राष्ट्रपति ने दया याचिका पर अपने दिमाग से काम नहीं लिया है: वकील अंजना प्रकाश

वकील अंजना प्रकाश का कहना है जीवन और व्यक्तिगत आजादी से जुड़े मसलों को गौर से देखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि माफी का अधिकार किसी की व्यक्तिगत कृपा न होकर, संविधान के तहत दोषी को मिला अधिकार है. मुकेश की वकील ने कहा, ‘गवर्नर और राष्ट्रपति दया याचिका के मामले में अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करते हैं. लोकतांत्रिक राष्ट्र में मुकेश की दया याचिका तथ्यों पर बगैर ध्यान दिए मनमाने ढंग से खारिज की गई है.’ 

नई दिल्ली: 

निर्भया केस (Nirbhaya Case) में दोषी मुकेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई पूरी हो चुकी है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट बुधवार को फैसला सुनाएगा. याचिका में राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी. अब इस मामले में दोषी मुकेश की वकील अंजना प्रकाश का कहना है कि राष्ट्रपति ने दया याचिका पर अपने दिमाग से काम नहीं लिया है. 

वकील अंजना प्रकाश

वहीं तीन सदस्यीय बेंच की अगुवाई कर रही जस्टिस भानुमति ने कहा कि राष्ट्रपति के फैसले की समीक्षा का कोर्ट के पास सीमित अधिकार है. कोर्ट को केवल यह देखना है कि राष्ट्रपति के पास केस से जुड़े जरूरी दस्तावेज रखे गए थे या नहीं.

सुनवाई में पहले मुकेश की एडवोकेट अंजना प्रकाश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट गौर करे कि क्या दया याचिका के निपटारे में पूरी प्रकिया का पालन हुआ है. उन्होंने कहा, ‘मेरे मुवक्किल ने माना है कि वो बस में चल रहा था पर उसकी वजह से निर्भया की जान नहीं गई. वो रेप में शामिल नहीं था. फोरेंसिक एविडेंस भी मेरी इस दलील के पक्ष में है.’

अंजना प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मानवीय फैसलों में चूक हो सकती है. जीवन और व्यक्तिगत आजादी से जुड़े मसलों को गौर से देखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि माफी का अधिकार किसी की व्यक्तिगत कृपा न होकर, संविधान के तहत दोषी को मिला अधिकार है.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति को मिले माफी के अधिकार का बहुत जिम्मेदारी से पालन जरूरी है. मुकेश की ओर से पेश वकील ने कहा कि हम न्यायिक फैसले की समीक्षा का अधिकार नहीं रखते, लेकिन मौत के मामले की उनको संविधान के तहत समीक्षा का अधिकार है. 

मुकेश की वकील ने कहा, ‘गवर्नर और राष्ट्रपति दया याचिका के मामले में अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करते हैं. लोकतांत्रिक राष्ट्र में मुकेश की दया याचिका तथ्यों पर बगैर ध्यान दिए मनमाने ढंग से खारिज की गई है.’ 

मुकेश की वकील एक केस का हवाला देते हुए कहा, ‘आंध्र प्रदेश के ईपुरु सुधाकर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी तरह से तय है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा क्षमा शक्ति का अभ्यास या गैर अभ्यास, जैसा भी मामला हो, न्यायिक समीक्षा से बाहर नहीं है. अदालत ने माना कि अनुच्छेद 72 या अनुच्छेद 161 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल के आदेश की न्यायिक समीक्षा, जैसा भी मामला हो, उपलब्ध है और उनके आदेश पर कई आधारों पर चुनौती दी जा सकती है.’

मुकेश की वकील ने कहा कि पहला आधार यह हो सकता है कि यह आदेश विवेक के इस्तेमाल के बिना पारित किया गया है. दूसरा आधार ये हो सकता है कि यह आदेश दुर्भावनापूर्ण है. तीसरा, यह आदेश बिना प्रासंगिक विचारों पर पारित किया गया है. चौथा, प्रासंगिक सामग्री को विचार से बाहर रखा गया है और पांचवां आधार ये हो सकता है कि यह आदेश मनमाना है. 

मुकेश की वकील ने कहा कि सरकार ने दया याचिका खारिज करने की राय के साथ राष्ट्रपति कार्यालय में केस के सभी दस्तावेज पेश नहीं किए. मुकेश की वकील ने दलील दी कि दया याचिका के बिना खारिज हुए फांसी की सजा पाए अपराधियों को एकांत कारावास में रखना असंवैधानिक है, जबकि निर्भया के हत्यारों को एकांत कारावास में रखा गया.

मुकेश की वकील अंजना प्रकाश ने दलील दी कि दया याचिका को मनमाने ढंग से जल्दबाजी में खारिज किया गया. इस पर कोर्ट ने कहा कि आप ऐसा कैसे कह सकती है कि राष्ट्रपति ने दया याचिका पर अपने विवेक से काम नहीं लिया?

कोर्ट के इस सवाल पर मुकेश की वकील ने कहा कि राष्ट्रपति ने अपने विवेक से काम नहीं लिया क्योंकि उनके सामने रिकॉर्ड्स नहीं रखे गए. 

दूसरी तरफ सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि दया याचिका पर राष्ट्रपति के देरी से फैसला लेने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है लेकिन जल्दी फैसला लेने पर नहीं. राष्ट्रपति के सामने सारे रिकॉर्ड्स रखे गए थे. 

SG तुषार मेहता ने कहा कि यह भी देखे जाने की जरूरत है कि आज जीवन के मूल्य की वकालत कौन कर रहा है और उसके लिए जीवन का मूल्य क्या था. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में राष्ट्रपति का संतुष्ट होना ही जरूरी है कि वह दया देना चाहते हैं या नहीं. इस मामले में कोर्ट के पास सीमित अधिकार हैं. 

तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही कहा था कि दया याचिका को लंबित रखना अमानवीय है. सरकार ने कोर्ट की इस भावना का सम्मान किया है. राष्ट्रपति ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर बिना विलंब के याचिका पर फैसला किया है. यह आरोप सही नहीं है कि मनमाने ढंग से दया याचिका खारिज की गई.

तुषार मेहता ने कहा कि जेल में दुर्व्यवहार के आरोप की सुनवाई इस स्टेज में सुप्रीम कोर्ट में नहीं की जा सकती. दोषी यह आधार नहीं ले सकता कि जेल में उसका शोषण हुआ था. जिस दोषी ने एक लड़की के साथ इतनी क्रूरता की, वह जेल में खुद के साथ हुए दुर्व्यवहार की बात कर रहा है. 

बता दें कि निर्भया मामले में दोषी मुकेश ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका खारिज होने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. साथ ही 1 फरवरी को होने वाली फांसी के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी.  

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