निजामूद्दीन मरकज़ के लिए दिल्ली निज़ाम सोता रहा
दिल्ली में और खासतौर पर मस्जिदों में छुप छुप कर रहना अपने संक्रामण के बारे में सरकार से छुपाना और पड़े जाने पर यह कहाँ की जब फ़ारिशते नहीं बचा सकते तो डॉक्टर नर्सें क्या बचा लेंगे यह उस जमात के बोल हैं जो अनपढ़ जाहिल मुसलमानों को इल्म का रास्ता दिखा कर आगे बढ़ान चाहते हैं। दिल्ली में केजरीवाल की नाक के थी नीचे उनकी गोद में खेल रहे यह लोग न केवल कोरोना के खिलाफ भारत की जंग में एक बड़ा खुला दरवाजा हैं बल्कि मानवता के भी भयंकर अपराधी हैं। बस मोदी विरोध के चलते केजरीवाल हर वह कदम उठाते हैं जिससे चाहे पूरी मानवता का ही नुकसान हो जाए , दिल्ली- भारत की तो बात ही छोड़िए। केजरीवाल के संरक्षण में इन मौलवियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि इन्हे किसी भी ढाल कि ज़रूरत नहीं है फिर भी भारत के कुछ तथाकथित स्वयंभू पत्रकार इनके बचाव में कूद पड़े हैं।
दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात का 6 मंजिला इमारत भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का सबसे बड़ा सोर्स बन कर उभरा है। वहाँ से निकाले गए लोगों में से अब तक 117 में संकमण की पुष्टि हो चुकी है। इनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने तबलीगी जमात के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था। सामने आए तथ्यों से स्पष्ट है कि तबलीगी जमात द्वारा सारे नियम-कायदों और सरकारी दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ा कर मस्जिद में मजहबी कार्यक्रम आयोजित किए गए। बजाए इस घटना की निंदा करने के गिरोह विशेष के कई बड़े पत्रकार इसका बचाव करने में लग गए हैं। इनमें एक नाम राणा अयूब का भी है।
राणा अयूब ने तबलीगी जमात को क्लीन-चिट देने की कोशिश करते हुए एक खबर की लिंक साझा की है। साथ ही दावा किया है कि जब 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जनता कर्फ्यू’ का ऐलान किया, तभी मरकज में सारे कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया। इसके बाद अयूब ने वहाँ इतनी संख्या में लोगों के छिपे होने के पीछे रेलवे का दोष गिना दिया है, क्योंकि देश भर में रेल सेवा बंद हो गई। उन्होंने लिखा है कि ‘अचानक से’ रेल सेवा बंद किए जाने के कारण कई यात्री मरकज में ही फँस गए। यहाँ सवाल ये उठता है कि अगर वो लोग सरकार के साथ सहयोग कर रहे थे (जैसा कि दावा किया गया है), तो फिर उन्हें लेने भेजी गई एम्बुलेंस को क्यों वापस लौटा दिया गया?
अब हम आपको बताते हैं कि मरकज में कैसे जनता कर्फ्यू और उसके बाद हुए लॉकडाउन के दौरान भी धड़ल्ले से कार्यक्रम चल रहे थे और मौलाना-मौलवी कोरोना वायरस की बात करते हुए न सिर्फ़ तमाम मेडिकल सलाहों की धज्जियाँ उड़ा रहे थे, बल्कि अंधविश्वास भी फैला रहे थे। 24 मार्च को यूट्यूब पर ‘असबाब का इस्तेमाल ईमान के ख़िलाफ़ नहीं- हजरत अली मौलाना साद’ नाम से ‘दिल्ली मरकज’ यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो अपलोड किया गया। इसमें मौलाना ने लोगों को एक-दूसरे के साथ एक थाली में खाने और डॉक्टरों की बात मानने की बजाए अल्लाह से दुआ करने की सलाह दी। यूट्यब पेज पर स्पष्ट लिखा है कि ये कार्यक्रम 23 मार्च को हुआ।
इस वीडियो में बीच-बीच में लोगों की खाँसने की आवाज़ भी आ रही है। इसका मतलब है कि समस्या को जानबूझ कर नज़रअंदाज़ किया गया। स्थिति ये है कि तमिलनाडु और तेलंगाना से लेकर दिल्ली तक के कई मुसलमानों में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए हैं, जिन्होंने मरकज के कार्यक्रमों में शिरकत की थी। अगर आप ‘दिल्ली मरकज’ के यूट्यब पेज पर जाएँगे तो आपको पता चलेगा कि 17 मार्च से लेकर अब तक वहाँ 24 से भी अधिक वीडियो अपलोड किए गए हैं। सभी वीडियो में स्थान दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज इमारत को ही बताया गया है। इनमें से कई वहाँ हुए कार्यक्रमों के फुल वीडियो हैं तो कई शार्ट क्लिप्स।
कोई भी व्यक्ति उन लोगों का खुलेआम बचाव कैसे कर सकता है, जो सार्वजनिक रूप से सरकारी दिशा-निर्देशों और मेडिकल सलाहों को धता बताते हों? ऐसा नहीं है कि उन्हें समझाया नहीं गया था। दिल्ली पुलिस ने 23 मार्च को ही उन्हें समझाया था कि मरकज में हमेशा डेढ़-दो हजार की गैदरिंग होती है, इसे रोकना चाहिए। मौलानाओं को बुला कर कैमरे और सीसीटीवी के सामने ही पुलिस ने समझाया था। पुलिस ने बता दिया था कि सारे धार्मिक स्थान बंद हैं और 5 लोगों से ज्यादा की गैदरिंग पर रोक है। पुलिस ने समझाया था कि ये आपलोगों की सुरक्षा के लिए हैं, हमारी सुरक्षा के लिए नहीं है। मौलानाओं को बताया गया था कि सोशल डिस्टेंसिंग का जितना पालन किया जाएगा, उतना अच्छा रहेगा क्योंकि ये कोरोना वायरस कोई धर्म या मजहब देख कर आक्रमण नहीं करता है। पुलिस ने मौलानाओं को नोटिस थमाते हुए कहा गया था कि सभी दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए। उस समय भी मरकज के लोगों ने स्वीकार किया था कि उनकी इमारत में 1500 लोग मौजूद हैं और 1000 लोगों को वापस भेजा जा चुका है। इनमें लखनऊ और वाराणसी से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों के लोग शामिल हैं। दिल्ली मरकज में हमेशा ऐसे कार्यक्रम चलते रहे हैं और हज़ारों लोग जुटते रहे हैं। पुलिस ने इन्हें सख्त शब्दों में चेतावनी दी थी, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा।
दिल्ली सरकार ने 13 मार्च को ही आदेश जारी कर 200 लोगों की किसी तरह की गैदरिंग पर रोक लगा दी थी। उस समस्य इस आदेश की समयावधि 31 मार्च तक रखी गई थी। बावजूद इसके मरकज में कार्यक्रम आयोजित किए गए। 16 मार्च को ख़ुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि दिल्ली में कहीं भी 50 लोगों से ज्यादा की भीड़ नहीं जुटेगी। फिर 21 मार्च को 5 से ज्यादा लोगों के जुटान पर रोक लगा दी गई। बावजूद इसके मरकज में हज़ारों लोग रोजाना होने वाले कार्यक्रमों में शिरकत करते रहे। वहाँ लोग रहते रहे। 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया गया। इसके एक दिन बाद भी वहाँ 2500 लोग मौजूद थे, जिनमें से 1500 के चले जाने का दावा मौलाना ने किया है। अब सोचिए, इनमें से कई कोरोना कैरियर होंगे, जिन्होंने हजारों-लाखों लोगों तक संक्रमण फैलाया होगा।
25 मार्च को लॉकडाउन के दौरान भी 1000 मुसलमान वहाँ मौजूद थे। 28 मार्च को एसीपी ने दिल्ली मरकज को नोटिस भेजी लेकिन उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने अपील की थी कि जो जहाँ है वहीं रहे, इसीलिए वहाँ लोग रुके हुए हैं। साथ ही दावा किया गया कि इतने लोग काफ़ी पहले से यहाँ पर मौजूद हैं। उपर्युक्त सभी बातों से स्पष्ट पता चलता है कि दिल्ली मरकज ने हर एक सरकारी आदेश की धज्जियाँ उड़ाई और जान-बूझकर इस संक्रमण के ख़तरे को नज़रअंदाज़ कर पूरे देश को ख़तरे में डाल दिया। अकेले तमिलनाडु में 50 ऐसे लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण हो गया है, जो मरकज के कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। देशभर में ये संख्या और बढ़ेगी, ऐसी आशंका जताई जा रही है। फिर भी कुछ मजहबी ठेकेदार पत्रकारों की वेशभूषा में इनका बचाव करने में लगे हुए हैं।
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!