश्विक महामारी के समय नित्य काढा व नीम गिलोय तैयार करके घर के बाहर रख रही हूं जिसका सभी नि:शुल्क लाभ ले सकते हैं और ले रहे हैं। गत वर्ष 7 मुसलमान और ईसाई लड़कियों को वैदिक धर्म में प्रतिष्ठित किया, अन्य समय में घर-घर से कपड़े अन्य वस्तुएं जैसे पेन, पेंसिल, बैग आदि भोजन सामग्री एकत्रित कर गांव-गांव में जरूरतमंदों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
स्थान स्थान पर गिलोय आदि पेड़ों का वृक्षारोपण करते हैं। आसपास में योग व यज्ञ प्रशिक्षण देने का कार्य कर रही हूं। अंत में परमपिता परमेश्वर का धन्यवाद करती हूं कि उसने यह सुंदर जीवन प्रदान किया है और पारिवारिक दायित्वों से मुक्त कर सामाजिक कार्यों के लिए अवसर दिया है। तीनों बेटे अपने गृहस्ती में व्यवस्थित हैं वे भी पूरी ईमानदारी वह कर्तव्य निष्ठा से अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं मानव जीवन दुर्लभ है उतार चढ़ाव आते रहते हैं किंतु हमें ईश्वर पर अटूट विश्वास रखते हुए सदैव सत्य मार्ग पर चलते हुए पुरुषार्थ करते रहना है। यही इस जीवन का उद्देश्य व ध्येय है ऐसा मेरा मानना है।
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