ज्ञानवापि मस्जिद के मामले में स्टे बरक़रार रखने की मांग कोर्ट ने ख़ारिज कर दी
- अयोध्या केस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शुरू हो गई है ज्ञानवापी मस्जिद केस की सुनवाई
- वाराणसी की सीनियर डिविजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के बाद सुरक्षित रखा फैसला
- इस केस में एक पक्ष का दावा है ज्ञानवापी मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है
वाराणसी की फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में स्वयंभू भगवान विश्वनाथ और यूपी सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के बीच मुकदमा चल रहा है। इस मामले में अंजुमन इंतेजामिया बनारस भी वक़्फ़ बोर्ड के साथ है। मुस्लिम पक्ष की माँग थी कि इस मामले में स्टे बरक़रार रहे लेकिन कोर्ट ने उनकी माँग ख़ारिज कर दी है। अब ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातत्विक सर्वेक्षण की वादी पक्ष की माँग पर अगली सुनवाई 17 फरवरी को होगी। प्रतिवादियों की याचिका ख़ारिज होने के बाद लोगों में उम्मीद बँधी है कि अब इस मामले में तेज़ी से सुनवाई होगी।
इस मामले में भगवान विश्वेश्वर पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील राजेंद्र प्रताप पांडेय पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अंजुमन इंतेजामिया बनारस और यूपी सुन्नी सेंट्रल चाहता था कि इस कार्यवाही को स्थगित कर दी जाए और आगे कोई सुनवाई न हो। कोर्ट द्वारा उनकी माँगें ख़ारिज किए जाने के बाद अब इस मामले में कार्यवाही चलेगी। नवम्बर 2019 में सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला आने के बाद अब लोगों के भीतर उम्मीद जगी है कि मथुरा व काशी विवाद में भी हिन्दुओं को न्याय मिलेगा।
काशी विश्वनाथ व ज्ञानवापी मस्जिद का मामला हाईकोर्ट और सेशन कोर्ट, दोनों में ही चल रहा था। बाद में हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमा एक ही कोर्ट में चलेगा और सेशन कोर्ट में जारी रहेगा। वादी पक्ष की तरफ से पूरे ज्ञानवापी परिसर के एएसआई द्वारा भौतिक सर्वे कराने के लिए आवेदन दिया गया था, जिस पर मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई थी। उसका कहना था कि हाईकोर्ट के 1998 में दिए गए आदेश के अनुसार इस मामले में स्टे लगा हुआ है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा- सिविल जज को केस की सुनवाई का अधिकार नहीं
आपत्तियों पर मंगलवार को कोर्ट में सुनवाई होने पर अंजुमन इंतजामिया के वकील एखलाक अहमद और वक्फ बोर्ड के वकील तौहीद खां ने हाईकोर्ट में प्रकरण से संबंधित याचिका हाई कोर्ट में लंबित और स्टे होने की जानकारी दी। कहा कि ऐसी स्थिति में इस कोर्ट (सिविल जज) को मुकदमे की सुनवाई का अधिकार नहीं है। सुनवाई स्थगित की जानी चाहिए।
वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने विपक्षियों के कथन का विरोध किया। उनका कहना था कि हाई कोर्ट का स्थगन आदेश समाप्त होने पर ही यहां सुनवाई शुरू हुई है। पक्षों की लंबी बहस सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। बताते चलें कि इस मामले में भगवान विश्वेश्वर के पक्षकारों की ओर से कहा गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का अंश है। वहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ, राग-भोग, दर्शन आदि के साथ निर्माण, मरम्मत और पुनरोद्धार का अधिकार प्राप्त है। इस मुकदमे में वर्ष 1998 में हाई कोर्ट के स्टे से सुनवाई स्थगित हो गई थी, जो अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन में फिर से शुरू हुई है।
क्या है ज्ञानवापी विवाद?
विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में दी गई अर्जी में कहा है कि कथित विवादित ज्ञानवापी परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है। मंदिर परिसर के हिस्सों पर मुसलमानों ने कब्जा करके मस्जिद बना दिया। 15 अगस्त 1947 को भी विवादित परिसर का धार्मिक स्वरूप मंदिर का ही था। इस मामले में केवल एक भवन ही नहीं, बल्कि बड़ा परिसर विवादित है। लंबे इतिहास के दौरान पूरे परिसर में समय-समय पर हुए परिवर्तन के साक्ष्य एकत्रित करने और धार्मिक स्वरूप तय करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) से सर्वेक्षण कराया जाना जरूरी है। रस्तोगी ने भवन की बाहरी और अंदरूनी दीवारों, गुंबदों, तहखाने आदि के सबंध में एएसआई की निरीक्षण रिपोर्ट मंगाने की अपील की है।
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