PSA जिसके तहत महबूबा – ओमर को गिरफ़्तार किया गया

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया है. इस एक्ट के तहत गिरफ्तार किए जाने की वजह से उन्हें बिना सुनवाई का मौका दिए अगले दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है. 49 वर्षीय उमर और 60 वर्षीय महबूबा को पिछले साल पांच अगस्त से एहतियातन हिरासत में रखा गया है, जब केंद्र ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने की घोषणा की थी.

रज्विरेंद्र वशिष्ठ:

Ravirendra-Vashisht
रविरेन्द्र वशिष्ठ
संपादक

 पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ जन सुरक्षा कानून के (Public Safety Act) तहत मामले दर्ज किए जाने के लिए नेशनल कांफ्रेंस नेता की पार्टी की आंतरिक बैठकों की कार्यवाहियों और सोशल मीडिया पर उनके प्रभाव तथा पीडीपी प्रमुख के “अलगाववादी समर्थक” रुख का अधिकारियों ने जिक्र किया है.

49 वर्षीय उमर और 60 वर्षीय महबूबा को पिछले साल पांच अगस्त से एहतियातन हिरासत में रखा गया है, जब केंद्र ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और इस पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों– लद्दाख एवं जम्मू कश्मीर– में बांटने की घोषणा की थी. उनके एहतियातन हिरासत की मियाद खत्म होने से महज कुछ ही घंटे पहले उनके खिलाफ छह फरवरी की रात पीएसए (PSA) के तहत मामला दर्ज किया गया.

क्या है पीएसए (Public Safety Act)

पब्लिक सेफ्टी एक्ट, पीएसए को वर्ष 1978 में लागू किया गया था. उस समय फारूख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. इस एक्ट को लागू करने का मकसद ऐसे लोगों को हिरासत में लेना है जो किसी प्रकार से राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं. यह एक ‘प्रिवेंटिव एक्ट’ यानि ‘सुरक्षात्मक कानून’ है न कि ‘प्यूनिटेटिव’ अर्थात ‘दंडात्मक कानून.’

पीएसए लगभग नेशनल सिक्योरिटी एक्ट की तरह ही है, जिसका उपयोग भारत के कई राज्यों में ‘खतरा उत्पन्न करने वाले व्यक्ति’ को हिरासत में लेने के लिए किया जाता है. किसी भी व्यक्ति को पीएसए एक्ट के तहत तभी गिरफ्तार किया जा सकता है जब इसकी इजाजत जिलाधिकारी दे या फिर डिविजनल कमिश्नर. पुलिस द्वारा किसी तरह का आरोप लगाए जाने या फिर कोई कानून तोड़ने पर इस धारा के तहत गिरफ्तारी नहीं होती है.

 पीएसए के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार किया जा सकता है. यदि कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है या कोर्ट से जमानत मिलने पर तुरंत उसकी रिहाई हुई है, उस स्थिति में भी उसे पीएसए के तहत हिरासत में लिया जा सकता है. यह हिरासत दो वर्ष तक की हो सकती है.

यदि किसी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में लिया जाता है तो बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून के तहत उसे 24 घंटे के अंदर कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है. लेकिन पीएसए के तहत हिरासत में लिए जाने पर ऐसा नहीं होता है. हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पास जमानत के लिए कोर्ट जाने का कोई अधिकार नहीं होता है और न ही कोई वकील उसका बचाव कर सकता है.

6 महीने से आगे बढ़ाई जा सकती है हिरासत
नियमों के अनुसार एहतियातन हिरासत को छह महीने से आगे तभी बढ़ाया जा सकता है जब 180 दिन की अवधि पूरा होने से दो सप्ताह पहले गठित कोई सलाहकार बोर्ड इस बारे में सिफारिश करे. हालांकि, इस संबंध में ऐसे किसी बोर्ड का गठन नहीं हुआ और कश्मीर प्रशासन के पास दो ही विकल्प थे या तो उन्हें रिहा किया जाए या पीएसए लगाया जाए.

उमर के खिलाफ तीन पृष्ठ के डॉजियर में जुलाई में नेशनल कांफ्रेंस की आंतरिक बैठक में कही गई उनकी कुछ बातों का जिक्र है जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि सहयोग जुटाने जरूरत है ताकि केंद्र सरकार राज्य के विशेष दर्जे को हटाने की अपनी योजना को पूरा नहीं कर पाए.

सोशल मीडिया की सक्रियता पर भी उठे सवाल
पुलिस ने यह भी कहा कि उमर सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय थे और यह मंच युवाओं को संगठित करने की क्षमता रखता है. उमर केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं. संचार माध्यमों पर पांच अगस्त से प्रतिबंध लागू हैं. बाद में धीरे-धीरे इनमें ढील दी गई. कुछ जगहों पर इंटरनेट काम कर रहे हैं. विशेष निर्देशों के साथ मोबाइल पर 2जी इंटरनेट की सुविधा शुरू हो गई है ताकि सोशल मीडिया साइटों का उपयोग नहीं हो.

हालांकि, पुलिस ने डॉजियर में उमर के किसी सोशल मीडिया पोस्ट का विशेष तौर पर जिक्र नहीं किया है.

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply