पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के साथ रथयात्रा की इजाजत दी. मंदिर प्रबंधन समिति, राज्य सरकार और केंद्र सरकार आपस में तालमेल कर रथयात्रा का आयोजन करवाएंगे. कोरोना से बचाव की गाइडलाइन का पालन करते हुए ऐसा किया जाएगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पुरी में कोरोना के केसों की संख्या में बढ़ोतरी हो तो राज्य सरकार के पास रथ यात्रा रोकने की आजादी होगी. इससे पहले कॉलरा और प्लेग के दौरान भी रथ यात्रा सीमित नियमों और श्रद्धालुओं के बीच हुई थी. चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट केवल पुरी में यात्रा के बारे में विचार कर रहा है और ओडिशा में कहीं अन्य जगह पर नहीं.
नयी दिल्ली(ब्यूरो) – 22 जून:
सुप्रीम कोर्ट ने पुरी में होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा पर अपने पिछले आदेश में लगाई गई रोक को हटा लिया है। यानी कल (23 जून 2020 को) पुरी में भगवान जगन्नाथ की पारंपरिक व ऐतिहासिक रथ यात्रा निकलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए मंदिर कमिटी, राज्य व केंद्र सरकार को समन्वय बना कर करने को कहा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने आज (22 जून, 2020) ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा पर रोक संबंधी आदेश में संशोधन करने के अनुरोध पर सुनवाई की। केंद्र की ओर से मामले का विशेष उल्लेख सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया। उन्होंने यहाँ कुछ प्रतिबंधों के साथ रथयात्रा की अनुमित देने का अनुरोध किया।
जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह रथयात्रा सदियों पुरानी है और इसे रोकना ठीक नहीं होगा। उन्होंने कोर्ट के समक्ष इस मामले में कुछ शर्तों और हिदायतों के साथ पूर्व के आदेश में संशोधन का आग्रह किया।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने मामले का उल्लेख करते हुए सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “यह कई करोड़ लोगों की आस्था का मामला है। अगर भगवान जगन्नाथ को कल बाहर नहीं लाया गया तो परंपरा के मुताबिक उन्हें अगले 12 साल तक बाहर नहीं निकाला जा सकता है।” इस पीठ में दोपहर बाद मुख्य न्यायधीश भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़ गए।
सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस रथयात्रा में कवल उन लोगों का चयन होगा, जिनका कोरोना टेस्ट नेगेटिव आया हो और वे भगवान जगन्नाथ मंदिर में सेवायत के रूप में काम कर रहे हों। उन्होंने बताया कि भीड़ को रोकने के लिए राज्य सरकार कर्फ्यू लगा सकती है। हालातों को देखते हुए कदम उठाए जा सकते हैं और जन भागीदारी के बिना रथ यात्रा आयोजित हो सकती है।
वहीं, ओडिशा सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी केंद्र की दलील का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अगर याचिकाकर्ता पूरे एहतियात के साथ रथयात्रा आयोजित करते हैं, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। जिसके बाद जस्टिस मिश्रा ने कहा कि वह सभी मामलों की सुनवाई के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेकर आदेश में संशोधन के मामले पर विचार करेंगे।
इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया नागपुर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मामले पर सुनवाई के लिए जुड़े। 18 जून के आदेश के मामले में संशोधन की माँग वाले मामले की अध्यक्षता इसके बाद CJI ने ही की।
गौरतलब है कि इससे पहले 18 जून को कोरोना वायरस की महामारी को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 23 जून को पुरी (ओडिशा) के जगन्नाथ मंदिर में होने वाली वार्षिक रथ यात्रा पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर हमने इस साल रथयात्रा की इजाजत दे दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे।
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इसके बाद पुरी के राजा गजपति दिब्यसिंह ने शनिवार (जून 20, 2020) को मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को पत्र लिख कर रथ यात्रा को अनुमति देने के लिए अपने आदेश को संशोधित करने के लिए तत्काल सुप्रीम कोर्ट का रूख करने की अपील की थी। वहीं भाजपा ने भी दिब्यसिंह देब के प्रस्ताव के अनुसार कदम उठाने की अपील की थी। उन्होंने कहा कि ओडिशा सरकार को पुरी शंकराचार्य से भी चर्चा करनी चाहिए।
यहाँ बता दें कि भुवनेश्वर के ओडिशा विकास परिषद एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर कर इस मामले को उठाया था। उन्होंने अपनी दायर में कहा ता कि रथयात्रा से कोरोना फैलने का खतरा हो सकता है। इसमें कहा गया था कि अगर लोगों की सेहत को ध्यान में रखकर कोर्ट दीपावली पर पटाखे जलाने पर रोक लगा सकता है तो फिर रथयात्रा पर रोक क्यों नहीं लगाई जा सकती?