कहीं सिंधिया पायलट की राह न हों लें छत्तीसगढ़ के सिंहदेव

रविरेन्द्र वशिष्ठ, चंडीगढ़:

राजस्‍थान के डिप्‍टी सीएम सचिन पायलट की नाराजगी बरकरार है. इसी वजह से वह सोमवार सुबह 10.30 बजे होने वाली कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे. जबकि पायलट के नजदीकी लोगों ने कहा कि 30 विधायकों के उनके समर्थन में आने से सरकार अल्पमत में है.

राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार पर संकट के बादल घने होने के साथ ही एक बार फिर छत्तीसगढ़ को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म है। वैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ की कॉन्ग्रेस सरकारों की आतंरिक कलह से अकाल मौत के कयास उस दिन ही लगने शुरू हो गए थे, जब 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद तीनों राज्यों के लिए राहुल गाँधी ने मुख्यमंत्री फाइनल किया था। वैसे बात करें तो नाम सोनिया और प्रियंका ने चुने थे राहुल तो अपने युवा साथियों के पक्ष में थे लेकिन सोनिया राहुल के समकक्ष किसी भी युवा को एक सक्षम प्रशासक के तौर पर स्थापित होते नहीं देख सकतीं।

जिस तरह मध्य प्रदेश में ज्योतिदारित्य सिंधिया अपनी उपेक्षा से आहत थे, उसी तरह राजस्थान में भी सचिन पायलट को अपनी मेहनत की मलाई अशोक गहलोत को सौंपा जाना खटक रहा था। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव को खुद के छले जाने का अहसास हो रहा था। पहल सिंधिया ने की। अब लपटें पायलट के खेमे से निकल रही है और सोशल मीडिया में सिंहदेव के भी जल्द धधकने के दावे किए जा रहे हैं।

यह सच है कि सियासी बाजियाँ सोशल मीडिया के पोस्ट के हिसाब से नहीं चली जातीं। लेकिन, यह भी उतना सच है कि सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार तभी गर्म होता है, जब खिचड़ी पक रही होती है। हालाँकि सिंहदेव अभी भी इन दावों को खारिज कर रहे हैं। पहले भी खारिज किया था।

मध्य प्रदेश में सिंधिया की बगावत के बाद उन्होंने कहा भी था, “लोग दावे करते रहें लेकिन मैं भाजपा में शामिल नहीं होऊँगा। सौ जीवन मिलने के बाद भी मैं उस विचारधारा से कभी नहीं जुड़ूँगा। जो व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण भाजपा में शामिल होता है, उसे कभी सीएम नहीं बनना चाहिए।”

लेकिन, हम सब जानते हैं कि नेता बयानों के हिसाब से नहीं चलते। वे फैसले अपने सियासी भविष्य को देखकर करते हैं। कॉन्ग्रेस में ये बगावत मुख्यमंत्री बनने की भी नहीं है। यदि ऐसा होता तो शिवराज की जगह सिंधिया को मध्य प्रदेश का सीएम होना था।

असल में यह आत्मसम्मान बचाने की लड़ाई है। हाईकमान लगातार इनकी उपेक्षा कर रहा है। पार्टी जिस तरीके से चलाई जा रही उससे इनकी असहमति है। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने से लेकर चीन से सीमा विवाद तक के मसलों पर पार्टी स्टैंड ने कई नेताओं को असहज कर रखा है। सबसे बड़ी बात अपने-अपने राज्य के डिप्टी सीएम होने के बावजूद न तो पायलट की सरकार में सुनी जाती है और न सिंहदेव की।

लिहाजा इनके पास विकल्प सीमित हैं। या तो अपनी ही सरकार में उपेक्षित बने रहे या फिर उस रास्ते चलें जो सिंधिया ने चुना। राजस्थान में सियासी घटनाक्रम जिस तरह से चल रहे हैं उससे स्पष्ट है कि पायलट ने फैसला कर लिया है।

खबरों के अनुसार, राजस्थान के कॉन्ग्रेस के 24 विधायक हरियाणा और दिल्ली स्थित होटलों में पहुँच गए हैं। भयभीत राज्य सरकार ने सभी सीमाओं को सील कर दिया है। ऊपरी तौर पर तो कहा जा रहा है कि ये कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए ये फैसला लिया गया है, लेकिन इसे कॉन्ग्रेस के भीतर भारी अंदरूनी फूट को दबाने और विधायकों को बाहर जाने से रोकने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि अधिकतर कॉन्ग्रेस विधायकों का फोन स्विच ऑफ है।

इधर मुख्यमंत्री गहलोत ने भी आज रात पार्टी विधायकों और मंत्रियों की बैठक बुलाई। पायलट के अहमद पटेल से भी मिलने की खबरे हैं। ऐसे में पूरी राजनीतिक तस्वीर स्पष्ट होने में मध्य प्रदेश की तरह ही कुछ वक्त लग सकता है।

यहाँ यह भी गौर करने वाली बात है कि पायलट ने अचानक से सियासी पारा तब चढ़ाया है, जब प्रदेश सरकार को गिराने की कथित साजिशों के मद्देनजर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने उन्हें और गहलोत को बयान जारी करने का नोटिस भेजा है। साथ ही कुछ कॉल रिकॉर्ड भी हैं जो बताते हैं कि कॉन्ग्रेस में खेमेबंदी जोरों पर है।

ऐसे ही एक कॉल के दौरान बातचीत में यह बात सामने आई कि महेन्द्रजीत सिंह मालवीय पहले उप मुख्यमंत्री के साथ थे, अब उन्होंने पाला बदल लिया है। ऐसे में पायलट को यह भी चिंता सता रही होगी कि अब और देरी करने पर गहलोत एक-एक कर उनके समर्थकों को तोड़ उन्हें अलग-थलग कर सकते हैं।

पर उनके इस कदम ने छत्तीसगढ़ कॉन्ग्रेस की आंतरिक कलह को भी चर्चा में ला दिया है। सिंहदेव ने बीते महीने ही विधानसभा चुनाव के वक्त जारी कॉन्ग्रेस के जन-घोषणा पत्र में किए गए वादे पूरे नहीं होने को लेकर सरकार से नाराज होने के संकेत दिए थे। उन्होंने ट्वीट कर कहा था, “सभी बेरोज़गार शिक्षा कर्मियों, विद्या मितान, प्रेरकों एवं अन्य युवाओं की पीड़ा से मैं बहुत दुखी और शर्मिंदा हूँ।”

यही कारण है कि सोशल मीडिया में उनको लेकर भी पोस्ट की भरमार है। जैसा कि जशपुर के रहने वाले विवेकानंद झा लिखते हैं, “माना कि ठाकुर के हाथ नजर नहीं आते। पर ये हाथ न होते तो जय-वीरू जेल से आजाद न होते। सूत्रों की मानें तो ठाकुर भी जल्द ज्वाइन करेंगे जय-वीरू को।”

ठाकुर यानी टीएस सिंहदेव। वे सरगुजा के राजा भी हैं। मुख्यमंत्रियों का ऐलान करते हुए राहुल गाँधी ने सिंधिया और पायलट को भविष्य बताकर संकेत दिया था कि आगे उन्हें भी मौका मिल सकता है। पर 67 साल के सिंहदेव को लेकर ऐसा कोई भरोसा उन्होंने भी नहीं दिया था। सो, सिंहदेव भी जानते ही होंगे कि उनके पास सिंधिया और पायलट के उलट मौके भी सीमित ही हैं।

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