अल्पसंख्यकों को एक वक्त की रोटी के लिए मज़हब बदलने को मजबूर कर रहा पाकिस्तान
कोराना वायरस के फैलाव ने पाकिस्तानियों की एक और घिनौनी तस्वीर दुनिया के सामने पेश की है। यहां अल्पसंख्यकों को एक-एक रोटी के लिए तरसाया—तड़पाया जा रहा है। महामारी से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बिल्कुल जमीन पर आ गई है। विशेषकर हिंदुओं की दशा बेहद खराब है। इमरान खान सरकार द्वारा गरीबों को थोड़ी-बहुत जो सहायता पहुंचाई जा रही है, वह केवल मुसलमानों को दी जा रही है। राहत देने में खुले तौर पर भेदभाव बरता जा रहा है
नयी दिल्ली(ब्यूरो):
इस्लामिक लोकत्रांतिक देश पाकिस्तान में मानवता को शर्मशार करने वाला खेल चल रहा है। सरकार की शह पर कई इस्लामिक संगठन कोरोना वायरस से उत्पन्न विकट स्थिति से बेहाल अल्पसंख्यक हिंदू और ईसाइयों को मजहब परिवर्तन करने पर मजबूर कर रहे हैं। राहत सामग्री वितरण केंद्रों पर उन्हें न केवल लालच दिया जा रहा है बल्कि दवाब तक बनाया जा रहा है कि अगर वे कलमा पढ़ेंगे तो रोटी और दूसरी सुविधाएं उन्हें मिलेंगी।
कलमा इस्लाम के पांच स्तंभों में एक है। इसे पढ़ने वाला मानता है कि ईश्वर का कोई वजूद नहीं। केवल अल्लाह ही है और उसके पैगंबर मोहम्मद हैं। जो हिंदू या ईसाई इस्लाम कुबूलने से इंकार कर देते हैं, उन्हें राहत सामग्री नहीं दी जाती। अल्पसंख्यक संगठनों की मानें तो ऐसी शिकायतें पूरे पाकिस्तान से आ रही हैं, पर मुख्य धारा का मीडिया ऐसी तमाम खबरों को निगल जा रही है। दूसरी तरफ इसका खुला विरोध अल्पसंख्यक इसलिए नहीं कर पा रहे हैं कि कहीं खाने के साथ कोई नई आफत उनके गले न पड़ जाए। हाल में कुछ कट्टरपंथियों ने सिंध प्रांत के दो स्थानों पर हिंदुओं के बारह मकान आग के हवाले कर दिए थे जिसमें तीन बच्चों को जलाकर मार दिया था। लाखों की संपत्तियों को भी नुक्सान पहुंचा था।
राहत सामग्री को लेकर आ रही हैं भेदभाव की खबरें
पिछले सप्ताह सिंध के कराची, लियारी, सचल घाट आदि से हिंदुओं को राहत सामग्री को लेकर भेदभाव की खबरें आई थीं। उन्हें यह कहकर राहत नहीं दी गई थी कि यह केवल मुसलमानों के लिए है। इमरान खान सरकार देश के तमाम बड़े सामाजिक संगठनों के माध्यम से अधिकारियों की देख-रेख में राहत सामग्री वितरित करवा रही है। इस देश में 45 प्रतिशत निर्धन हैं, जिनमंें धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति सबसे गई गुजरी है। लभगभ सभी मेहनत मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं। कारोना वायरस को लेकर पाकिस्तान में 21 मार्च से लॉकडाउन है, जिसके कारण उनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई है। इस्लामिक कट्टरपंथी इसका लाभ उठाने के लिए देशभर में बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का मजहब परिवर्तन करने का अभियान छेड़े हुए हैं। इसमें पाकिस्तान का कुख्यात मजहबी संगठन ‘सेलानी वेल्फेयर इंटरनेशनल ट्रस्ट’ सबसे आगे है। इस संस्था से प्रधानमंत्री इमरान खान के गहरे ताल्लुकात हैं। यह संस्था इस समय कराची, लाहौर, इस्लामाबाद, रावलपिंडी, हैदराबाद, फैसलाबाद सहित तकरीबन पूरे पाकिस्तान में अपने दो हजार कार्यकर्ताओं के माध्यम से सवा लाख लोगों को रोजाना भोजन, दवाईयां और जीवनयापन की दूसरी आवश्यक सामग्रियां उपलब्ध करा रही है। मगर अल्पसंख्यक हिंदू और ईसाई समुदाय को इससे वंचित रखा जा रहा है। कराची के कोरंगी टाउन में ईसाई महिलाओं के सामने जब सेलानी ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं ने इस्लाम कुबूलने पर राहत सामग्री देने की शर्त रखी तो उन्होंने मना कर दिया। महिलाओं का कहना है कि कोरंगी में राहत वितरण शिविर लगाए गए थे। इसका पता चलने पर जब वे वहां गईं तो उन्हें कलमा पढ़ने को कहा गया। ट्रस्ट के चेयरमैन मौलाना बशीर अहमद फारूकी अहमद का कहना है कि उनकी संस्था पाकिस्तान, अमेरिका, यूरोप, संयुक्त राष्ट्र के मुसलमानों द्वारा दिए गए जकात, फितरा और खैरात से संचालित होती है, जिसके हिंदू और ईसाई हकदार नहीं हैं।
ईसाईयों की संस्था ‘ इंटरनेशनल क्रिश्चन कंसर्न का कहना है कि कोरंगी से पहले रोटी देने के बहाने ईसाईयों से इस्लाम कुबूल ने की घटना लाहौर के रायविंड रोड स्थित एक गांव में सामने आई थी। यहां की स्थानीय मस्जिद की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए भोजन वितरण की व्यवस्था थी। गांव में रहने वाले गरीब ईसाई जब वहां गए तो उन्हें यह कहकर चलता कर दिया गया कि यदि वे इस्लाम नहीं कुबूलते तो रोटी नहीं मिलेगी। पांच अप्रैल को ऐसी ही घटना पंजाब प्रांत के कसूर जिले के सांधा कलां में सामने आई थी। ग्राम प्रबंधन समिति की पहल पर गांवभर से अनाज इकट्ठा कर स्थानीय मस्जिद के मौलवी शेख अब्दुल हामिद द्वारा खाद्य सामग्री वितरित कराई गई। मगर मौलवी ने ईसाइयों के सामने सामग्री लेने के लिए इस्लाम कुबूलने की शर्त रख दी। इस गांव में ईसाइयों के करीब 100 परिवार रहते हैं। ईसाइयों की सर्वाधिक संख्या पंजाब प्रांत में है, जबकि हिंदू समुदाय के लोग सिंध प्रांत में ज्यादा हैं। इन दोनों ही प्रांतों पर कट्टरपंथियों की खास नजर रहती है। इस समय दोनों ही प्रांत कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित हैं। पाकिस्तान में 90 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जिसमें ज्यादातर इन्हीं दोनों प्रांतों के हैं।
मानवाधिकार संगठन के कार्यकर्ता आफताब हयात और शकील अहमद का कहना है कि इस समय महामारी के चलते पूरा विश्व संकट में है, ऐसे समय हिन्दू एवं इसाइयों के साथ भेदभाव और उनका मजहब बदलने की कोशिश मानवता को शर्मसार करने वाली है। और यह तब हो रहा है जब पिछले साल संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को इस मसले पर कड़ी नसीहत दे चुका है।
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