बुद्ध जयंती पर मोदी देंगे देश के नाम संदेश

कोरोना संक्रमण के चलते सारा देश लॉकडाउन से गुज़र रहा है। बच्चों के स्कूल, कॉलेज यहाँ तक की विश्वविद्यालय भी बंद हैं। सारा देश ठप्प पड़ा है। बाज़ार मंदिर न खुल पाने के कारण लोग पारंपरिक ढंग से अपने त्योहार नहीं मना पाये। चैत्र नवरात्रि हों या राम नवमी, मेलों से भरी वैशाखी हो या फिर भगवान परशुराम जयंती लोग न तो त्योहारों का मज़ा ले पाये न ही दान पुण्य कर पाये। इनहि दिनों एक बात उभर कर आई की भाजपा ने भी अब तुष्टीकरण की राह पकड़ी है। जहां सम्पूरण भारत वर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने वाले त्योहारों पर रोक थी वहीं सरकार कुछ भी कहे लें सामने दिख पड रहा है कि रमज़ान के लिए बाज़ार खोल दिये गए हैं, ऐसा जान पड़ता है कि लॉकडाउन या सोशल डिस्टेन्सिंग इत्यादि शब्द राष्ट्र कि बहुसंख्यक आबादी के लिए ही हैं। घरों में बंद होली, नवरात्रि, वैसाखी, पोंगल, ओणम या गुड फ्राइडे पर न तो प्रधान मंत्री ने देश को बधाई दी न ही इस कष्टकारी स्थिति में धैर्य बनाय रखने के लिए बहुसंख्यक समाज को कोई प्रोत्साहन भरे शब्द कहे। दूसरी ओर रमज़ान पर न सिर्फ बाज़ार खोले अपितु मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने कि भीड़ जुटने पर भी कोई कार्यवाही नहीं कि। हिन्दू(सनातन) धर्म ए त्योहारों से मुंह छुपाये मोदी आज बौद्ध धर्म के अनुयाइयों के लिए बुद्ध पूर्णिमा का संदेश पढ़ेंगे। रमज़ान भी धूम धाम से सड़कों पर मनाया जाएगा। क्या मोदी को तुश्तीयरण पसंद आने लगा है।

वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। यह गौतम बुद्ध की जयंती है और उनका निर्वाण दिवस भी। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।

इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा के समारोह व पूजा विधि

बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति- रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।

– श्रीलंकाई इस दिन को ‘वेसाक’ उत्सव के रूप में मनाते हैं जो ‘वैशाख’ शब्द का अपभ्रंश है।
– इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है।
– दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं।
– बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।
– मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।
– बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएँ सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं।
– इस दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे।
– इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है।
– पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।
– गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।

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